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आरा बोले : दर्जियों को आधुनिक फैशन डिजाइनिंग, कटिंग और सिलाई का प्रशिक्षण मिले

भोजपुर में दर्जियों की कला अद्भुत है, लेकिन रेडीमेड कपड़ों और ऑनलाइन शॉपिंग के कारण उनकी परंपरा खतरे में है। बढ़ती लागत, कम आमदनी और नई पीढ़ी का इस पेशे से दूर जाना बड़ी चुनौतियाँ हैं। अगर उन्हें...

Newswrap हिन्दुस्तान, आराTue, 11 March 2025 12:36 AM
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आरा बोले : दर्जियों को आधुनिक फैशन डिजाइनिंग, कटिंग और सिलाई का प्रशिक्षण मिले

भोजपुर में दर्जियों का हुनर बेमिसाल है, लेकिन रेडीमेड फैशन और ऑनलाइन शॉपिंग की चमक में उनकी कला फीकी पड़ रही है। आधुनिकता और रेडीमेड कपड़ों के बढ़ते प्रचलन ने दर्जी समुदाय और उनके पारंपरिक व्यवसाय को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। कम होती आमदनी, बढ़ती लागत और घंटों झुककर काम करने से होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं उनके लिए बड़ी चुनौतियां हैं। नई पीढ़ी इस पेशे से दूर हो रही है, जिससे यह परंपरा खत्म होने की कगार पर है। ये चुनौतियां और बदलाव न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी दर्जी समुदाय को प्रभावित कर रहा है। यदि दर्जियों को आधुनिक फैशन डिजाइनिंग, कटिंग और सिलाई तकनीकों में समुचित व सहजता से प्रशिक्षण मिले तो इनके व्यवसाय को भी पंख लगा सकते हैं।

भोजपुर के गड़हनी स्थित गोला बाजार, राजा मार्किट, पुरानी बाजार सहित विभिन्न प्रखंडों में दर्जी की दुकानें वर्षों से चल रही हैं। लकड़ी की पुरानी मेज, दीवारों पर टंगे कपड़े के नमूने और सिलाई मशीन की टक-टक की आवाज इनकी दुकान की पहचान है। सहार बस पड़ाव स्थित शमशाद अली बीते 27 सालों से अपना पेशा करते आ रहे हैं। अपने हुनर में माहिर हैं, लेकिन बदलते समय के साथ उनका संघर्ष भी बढ़ता जा रहा है। सुबह नौ बजे ही रहमत अपनी दुकान पर पहुंच जाते हैं। उन्होंने बताया कि वे दुकान खोलते ही सबसे पहले वे अपनी पुरानी सिलाई मशीन की सफाई करते हैं। इसके बाद वे ग्राहकों के इंतजार में बैठे रहते हैं। उनके अनुसार बड़े ब्रांड और फैक्ट्रियों से प्रतिस्पर्धा करना छोटे दर्जियों के लिए मुश्किल हो गया है। आधुनिकता के इस दौर में परिवार चलाना कठिन हो गया है। सहार थाना स्थित आजम कहते हैं कि पहले लोग अपने पसंदीदा दर्जी के पास ही कपड़े सिलवाने जाते थे, लेकिन आजकल रेडीमेड कपड़ों का दौर है। बड़े ब्रांड और ऑनलाइन शॉपिंग ने छोटे दर्जियों का बाजार सीमित कर दिया है। पहले शादी-विवाह में पूरा परिवार हमारे पास आता था। दूल्हे का कोट-पैंट, दुल्हन की साड़ी ब्लाउज, बच्चों के कपड़े-सब यहीं सिलते थे। अब मॉल और ऑनलाइन शॉपिंग ने हमारा धंधा मंदा कर दिया है। वर्ष 1975 से दर्जी के पेशे से जुड़े मुमताज अहमद इदरीशी ने बताया कि नई पीढ़ी अब फैंसी डिज़ाइनर कपड़ों की ओर आकर्षित हो रही है, जिससे पारंपरिक दर्जियों का काम प्रभावित हो रहा है। हालांकि, कुछ ग्राहक अब भी अपने खास मौकों के लिए कस्टम मेड कपड़े पसंद करते हैं, जिससे हमारा धंधा किसी तरह चल रहा है। हमारा काम मेहनत से भरा होता है, लेकिन आमदनी सीमित होती है। एक अच्छे सूट की सिलाई में कई घंटे लग जाते हैं, लेकिन मुनाफा बहुत कम होता है। इससे हमारा परिवार बमुश्किल चल पाता है। आबगीला रोड स्थित टेलर बबलू खान के अनुसार हर साल धागा, बटन, सुई और सिलाई मशीनों के पार्ट्स महंगे होते जा रहे हैं, लेकिन हम अपने दाम ज्यादा नहीं बढ़ा सकते, वरना ग्राहक भड़क जाएंगे। बड़े त्योहारों के समय जरूर कुछ अतिरिक्त कमाई हो जाती है, लेकिन ऑफ सीजन में ग्राहकों की संख्या काफी घट जाती है। ऐसे में दुकान का भाड़ा, बिजली बिल, कारीगरों की तनख्वाह देना भी मुश्किल हो जाता है।

