भोजपुरी संस्कृति में सद्भाव, सहकार और समर्पण महत्वपूर्ण : प्रो तिवारी
-भोजपुरियत को भूल रहा भोजपुरिया समाज भोजपुरी समाज और संस्कृति की बुनियाद में सद्भाव, सहकार और समर्पण की भावना अंतर्निहित है। भोजपुरिया समाज आज भोजपुरियत को
-भोजपुरियत को भूल रहा भोजपुरिया समाज आरा, निज प्रतिनिधि। भोजपुरी समाज और संस्कृति की बुनियाद में सद्भाव, सहकार और समर्पण की भावना अंतर्निहित है। भोजपुरिया समाज आज भोजपुरियत को भूलकर पाश्चात्य प्रभाव में अपनी भाषा और साहित्य से दूर हो रहा है, जिसकी वजह से भोजपुरी भाषा की संवैधानिक मान्यता को भी बल नहीं मिल रहा। ये बातें भोजपुरी छात्र संघ की ओर से आयोजित कार्यक्रम बात बतकही संवाद कार्यक्रम के दौरान बतौर मुख्य वक्ता पीजी कॉलेज, गाजीपुर के प्राध्यापक और भोजपुरी के चर्चित विद्वान डॉ रामनारायण तिवारी ने कहीं। उन्होंने आगे कहा कि भोजपुरी संस्कृति सदैव से समृद्ध रही है और नारी विमर्श, अधिकारों के प्रति सजगता, पर्यावरण चिंतन हमेशा से इसका अंग रहा है, जो भोजपुरी लोकगीतों में प्रत्यक्षतः दिखता है। भोजपुरी लोक की संस्कृति शास्त्रीय पद्धति से अलग रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आज का भोजपुरिया समाज हीन भावना से ग्रसित है और अपनी मूल भाषा को अपना नहीं रहा है। अध्यक्षता करते हुए प्रो नीरज सिंह ने कहा कि भोजपुरिया समाज पूंजीवाद के प्रभाव में आ गया है, जिसके फलस्वरूप भोजपुरी संस्कृति संक्रमण के दौर से गुजर रही है। आलोचक जितेंद्र कुमार ने कहा कि भोजपुरी भाषा संस्कृति और समाज पर व्यापक नजरिए से अकादमिक शोध की जरूरत है। धन्यवाद ज्ञापन देते हुए प्रो दिवाकर पांडेय ने भोजपुरी लोक संस्कृति की विशेषताओं को रेखांकित किया। संचालन रवि प्रकाश ने किया। उपस्थित लोगों में प्रो बलिराज ठाकुर, जनार्दन मिश्र, कृष्ण कुमार, रामयश अविकल, जन्मेजय जी, कुमार अजय सिंह, कौशल्या शर्मा, नरेंद्र सिंह, आशुतोष पांडेय, ओ पी पांडेय, रवि शंकर सिंह, सुमन कुमार सिंह, रौशन कुशवाहा, रवि कुमार के अलावा भोजपुरी आंदोलन से जुड़े कई साहित्यकार, पत्रकार, मीडियाकर्मी और छात्र उपस्थित थे।
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