जिन 8 दिनों में हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को दी थी भयंकर यातनाएं , उन्हें कहते हैं होलाष्टक
- हिरण्यकश्यप का धैर्य छूट रहा था। लाख समझाने पर भी उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति से नहीं डिग रहा था। इससे नाराज होकर उसने प्रह्लाद को दंड देने के लिए क्रूरतम तरीकों को आजमाना शुरू कर दिया।

हिरण्यकश्यप का धैर्य छूट रहा था। लाख समझाने पर भी उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति से नहीं डिग रहा था। इससे नाराज होकर उसने प्रह्लाद को दंड देने के लिए क्रूरतम तरीकों को आजमाना शुरू कर दिया। पहले प्रह्लाद को ऊंचे पहाड़ की चोटी से नीचे गिराया, लेकिन उसे कुछ नहीं हुआ। जिस दिन प्रह्लाद को ऐसे कठोरतम दंड देने की शुरुआत हुई, उस दिन फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी थी। इसके बाद प्रत्येक दिन उसे इस तरह के कठोर दंड मिलने शुरू हो गए। कभी उसे हाथी के पैरों तले कुचलवाया गया, तो कभी गर्म तेल के कहाड़े में डाल दिया गया। लेकिन भक्त प्रह्लाद पर कोई आंच नहीं आई। यातना देने का यह क्रम आठ दिनों तक चला। हारकर नौवें दिन हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन ‘होलिका’ की गोद में प्रह्लाद को बैठाकर जिंदा जलाने की चेष्टा की। होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती, लेकिन होलिका जलकर भस्म हो गई, प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ।
इन आठ दिनों में हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जो भयंकर यातनाएं दीं, उन्हीं की दुखद स्मृति को याद कर इन आठ दिनों को ‘होलाष्टक’ के रूप में मनाया जाता है। इन दिनों हर प्रकार के मांगलिक और शुभ कार्य वर्जित होते हैं। लेकिन इसमें ईश्वर की पूजा-पाठ और आराधना में किसी प्रकार रोक-टोक नहीं है। होलाष्टक के समय अष्टमी के दिन चंद्रमा, नवमी तिथि को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को बृहस्पति, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु, भक्त प्रह्लाद पर अत्याचार होने के कारण अपने उग्र रूप में होते हैं। होलाष्टक के पहले दिन होली का डंडा गाड़ा जाता है, जो होलिका और प्रह्लाद के प्रतीक होते हैं। होली जलाने से पहले प्रह्लाद के नाम का डंडा निकाल लिया जाता है।
‘होलाष्टक’ से जुड़ी एक अन्य पौराणिक कथा भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव की समाधि को भंग करने के लिए ‘कामदेव’ ने शिव पर अपने ‘पुष्प’ बाण से प्रहार किया था। उस बाण से शिव के मन में प्रेम और काम का संचार होने के कारण उनकी समाधि भंग हो गई। इससे क्रुद्ध होकर शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया। यह घटनाक्रम फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के ही दिन हुआ था। जब कामदेव की पत्नी ‘रति’ को इस घटना का पता चला तो वह अपने पति को दोबारा जीवित करने के लिए भगवान शिव की शरण में पहुंचकर उनकी अराधना करने लगी। आठ दिन की प्रतीक्षा के पश्चात भगवान शिव ने रति को वरदान देते हुए कहा कि द्वापर युग में कामदेव कृष्ण के पुत्र ‘प्रद्युुम्न’ के रूप में जन्म लेंगे। होलाष्टक के ये आठ दिन रति के तप और प्रतीक्षा के भी दिन हैं।
इधर शिव के गण चित्रकर्मा ने कामदेव की भस्म से एक पुतला तैयार किया। भगवान शिव ने अपने गण के कहने पर उसमें प्राण डाल दिए। शिव की क्रोधाग्नि से उत्पन्न हुए इस राक्षस का नाम भंडासुर था। इसके अत्याचार से सृष्टि को मुक्ति दिलाने के लिए देवी त्रिपुरसुंदरी प्रकट हुईं और उन्होंने एक हजार सूर्य के तेज के बराबर बाण ‘महाकामेश्वर’ से भंडासुर का वध किया।
अरुण कुमार जैमिनि
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