रेडीमेड कपड़ों के प्रचलन से निपटना बड़ी चुनौती

दर्जी बताते हैं कि पुराने समय में दर्जियों का बहुत सम्मान था। लोग रेडीमेड कपड़ों की बजाय अपनी पसंद के कपड़े सिलवाना ज्यादा पसंद करते थे। हर कपड़े में एक खास अंदाज और कारीगर की मेहनत झलकती थी, लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। लोग जल्दी में रहते हैं, वे रेडीमेड कपड़ों को प्राथमिकता देते हैं, जिससे हमारी मेहनत की कीमत घट गई है। हालांकि, अब भी कुछ ग्राहक ऐसे हैं जो अपने शरीर के नाप के हिसाब से सही फिटिंग वाले कपड़े सिलवाना पसंद करते हैं। यही ग्राहक हमारी दुकान का सहारा बने हैं। आफताब आलम ने कहा इस व्यवसाय में लंबे समय तक काम करने के कारण दर्जियों को कई शारीरिक समस्याएं भी हो जाती हैं। लगातार झुके रहने और महीनों तक बारीक धागों और कपड़ों पर ध्यान केंद्रित करने से उनकी आंखों पर असर पड़ता है। कमर और गर्दन में दर्द आम समस्या बन जाती है।

कच्चा माल कम कीमत पर उपलब्ध कराया जाये

बुजुर्ग दर्जियों के पास उम्र बढ़ने के बाद दूसरा कोई काम नहीं बचता, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है। कुछ दर्जी इस समस्या से निपटने के लिए अपने बच्चों को इस काम में लगाना चाहते हैं, लेकिन नई पीढ़ी इसे अपनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाती। युवाओं का झुकाव नौकरियों या अन्य व्यवसायों की ओर है, जिससे पारंपरिक दर्जी का पेशा धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर पहुंच रहा है। शंकर दयाल चौधरी, जो दर्जियों की दुकानों से कपड़े लेकर घर पर सिलाई का काम करते हैं। बताते हैं कि पहले की अपेक्षा अब कम कपड़े मिलते हैं। सिलकर घर बैठे कुछ आमदनी कमा लेते हैं। हालांकि, इस काम में मुनाफा सीमित है और नियमित रूप से काम नहीं मिलता। मुख्यत: लग्न और त्योहारों के समय ही काम मिलता है। वह मानते हैं कि छोटे कारीगरों के लिए विशेष योजनाएं बनाई जाएं, तो हजारों पुरुष व महिलाओं को लाभ हो सकता है। कम लागत पर कच्चा माल उपलब्ध कराना और विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना जरूरी है, जिससे वे नई तकनीकों को अपना सकें।

छोटे दर्जियों को भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर सेवाएं देने का अवसर मिले तो काम को मिलेगा बढ़ावा

