आदिवासियों की ब्रह्मा पूजा की तैयारियां शुरू, प्रकृति को साक्षी मानकर करते हैं आराधना
रानीगंज के सिसवाबाड़ी गांव में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आदिवासी समाज द्वारा ब्रह्म यज्ञ की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं। यह यज्ञ दो दिन चलेगा, जिसमें कलश यात्रा और अग्नि पूजा शामिल हैं। पिछले 17...
रानीगंज । एक संवाददाता हर साल कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर रानीगंज के पहुंसरा पंचायत के सिसवाबाड़ी गांव में आदिवासी समाज की ओर से की जाने वाली ब्रह्म यज्ञ की तैयारी शुरू हो चुकी है। दो दिवसीय ब्रह्मा यज्ञ की शुरुआत में बुधवार को भव्य कलश यात्रा निकाली जायेगी। इसके बाद गुरुवार को अग्नि पूजा की जायेगी। पहुंसरा पंचायत के सिसुवा कोवाबाड़ी में पिछले 17 सालों से चली आ रही है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यह ब्रह्मा यज्ञ को मूल रूप से आदिवासी समाज के लोग बड़े ही निराले अंदाज से मनाते आ रहे हैं। इस यज्ञ में साध्वी एक हफ्ते तक दिनों तक बिना अन्य जल ग्रहण किये रहते है। फिर आठवें दिन ब्रह्मा यज्ञ के दिन दहकती अग्नि पर चलकर सनातन धर्म में अपनी अटूट आस्था को दिखाते है कि अगर ब्रह्मा में विश्वास हो तो दहकती अग्नि में नंगे पांव चलकर और नुकीली कील पर बैठने से भी कुछ नहीं होता है। दहकती अग्नि में चलने के बाद लोहे की कील पर बैठकर सिद्ध किया जाता था कि भक्ति से बड़ी कोई शक्ति नही हो सकती है।
कैसे हुई इस यज्ञ की शुरुआत:
पहुंसरा पंचायत की साध्वी सुरजमनी सौरेन बताती है कि करीब 17 साल पहले सपना आया था कि मानव जीवन की भलाई करनी चाहिए। ऐसा लगा कि कुछ देवी शक्ति है। फिर इस देवी शक्ति को लोगों में अटूट विश्वास दिलाने के लिए नौ दिनों तक बीना अन्न जल के रहने के बाद यज्ञ किया गया। इस यज्ञ में कई तरह की अद्भुत दृश्य होता है। साध्वी समेत गांव की कई लोग इसमें भाग लेते है। इसके बाद धीरे धीरे साध्वी लोगों के कष्ट दूर किया करती थी।
कैसे होती थी ब्रह्मा यज्ञ:
यज्ञ माता सुरजमनी देवी, सावित्री देवी, आभा देवी, सनद देवी, आदि ने बताया कि हाल के दिनों में कुछ विदेशी लोगों के द्वारा खासकर आदिवासी समाज के लोगो को बड़ी संख्या में धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। खासकर विदेशी ईसाई मिशनरियों के द्वारा जगह जगह पर चर्च आदि बनाकर व अन्य कई तरह के प्रलोभन देकर लोगों को ईसाई बनाया जा रहा है। जबकि सनातनी हिन्दू धर्म ही शाश्वत धर्म है। इस महान यज्ञ के द्वारा लोगों को यह दिखाया जाता था कि नौ दिनों तक भूखे पियासे रहने के बाद सच्ची श्रद्धा के साथ दहकती आग पर चलने से भी कुछ नही होता है। वही लोहे की नुकली बड़ी सी कील पर सीधा बैठ जाने के बाद भी दर्द नही होता है, और न ही कोई खून निकलता है। वही इस यज्ञ का दूसरा बड़ा उद्देश्य यह है कि ब्रह्मा यज्ञ के द्वारा आदिवासी समुदाय के लोग सात दिन रात पीना अन जल के रहकर परमपिता ब्रह्मा को खुश कर यह वरदान मांगते थे कि हमारी धरती हरी भरी रहें बाढ़, अकाल, व अन्य प्राकृतिक आपदा के साथ जंगली जानवरों का भय नही रहे। आदिवासियों का मानना है कि इस यज्ञ के प्रभाव से अकाल मृत्यु नहीं होती है। वहीं यज्ञ की तैयारियों को लेकर क्षेत्र के आदिवासियों में खुशी है।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।