जब शिवजी को एक असुर से डरकर भागना पड़ा, पढ़ें रोचक पौराणिक कहानी
एक बार शिवजी को वृकासुर नाम के राक्षस को वरदान देना भारी पड़ गया। कुछ ऐसा हुआ कि शिवजी खुद वृकासुर से डरकर अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे। पढ़ें शिवजी और वृकासुर की रोचक पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं में भगवान शिव ने कई लोगों को मनचाहे वरदान दिए थे। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति शिव की कठिन तपस्या करता था, उसे भगवान शंकर खुद प्रकट होकर वरदान देते थे। रावण ने भी शिवजी की तपस्या की थी और वरदान मिला था। मगर एक बार शिवजी को एक असुर को वरदान देना भारी पड़ गया। उस असुर का नाम वृकासुर था। फिर कुछ ऐसा हुआ कि शिवजी खुद असुर से डरकर अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे। पढ़ें ये रोचक पौराणिक कहानी।
पौराणिक काल में वृकासुर नाम का एक राक्षस था। एक बार नारद धरती पर सैर कर रहे थे। तभी वृकासुर उन्हें मिल गया। वृकासुर ने नारद को रोका और बड़े आदर के साथ उनसे पूछा कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से कौनसे देव थोड़ी ही तपस्या में जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। नारद को पता लग गया कि ये राक्षस अपनी मायावी शक्तियां बढ़ाने के लिए देवों की तपस्या करना चाहता है। मगर उस हालात में नारद कुछ कर नहीं सकते थे। उन्होंने सोचा कि अगर वृकासुर को इस सवाल का जवाब नहीं दिया तो वह उनके सामने संकट बन जाएगा।
तब नारद ने बहुत सोचकर वृकासुर से कहा कि वैसे तो त्रिदेव में से किसी की भी तपस्या करने से मनचाहा वरदान मिल सकता है, मगर शिवजी को बहुत जल्द प्रसन्न किया जा सकता है। बाकी दोनों देवों को प्रसन्न करने के लिए कई सालों तक कठिन तपस्या करनी पड़ती है। वृकासुर को बात समझ आ गई। उसने नारद को धन्यवाद कहा और उनसे विदा ली।
नारद के कहे अनुसार वृकासुर हिमालय की पहाड़ियों में पहुंच गया। वहां शिवजी की तपस्या करने लगा। बहुत समय तक शिवजी प्रसन्न नहीं हुए तो उसने कठिन तपस्या शुरू कर दी। समय बीतता चला गया लेकिन शिव प्रसन्न नहीं हुए। तब वृकासुर अपने शरीर के टुकड़े करके अग्निकुंड में डालने लगा। आखिर में थक हारकर उसने अपना शीश काटकर अग्निकुंड में डालने का फैसला लिया। जैसे ही वह अपना शीश काटने के लिए उठा, तुरंत शिवजी प्रकट हुए। उन्होंने वृकासुर से कहा कि मैं तुमसे प्रसन्न हूं, तुम्हारी तपस्या पूरी हुई, जो मांगना चाहो वो मांगो।
वृकासुर ने शिवजी को प्रणाम किया और कहा कि नारद ने मेरे साथ छल किया है। उन्होंने कहा था कि शिवजी थोड़ी ही तपस्या में बहड़ी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। मगर मैंने इतनी कठिन तपस्या की, तब जाकर आप प्रकट हुए। अब इतने कठोर तप के बाद आप मेरे समक्ष प्रकट हुए हैं तो मैं कोई कठिन वरदान ही मांगूंगा।
वृकासुर ने शिवजी से कहा कि आप मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि जिस भी प्राणी के सिर पर मैं हाथ रख दूं, वो जलकर भस्म हो जाए। वृकासुर की बात सुनकर शिवजी आश्चर्य में पड़ गए। उन्हें ऐसी इच्छा की कभी कल्पना नहीं की थी। मगर वे वचनबद्ध थे। इसलिए शिवजी ने वृकासुर को ये वरदान दे दिया।
वरदान पाकर वृकासुर यहीं नहीं रुका। उसने शिवजी से आगे कहा कि नारद ने तो मेरे साथ छल किया है। अब मेरे मन में आपको लेकर भी संशय बैठ गया है। मैं यह जांचना चाहता हूं कि आपका दिया हुआ वरदान सही है या नहीं। ये वरदान सबसे पहले मैं आप पर आजमाना चाहता हूं। वृकासुर की ये बात सुनकर शिवजी के होश उड़ गए। शिवजी तुरंत वहां से भागे। वृकासुर भी शिवजी के पीछे-पीछे भागने लगा। शिवजी धरती से देवलोक पहुंच गए। मगर वृकासुर ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। आखिर में शिवजी भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का निदान करने को कहा।
विष्णु एक बारगी तो शिवजी पर हंस पड़े। उन्होंने कहा कि अगर बिना सोच-विचार के हर किसी को वरदान दोगे तो यही हाल होगा। मगर शिवजी की मदद के लिए भगवान विष्णु ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और वृकासुर के पास चले गए। उन्होंने वृकासुर को रास्ते में रोका और बड़े प्रेम से पूछा कि वह इतनी जल्दी में क्यों है।
वृकासुर ने पूरा वाकया उन्हें बता दिया। विष्णुजी पहले तो वृकासुर पर हंसे और फिर कहा कि तुम्हें नारद ने गलत जानकारी दी है। शिवजी का काम वरदान देने का नहीं है। शिव का तो खुद का कोई ठिकाना नहीं है, वे पहाड़ों में रहते हैं और पिशाचों के साथ घूमते रहते हैं, वो क्या किसी को वरदान देंगे। वरदान तो सिर्फ दो ही देवता देते हैं, वो हैं ब्रह्मा और विष्णु। वृकासुर उनकी बातों में आ गया।
ब्राह्मण रूपी विष्णु ने वृकासुर से कहा कि नारद ने तुम्हें अपनी में फंसा लिया है। तुम्हें अगर मेरी बात पर भरोसा न हो तो अपना हाथ खुद के सिर पर रखकर आजमा लो। अभी के अभी उनकी पोल खुल जाएगी। वृकासुर ने जैसे ही अपने सिर पर हाथ रखा, अग्नि की एक प्रबल ज्वाला उत्पन्न हुई और एक झटके में उसका शरीर जलकर भस्म हो गया। इस तरह वृकासुर का अंत हो गया।
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