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बोले आरा : गाय-भैंस खरीदने के लिए लोन और अनुदान आसानी से मिले

दूध का दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण उपयोग होता है, लेकिन किसानों को बढ़ती महंगाई के कारण दूध की उचित कीमत नहीं मिल रही है। इससे दूध उत्पादक किसानों का दूध उत्पादन कम हो रहा है। सरकार की योजनाओं का लाभ...

Newswrap हिन्दुस्तान, आराSun, 23 Feb 2025 10:56 PM
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बोले आरा : गाय-भैंस खरीदने के लिए लोन और अनुदान आसानी से मिले

दूध का दैनिक जीवन में रोजाना उपयोग होता है। इससे बनाये गये विभिन्न उत्पादों की भी काफी मांग है। सच कहें तो मांग के अनुरूप दूध का उत्पादन नहीं हो पाता है, जिससे मिलावट का धंधा भी खूब फल-फूल रहा है। ऐसे में दूध उत्पादन ग्रामीण किसानों के जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन रहा है। यह पशुपालक किसानों की आय का मुख्य श्रोत माना जाता है। लेकिन, दूध उत्पादक किसान इन दिनों विभिन्न परेशानियों का सामना कर रहे हैं। गाय-भैंस और चारा की लगातार महंगाई के अनुपात में किसानों के दूध का सही मूल्य नहीं मिल पाता है। अगर समय रहते सरकार इस पर ध्यान नहीं देती है और इस दिशा में समुचित कदम नहीं उठाये गये, तो लोगों को शुद्ध दूध के लिए तरसना पड़ सकता है।

भोजपुर जिले के दूध उत्पादकों को महंगाई के अनुपात में कीमत नहीं मिल पा रही है। इस कारण दूध उत्पादन से किसानों का धीरे-धीरे मोह भंग होता जा रहा है। भारत में श्वेत क्रांति जिसे ऑपरेशन फल्ड के नाम से जाना जाता है, 1970 ई. में शुरू की गई राष्ट्रीय पहल थी। इसका मुख्य उदेश्य दूध उत्पादन बढ़ाना और एक आत्मनिर्भर डेयरी उद्योग का निर्माण करना था। इस क्रांति का मकसद भारत को दूध की कमी से मुक्ति दिलाना और उसे दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बनाना था। इस क्रांति के जरिए भारत में डेयरी किसानों की आजीविका में सुधार हुआ और ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिला। इस क्रांति के जरिए भारत में दूध का उत्पादन प्रति व्यक्ति खपत का दोगुना हो गया था। आज डेयरी से भी दूध उत्पादकों को उचित कीमत नहीं मिल पा रहा है। जिस हिसाब से मवेशियों के अलावा उनके चारे के दाम आसमान छूते जा रहे हैं, उस हिसाब से दूध की कीमत ना तो डेयरी में मिल पा रही है और न बाजार में मिल रही है। दूध उत्पादक किसानों की समस्याओं और सुझावों को जानने के लिए आपके अपने प्रिय हिन्दुस्तान अखबार ने बोले आरा संवाद किया। इस दौरान दूध उत्पादकों ने अपनी समस्याएं बताने के साथ सरकार और प्रशासन के समक्ष सुझाव भी रखे। दूध उत्पादकों का कहना है कि सरकार के उदासीन रवैये के कारण भोजपुर दूध उत्पादकता में पिछड़ता जा रहा है। किसानों का कहना है कि सरकार की ओर से दूध उत्पादक किसानों के लिए चलाई जा रही किसी भी योजना का लाभ किसानों को सहजता से नहीं मिल पाता है। किसान उन जटिल प्रक्रियाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं। कुछ बिचौलिये पदाधिकारियों के साथ मिलकर सरकार से मिलने वाले अनुदान को खा जाते हैं। गव्य विकास विभाग से हर वर्ष पशुपालक किसानों के लिए पशु शेड निर्माण व गाय खरीदने के लिए लोन और उस पर अनुदान देने की योजना है। लेकिन प्रचार-प्रसार और जागरूकता की कमी के कारण किसानों को उसका लाभ नहीं मिल पाता है। साथ ही मनरेगा विभाग से भी पशु शेड बनाने की योजना है, लेकिन उसका लाभ भी किसानों को नहीं मिल पाता है। किसान प्रखंड मनरेगा कार्यालय में आवेदन कर दौड़ते रह जाते हैं, लेकिन किसानों को इसका फायदा नहीं मिल पाता है। फुलाड़ी गांव निवासी किसान नागेंद्र सिंह और अजय सिंह बताते हैं कि सरकार की कोई योजना का लाभ हम पशुपालकों को नहीं मिलता है। गांव में प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सालय है, लेकिन पशु चिकित्सक नियमित नहीं रहते हैं। पशुओं की बीमारी होने पर सरकारी पशु अस्पतालों में दवा भी नहीं मिलता है। कमोबेश जिले भर के पशु अस्पतालों की यही हालत है। किसानों को डेयरी फॉर्म में 30 से 35 रुपये प्रति लीटर न्यूनतम रेट दूध का मिलता है, लेकिन अगर किसान को शादियों व अन्य उत्सवों पर दूध की जरूरत पड़े तो वही दूध 55 से 60 रुपये प्रति लीटर खरीदना पड़ता है। महंगी खली, चोकर, दाना एवं पशु चारा खरीद कर मवेशियों को खिलाया जाता है, लेकिन उस अनुपात में दूध की उचित कीमत नहीं मिल पाती है। दुधारू पशुओं की कीमत भी काफी अधिक है। ऐसे में किसानों के पास पशुओं की मात्रा कम होती जा रही है। महंगी कीमत पर मवेशियों को खरीदने के बाद यदि गंभीर बीमारी या महामारी में पशु की मृत्यु हो जाती है, तो किसानों को उसका मुआवजा नहीं मिलता है। इससे किसानों की कमर टूट जाती है। पशु बीमा का लाभ भी किसानों को नहीं मिल पाता है। गंभीर बीमारी या महामारी के प्रकोप से पशुओं को बचाने के लिए जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन भी नहीं होता है। इससे पशुपालक किसानों को काफी समस्या होती है। साथ ही किसान दूध उत्पादन धीरे-धीरे कम करते जा रहे हैं।