डिजिटल युग में छोटे दर्जियों को भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपनी सेवाएं देने का अवसर मिले, तो उनके काम को बढ़ावा मिल सकता है। हालांकि, उन्हें सरकार से मदद की उम्मीद नहीं है। इसलिए वे अपने स्तर पर नई संभावनाएं तलाश रहे हैं। सोशल मीडिया और व्हाट्सएप के ज़रिए उन्होंने ग्राहकों से संपर्क बनाए रखना शुरू किया है और होम डिलीवरी की सुविधा देने पर भी विचार कर किया जा रहा है। उनका मानना है कि इससे काम थोड़ा बढ़ सकता है, लेकिन रेडीमेड बाजार का मुकाबला करना संभव नहीं। वे कहते है कि हमें अपने पेशे पर गर्व है। लेकिन, यह भी समझते हैं कि इस व्यवसाय को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। यदि हालात ऐसे ही रहे, तो दर्जी की दुकानें धीरे-धीरे खत्म हो सकती हैं, जिससे हमारी आय के साथ पुरानी परंपरा भी लुप्त हो जाएगी।

शिकायतें

1. बड़े ब्रांड और ऑनलाइन शॉपिंग ने छोटे दर्जियों की कमाई को बुरी तरह प्रभावित किया है।

2. युवा अब दर्जी का काम नहीं अपनाना चाहते, जिससे यह परंपरागत पेशा खत्म होने की कगार पर है।

3. लगातार झुककर काम करने से कमर, आंखों और गर्दन की समस्याएं दर्जियों की जिंदगी का हिस्सा बन गई हैं।

4. सरकार की ओर से छोटे कारीगरों के लिए कोई ठोस मदद नहीं मिलती, जिससे संघर्ष और बढ़ जाता है।

5. घर से सिलाई का काम करने वाली महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता व प्रशिक्षण नहीं मिलता है।

सुझाव

1. आधुनिक डिजाइनों और ग्राहकों की बदलती पसंद को ध्यान में रखते हुए नई तकनीकों और ट्रेंड्स स्टाइल की ट्रेनिंग दी जाए।

2. छोटे दर्जियों के लिए सब्सिडी व अन्य सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाए।

3. दर्जी के पेशे को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए फैशन डिजाइन और सिलाई का ट्रेनिंग सेंटर शुरू किया जाए।

4. ग्रामीण क्षेत्रों में दर्जियों के लिए वर्कशॉप स्थापित करे, जहां वे आधुनिक मशीनें इस्तेमाल करना सीख सके।

5. बड़े ब्रांड्स पर छोटे कारीगरों के हित में कुछ नियम बनाएं, ताकि दर्जियों को प्रतिस्पर्धा में टिकने का मौका मिले।

उभरा दर्द

मशीनें जब खराब होती हैं, तो पूरा काम रुक जाता है। लेकिन, ग्राहकों को समझाना मुश्किल होता है। कभी-कभी हमें पूरी रात जगकर ऑर्डर पूरे करने पड़ते हैं। इसके बाद भी ग्राहकों से सही मेहनताना नहीं मिल पाता है। इससे परेशानी होती है। घर-परिवार चलाना मुश्किल हो जाता है।

मो. रफी, गड़हनी

पुराने समय में शादी-विवाह के सारे कपड़े हम ही सिलते थे। अब मॉल ने सब बदल दिया। सब लोग रेडिमेड की ओर भाग रहे हैं। इस काम में अब पहले जैसी कमाई नहीं रही। कम मुनाफा में ही काम चलाना पड़ता है। कई बार कर्ज लेकर गुजारा करना पड़ता है।

शंकर दयाल चौधरी, गड़हनी

कपड़े सिलने के काम आने वाली चीजें महंगे हो गई हैं। धागा से लेकर बटन तक के दाम पहले की अपेक्षा बढ़ा ही है, लेकिन ग्राहक दाम बढ़ाने पर नाखुश हो जाते हैं। हमें अपनी लागत निकालने में भी परेशानी होती है। ग्राहक हमारी परेशानी को समझने को तैयार नहीं हैं।

