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रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट नैनो, एक सपना, जो पूरा होकर भी रह गया 'अधूरा'

  • रतन टाटा ने मिडिल क्लास को दुनिया की सबसे सस्ती कार टाटा नैनो देने का सपना भी देखा। उसे साकार भी किया। ये बात अलग है कि वो इसमें सफल नहीं हो पाए। नैनो के सोचने और बनने की कहानी भी काफी दिलचस्प है।

Narendra Jijhontiya लाइव हिन्दुस्तानThu, 10 Oct 2024 10:32 AM
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रतन टाटा दुनिया 86 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए। उन्होंने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन से देशभर में शोक पसर गया है। रतन टाटा दिग्गज उद्योगपति होने के साथ एक ऐसे इंसान के तौर पर भी जाने जाते हैं जिन्होंने देश के मिडिल क्लास के बारे में हमेशा सोचा। फिर बात चाहे उसे नौकरी देने की रही हो, या फिर दूसरी सुविधाएं। उन्होंने मिडिल क्लास को दुनिया की सबसे सस्ती कार टाटा नैनो देने का सपना भी देखा। उसे साकार भी किया। ये बात अलग है कि वो इसमें सफल नहीं हो पाए। नैनो के सोचने और बनने की कहानी भी काफी दिलचस्प है।

दरअसल, एक तरफ जहां कई कार कंपनियां अपनी कारों से मोटा पैसा कमाने की सोचती हैं, ऐसे में रतन टाटा ने मिडिल क्लास की मजबूरी को देखते हुए और छोटे परिवार को कार देने के लिए नैनो के बारे में सोचा। रतन टाटा ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने एक फैमिली को स्कूटर पर जाते हुए देखा। पत्नी और 2 बच्चों के साथ स्कूटर पर उनकी हालत किसी सैडविज की तरह दिख रही थी। स्कूटर पर इस तरह बैठना काफी मुश्किल काम हो जाता है। खासकर बच्चे बड़े हों तो सफर और भी मुश्किल हो जाता है। यहां से ही उनके दिमाग में ये खयाल आया कि मिडिल क्लास के पास भी एक कार जरूर होनी चाहिए।

नैनो के सोचने और बनने की कहानी भी काफी दिलचस्प है।

स्क्टूर पर चलने वाली फैमिली की हालत को देखकर उन्होंने सोचा कि कितना अच्छा होता कि इन लोगों के पास एक छोटी सी ही सही, लेकिन एक कार होती। वे लोग कार में आराम से सीट पर बैठकर जाते। उन्हें धूल और बारिश की भी चिंता नहीं सताती। स्कूटर पर इस तरह जाते लोगों को देखकर उन्होंने एक छोटी कार बनाने की सोची। इसके बाद से वो सस्ती कार के सपने को साकार करने के लिए लग गए। जिसके बाद उन्होंने देश की सबसे सस्ती कार नैनो बनाने का फैसला लिया।

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अपनी इस कार के लिए उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था कि वे खाली समय में डूडल बनाते समय यह सोचता थे कि मोटरसाइकिल ही अगर ज्यादा सुरक्षित हो जाए तो कैसा रहेगा। ऐसा सोचते-सोचते उन्होंने एक कार का डूडल बनाया, जो एक बग्घी जैसा दिखता था। उसमें दरवाजे तक थे। इसके बाद सोचा कि उन्हें ऐसे लोगों के लिए कार बनानी चाहिए। जिसके बाद नैनो अस्तित्व में आई। रतन टाटा की इस ड्रीम कार को लखटकिया के नाम से भी जाना जाता है।

ऐसे तैयार हुई देश की सबसे सस्ती टाटा नैनो कार

रतन टाटा ने नैनो के डिजाइन का जिम्मा गिरीश वाघ को सौंपा था। गिरीश टाटा की एक और ड्रीम प्रोजक्ट को सफलतापूर्वक पूरा किया था। इस टीम ने टाटा 'S' नाम से छोटा ट्रक बनाया था। यह छोटा ट्रक छोटा हाथी के नाम से काफी मशहूर हुआ। वाघ और उनकी टीम ने करीब 5 साल तक नैनो पर काम किया। रतन टाटा ने 18 मई, 2006 को पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री और माकपा नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य और कॉमर्स मंत्री निरुपम सेन के साथ बैठक की। इसके बाद उन्होंने ऐलान किया कि टाटा नैनो का प्लांट पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के सिंगूर में लगाया जाएगा। इस परियोजना के लिए करीब 1000 एकड़ जमीन की जरूरत थी।

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जमीन मिलने के बाद सिंगूर के प्लांट में टाटा नैनो का प्रोडक्शन शुरू हुआ, लेकिन राजनीतिक विरोध और कर्मचारियों की सुरक्षा को देखते हुए रतन टाटा ने तीन अक्टूबर 2008 को कोलकाता में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ऐलान किया कि वो नैनो कार परियोजना को सिंगूर से हटाकर कहीं और ले जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने टाटा की इस महत्वाकांक्षी परियोजना को साणंद में लगाने का प्रस्ताव दिया। जिसके बाद टाटा नैनो का प्लांट 3,340 ट्रकों और करीब 500 कंटेनरों पर सवार होकर सिंगूर से साणंद पहुंच गचा। इस काम में सात महीने का समय लगा।

टाटा ने अपना प्लांट साणंद में लगाया। वहां टाटा नैनो का प्रोडक्शन शुरू हुआ। रतन टाटा ने 10 जनवरी, 2008 को दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित दिल्ली ऑटो एक्सपो में टाटा नैनो को लोगों के सामने पेश की। टाटा नैनो के बेसिक मॉडल की कीमत 1 लाख रुपए रुपए तय की गई। लॉन्च के साथ ही ये कार हिट हो गई। इसके इतनी ज्यादा बुकिंग मिली की कंपनी को डिमांड के चलते पहली एक लाख कारों को लॉटरी सिस्टम से देने का फैसला किया। इसके लिए दो लाख से अधिक लोगों ने आवेदन किया था। रतन टाटा ने 17 जुलाई, 2009 को पहली नैनो कार की चाबी कस्टम विभाग के कर्मचारी अशोक रघुनाथ विचारे को सौंपी थी।

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