पशु बीमा एवं अनुदान से किसान होंगे समृद्ध

दूध उत्पादक किसानों को समय-समय पर असानी से पशु बीमा कराया जाए और नुकसान होने पर असानी से उसका लाभ मिल जाए तो किसान काफी हद तक ठीक हो सकते हैं। साथ ही गव्य विकास विभाग से मिलने वाला अनुदान सभी पशुपालक किसानों को असानी से मिलेगा तो दूध उत्पादन की क्षमता में वृद्धि होने लगेगी। प्रायः गरीब किसानों को मवेशियों के रखने के लिए शेड नहीं रहता है। मनरेगा विभाग या गव्य विकास विभाग की ओर से असानी से पशु शेड निर्माण कराया जाए, तो काफी सहूलियत होगी।

शिकायत

1. गाय-भैंस की खरीद पर असानी से ऋण एवं अनुदान नहीं मिल पाता है।

2. पशुओं की बीमारी से मृत्यु के बाद मुआवजा नहीं मिलता है।

3. पशु चिकित्सालयों में चिकित्सकों की कमी और समुचित दवाएं उपलब्ध नहीं रहती हैं।

4. पशु बीमा का लाभ पशुपालक किसानों को नहीं मिल पाता है।

5. पशु शेड निर्माण के लिए अनुदान आसानी से नहीं मिलता है।

सुझाव

1. गव्य विकास विभाग से पशु खरीदारी के लिए ऋण एवं अनुदान सभी किसानों को आसानी से मिलना चाहिए।

2. गंभीर बीमारी या महामारी से पशु की मृत्यु के बाद किसानों को मुआवजा का प्रावधान होना चाहिए।

3. प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सालय में नियमित चिकित्सक एवं दवा की उपलब्धता रहनी चाहिए।

4. सरकार की ओर से सभी किसानों के मवेशियों का मुफ्त पशु बीमा का लाभ मिलना चाहिए।

5. सभी जरूरतमंद किसानों को पशु शेड निर्माण के लिए अनुदान की राशि स्वीकृत होनी चाहिए।

उभरा दर्द

सरकार की ओर से आसानी से दूध उत्पादक किसानों को कोई सुविधा या लाभ नहीं दिया जाता है। इससे महंगाई को देखते हुए किसान धीरे-धीरे मवेशी रखने से मुंह मोड़ने लगे हैं।

जोगेंद्र सिंह, फुलाड़ी

चोकर-दाना और चारा महंगा होने से मवेशियों को अच्छा आहार नहीं मिल पाता है। इससे दूध उत्पादन कम हो जाता है और मवेशी बांझपन का शिकार हो जाते हैं।

शिवाधार शर्मा, फुलाड़ी

पशु शेड निर्माण योजना गव्य विकास विभाग और मनरेगा विभाग से किसानों के लिए चलायी गयी है। लेकिन वास्तविक किसान को इसका लाभ असानी से नहीं मिल पाता है।

लक्ष्मण सिंह, फुलाड़ी

मवेशियों के लिए दवा एवं टीका समय पर नहीं उपल्ब्ध हो पाता है। इससे मवेशी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। इससे मवेशियों के रखरखाव में परेशानी होती है और असमय मौत भी हो जाती है।

आसनारायण सिंह, फुलाड़ी

प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सालय फुलाड़ी में नियमित डॉक्टर उपल्बद्ध नहीं रहते हैं। इससे मवेशियों के इलाज में परेशानी होती है। दवा के लिए ग्रामीण चिकित्सकों का सहारा लेना पड़ता है।