अब्दुल बारीक जिलानी, गड़हनी

त्योहारों में काम थोड़ा-बहुत बढ़ जाता है। लेकिन, ऑफ-सीजन में दुकान का खर्च निकालना मुश्किल होता है। कई बार कर्ज लेकर गुजारा करना पड़ता है। पहले पर्व-त्योहार के माह में पूर्व से ही कपड़े की सिलाई शुरू हो जाती थी। अब लोग रेडीमेड कपड़ों की ओर रूख कर रहे हैं।

अब्दुल रसीद, गड़हनी

नई पीढ़ी दर्जी का काम सीखना नहीं चाहती, जिससे यह हुनर खत्म होने की कगार पर है। हमारे बाद इसे आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं बचा। कई बार कर्ज लेकर गुजारा करना पड़ता है। कर्ज चुकाने में कई माह लग जाता है। खर्च बढ़ने के कारण कर्ज चुकाना आसाना नहीं होता है।

मकसूद आलम,गड़हनी

हमें ट्रेनिंग व उन्नत किस्म की मशीन मिले, तो हम भी बड़े ब्रांड्स से मुकाबला कर सकते हैं। अभी पुरानी तकनीक की मशीन से ही गांवों में सिलाई का काम चल रहा है। लोग रेडीमेड कपड़ों की सिलाई से तुलना करते हैं। ऑनलाइन शॉपिंग की चमक के आगे हमारा काम फीका पड़ गया है।

शहाबुद्दीन उर्फ गेड़ा, गड़हनी

बड़े ब्रांड और ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म ने फैशन ट्रेंड्स को तेजी से बदल दिया है। इससे दर्जियों के लिए ग्राहकों की मांग को पूरा करना मुश्किल हो गया है। स्थानीय स्तर पर बड़े ब्रांड का मुकाबला करना संभव नहीं है। हमें तो अपनी आजीविका चलाने की फिक्र रहती है।

मो. खालिक, डिहरी टोला, सहार

युवा पीढ़ी दर्जीगिरी को एक व्यवहार्य कॅरियर विकल्प के रूप में नहीं देखती है। इससे यह पारंपरिक हुनर खत्म होने की कगार पर है। हमारे बाद इसे आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं बचा। टेलर की दुकानों पर पहले की अपेक्षा भीड़ कम हुई है। ग्राहक अन्य विकल्प तलाश रहे हैं। इससे परेशानी है।

हदीश अंसारी, आबगिला

पुराने समय में शादी-विवाह के सारे कपड़े हम ही सिलते थे। पहले से तैयारी चलती थी। समय कम रहने पर लोग कपड़े सिलवाने की बजाय रेडीमेड कपड़ों की खरीदारी कर रहे हैं। इस काम में अब पहले जैसी कमाई नहीं रही। बेटियों की शादी के लिए कर्ज लेकर गुजारा करना पड़ता है।

गयासुद्दीन अंसारी, सहार बाजार

युवा पीढ़ी का मिजाज बदला है। वे रेडीमेड कपड़ों को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं। कपड़े की मजबूती की बजाय वे फैशन पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमारा काम मारा जा रहा है। पर्व-त्योहार और शादी-विवाह के मौसम को छोड़ दिया जाये, तो अन्य दिनों में काम नहीं मिलता है।

गुड्डू अंजुम, सहार

रेडीमेड कपड़ों के कारण दर्जियों की मांग कम हो गई है। इससे हमारी आय में भारी गिरावट हुई है। पहले जैसी अब आमदनी भी नहीं रह गयी है, जिससे बच्चे को पढ़ाने-लिखाने में भी बहुत परेशानी हो रही है। कमाई कम होने के कारण अन्य समस्या भी झेलनी पड़ती है।

