मैथिली भाषा के साथ संस्कृति, सभ्यता और संस्कार भी है: धर्मेन्द्र
जोगबनी । (हि.प्र.) मैथिली हमारे लिए भाषा मात्र नहीं है। मैथिली हमारी संस्कृति, सभ्यता...
जोगबनी । (हि.प्र.)
मैथिली हमारे लिए भाषा मात्र नहीं है। मैथिली हमारी संस्कृति, सभ्यता और संस्कार के साथ हमारी पहचान भी है। जब हम सभी मैथिली बोलते हैं तब मात्र एक भाषा नहीं बल्कि अपनी पहचान बोल रहे होते हैं। यह बातें मैथिली विकास अभियान की ओर से बिराटनगर में आयोजित अभिनन्दन समारोह में सम्मान ग्रहण करने के बाद संघ संस्था के प्रतिनिधियों ने कही। मैथिली और नेपाली भाषा के लोकप्रिय साहित्यकार धर्मेन्द्र झा ने कहा कि मैथिल भाषा में उपलब्ध अपार ज्ञान है। मैथिली हमारे जन्म से ही व्यवहार में है और आमतौर पर हम घर पर मैथिली भाषा का ही प्रयोग करते हैं लेकिन वहीं जब बाहर होते हैं तो अपनी मैथिली भाषा का प्रयोग बोलचाल में कम या फिर नहीं के बराबर करते हैं। मैथिली मात्र भाषा तक सीमित न होकर मैथिली का स्वयं में इतिहास है। इसी कारण मैथिली सबसे मीठी बोली में से एक है। उन्होंने विस्तार से इस पर चर्चा करते हुए कहा कि मिथिला से जुड़ी मैथिली का एक स्वयं इतिहास है यदि मैथिली भाषा पर आक्रमण हो रहे हैं और कहीं न कहीं उपयोग में नहीं आने से हमारी पहचान भी समाप्त हो जाएगी। इसे बचाना हमारा कर्तव्य है। कम से कम अपने परिवार के लोग और मित्र जन के साथ अपनी मैथिली भाषा में जरूर बातचीत करें। उन्होंने कहा कि
पत्रकारिता की बात करें तो कहा जाता है कि विभिन्न भाषाएं पत्रकारिता की वाहन है जिस समाज में जिस भाषा का सबसे अधिक प्रयोग होता है वहीं उस भाषा में पत्रकारिता सबसे सशक्त होगी । नेपाल में पहले जिस हिसाब से मैथिली का चलन था अब वह भी थोड़ा कम नजर आता है। मैथिली भाषा की पत्रकरिता मजबूत करने के लिए इस भाषा के प्रयोग पर जोर देना होगा। उन्होंने कहा कि मैथिली भाषा के पत्रकार भी अब कम हो रहे हैं।
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