अनुज कुमार, फुलाड़ी

सरकार की ओर से मवेशियों के लिए चलायी जा रही योजनाओं का किसी प्रकार का लाभ या अनुदान आज तक नहीं मिला है। अगर असानी से मिलता तो काफी सहूलियत होती।

राहुल कुमार, किसान, भीमपुरा

पशु शेड बनाने के लिए कई बार प्रखंड में चक्कर लगाया, लेकिन आज तक पशुशेड का लाभ नहीं मिला। इससे मवेशियों को बरसात के मौसम में रखने में दिक्कत होती है।

गजेंद्र कुमार, भीमपुरा

पशुपालन योजना के तहत किसानों को कोई भी लाभ आसानी से नहीं मिल पाता है। इससे किसान उस योजना से वंचित रह जाते हैं। मवेशियों के लिए उचित व्यवस्था हो तो दूध उत्पादन बढ़ेगा।

विजय सिंह, फुलाड़ी

30 से 35 रुपये प्रति लीटर दूध का दाम डेयरी से मिलता है। लेकिन, शादी-विवाह में खरीदने जाते हैं तो वही दूध 55 से 60 रुपये में मिलता है। आखिर दूध उत्पादक किसानों को उचित मूल्य कब मिलेगा?

अजय सिंह, फुलाड़ी

मवेशियों की बीमारी के समय सरकारी पशु अस्पताल में दवाएं नहीं मिलती हैं। इससे दुकान से महंगी दवाई खरीदनी पड़ती है। सभी किसान यह व्यय करने में सक्षम नहीं होते हैं।

रामविनय सिंह, फुलाड़ी

समय पर टीकाकरण नहीं होने से मवेशियों को विभिन्न प्रकार की बीमारी हो जाती है। इससे किसानों को काफी नुकसान होता है। दूध उत्पादन पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है और नुकसान उठाना पड़ता है।

मनोरंजन सिंह, किसान, फुलाड़ी

पशुपालन विभाग की ओर से चलाई जा रही किसी भी योजना का लाभ वास्तविक किसानों को असानी से नहीं मिलता है। इससे किसानों को पशुपालन में काफी समस्या उत्पन्न होती है।

श्रीकांत सिंह, फुलाड़ी

गंभीर बीमारी या महामारी के प्रकोप से मवेशियों के मरने पर किसान को कोई मुआवजा नहीं मिलता है। इससे पशुपालक किसान तुरंत दुबारा मवेशी नहीं खरीद पाते हैं। इससे काफी नुकसान होता है।

कामेश्वर यादव, फुलाड़ी

महंगाई के अनुपात में दूध की किमत किसानों को नहीं मिलती है। साथ ही दुधारू पशुओं की कीमत भी काफी महंगी हो गयी है। इससे किसान मवेशी पालन काफी कम कर दिये हैं। इससे मांग के अनुरूप जिले में दूध की आपूर्ति नहीं हो पा रही है।

विजय साव, फुलाड़ी

ग्रामीण स्तर पर पशु चिकित्सक की कमी से बीमारी या महामारी के प्रकोप में अधिकतर मवेशी आ जाते है। तब किसानों को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। ग्रामीण चिकित्सक से इलाज कराना काफी महंगा पड़ता है।

दीपक कुमार, फुलाड़ी

खली, चोकर, दाना एवं पशु चारा महंगा होने से किसान पशुपालन पहले की तुलना में काफी कम कर दिये हैं। कारण भी स्पष्ट है कि महंगाई के अनुपात में पशुपालक किसानों को प्रत्यक्ष लाभ नहीं मिल पाता है।

श्रीनिवास यादव, किसान, फुलाड़ी

पशु बीमा का लाभ किसानों को असानी से नहीं मिल पाता है। इस कारण मवेशियों की मौत से किसानों की कमर टूट जाती है। इसके फलस्वरूप किसान मवेशी रखना कम कर देते हैं। इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

रामप्रवेश यादव, फुलाड़ी

पशुपालन से संबंधित ट्रेनिंग किसानों को पशुपालन विभाग से समय-समय पर नहीं दी जाती है। इससे नयी-नयी बीमारियों का प्रकोप होता है और मवेशियों के रखरखाव में दिक्कत होती है। दूध उत्पादन पर प्रतिकूल असर होता है।

शत्रुघ्न यादव, फुलाड़ी

गंभीर बीमारियों एवं महामारी के समय मवेशियों के बचाव के लिए समुचित जागरूकता कार्यक्रम नहीं चलाया जाता है। इससे किसान होने वाले रोगों से पूर्व में आगाह नहीं हो पाते हैं। इससे नुकसान उठाना पड़ता है।

अखिलेश सिंह, फुलाड़ी

सरकार एवं पशुपालन विभाग की ओर से दिया जाने वाला कोई भी लाभ वास्तविक मवेशी पालक किसानों को असानी से नहीं मिल पाता है। इससे दूध उत्पादन को बढ़ावा देने में मुश्किलें आ रही हैं।

अभय सिंह, भीमपुरा

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