बबलू, कारीगर

हमारी कला का सम्मान अब पहले जैसा नहीं रहा। लोग ब्रांड को महत्व देने लगे हैं। बड़े पैमाने पर कपड़ा उत्पादन में मशीनों का उपयोग बढ़ गया है। इससे हाथ से सिलाई का काम कम होता जा रहा है। सिलाई कराने आने वाले ग्राहक बड़ी मशीनों से तुलना करने लगते हैं।

खुर्शीद आलम, कारीगर

ऑनलाइन शॉपिंग की चमक के आगे हमारा काम फीका पड़ गया है। सोशल मीडिया के माध्यम से हम अपने उत्पादों को प्रमोट कर सकते हैं। टेलरिंग के काम को प्रमोट करने की जरूरत है, ताकि लोगों का भरोसा व विश्वास हम पर बढ़े। आज भी हम कम कीमत पर सिलाई कर रहे हैं।

कासिम आलम, कारीगर

फैशन के दौर में आजकल हमारी कला दम तोड़ रही है। हर कपड़े में हमारी मेहनत झलकती है, लेकिन रेडीमेड कपड़ों में वह बात नहीं होती। फिर भी लोग नामी ब्रांड को ही पसंद करते हैं। हम मेहनत तो खूब करते हैं, लेकिन, उसके अनुपात में कमाई नहीं हो पाती है।

साबिर इदरीशी, कारीगर

मेरी आंखों की रोशनी कम हो गई है, लेकिन दूसरा काम नहीं आता, यही करते रहना होगा। उम्र बढ़ने के साथ सिलाई करना और मुश्किल हो गया है। यही नहीं महंगाई ने भी कमर तोड़ रखी है। सरकार को चाहिए कि विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से कारीगरों को जोड़ें।

मो वसीम, खैरा बाजार

त्योहारों में काम थोड़ा बहुत बढ़ जाता है, लेकिन ऑफ सीजन में दुकान और बिजली का खर्च निकालना मुश्किल हो जाता है। कई बार कर्ज लेकर गुजारा करना पड़ता है। दुकान का खर्च और बिजली बिल कम होने वाला नहीं है। कुछ कपड़ों की सिलाई से खर्च नहीं निकल पाता है।

नबी हुसैन, सहार बस पड़ाव

आज के समय में लोग व्यक्तिगत शैली और फिटिंग के प्रति जागरूक हैं। दर्जी कस्टम मेड कपड़ों के माध्यम से इन मांगों को पूरा करता है। ऐसे में सरकार दर्जी समाज के इस पारंपरिक कार्य को बढ़ावा दे। इसके लिए ट्रेनिंग से लेकर नई तकनीक की मशीन उपलब्ध कराना चाहिए।

मो गुलफाम, खैरा बाजार

छोटे दर्जियों को व्यवसाय शुरू करने या बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता नहीं मिल पाती है। बैंक ऋण और अन्य वित्तीय साधनों तक उनकी पहुंच सीमित होती है। विभिन्न योजनाओं की जानकारी भी नहीं रहती और बैंक लोन देने से कतराते हैं। वित्तीय सहायता की मांग को पूरा करे सरकार।

लाल मोहम्मद अंसारी, ननऊर बाजार

ग्रामीण दर्जियों के समक्ष कई तकनीकी चुनौतियां होती हैं। हमारे पास पुराने और मैनुअल उपकरण होते हैं। यहां बिजली की अनियमित आपूर्ति से मशीनों का उपयोग प्रभावित होता है। ग्राहकों को कपड़े देने के लिए पहले से समय निर्धारित रहता है। समय पर डिलिवरी नहीं होने पर वे नाराज होते हैं।

अफताब आलम, सहार

फैशन के दौर में ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म्स ने फैशन ट्रेंड्स को तेजी से बदल दिया है। इससे दर्जियों के लिए ग्राहकों की मांग को पूरा करना मुश्किल हो गया है। दर्जी परंपरागत रूप से सिलाई करते हैं। वहीं नये दौर में लोग फैशन के अनुकूल कपड़ों की सिलाई कराना चाहते हैं। यह बड़ी समस्या है।

मुख्तार इदरीशी

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