विपरीत राजयोग क्या होता है? इस योग के क्या फल होते हैं?
कुंडली में छठे, आठवें और बारहवें घर को अशुभ माना जाता है। यह अशुभ घर विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छे फल दे सकते हैं, इसलिए इन घरों में बनने वाले योग को ‘विपरीत राज योग’ कहते हैं। विपरीत राज योग के कु
कुंडली में छठे, आठवें और बारहवें घर को अशुभ माना जाता है। यह अशुभ घर विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छे फल दे सकते हैं, इसलिए इन घरों में बनने वाले योग को ‘विपरीत राज योग’ कहते हैं। विपरीत राज योग के कुछ नियम हैं,जो इस इस प्रकार है
लग्नेश बलवान होना चाहिए अर्थात लगन के स्वामी की डिग्री 10 से 20 डिग्री के बीच होनी चाहिए। लग्नेश छह, आठ, बारह घरों में न बैठा हो। लग्नेश नीच राशि में न बैठा हो। अगर लग्नेश की डिग्री 1 से 3 के बीच है या 27 से 30 के बीच है तो भी यह विपरीत राज योग काम नहीं करेगा।
मिथुन लग्न की कुंडली में लग्नेश बुध होते हैं। इस अवस्था में अगर बुध चौथे घर में बैठते हैं अर्थात कन्या राशि में बैठे हैं तो बुध उच्च के हो जाते हैं। बुध की डिग्री अच्छी होनी चाहिए यानी प्रबल होनी चाहिए। यहां छठवें, आठवें, बारहवें घर के स्वामी मंगल, शनि, शुक्र होंगे अर्थात छठवां घर वृश्चिक राशि का होगा। आठवां घर मकर राशि का होगा और बारहवां घर वृष राशि का होगा। इसका मतलब यह है कि मंगल छठे, आठवें, बारहवें घर में कहीं भी बैठ जाए तो विपरीत राजयोग होगा।
इसी प्रकार शनि यदि छह, आठ, बारह घर में बैठ जाते हैं तो वह भी विपरीत राजयोग में होंगे। इसी प्रकार शुक्र भी अगर छठवें, आठवें, बारहवें घर में बैठते हैं तो वह भी विपरीत राजयोग ही होगा।
अगर किसी ग्रह के छठवें घर में बैठने से विपरीत राजयोग बनता है तो उसके विदेश यात्राओं के योग बनते हैं। उसके कोर्ट-कचहरी के किसी भी प्रकार के मामले हों, वह बहुत जल्दी हल होते हैं।
अगर विपरीत राज योग आठवें घर से बनता है तो ऐसे व्यक्ति के रिसर्च में जाने के योग बनते हैं और ऐसा व्यक्ति अध्यात्म में भी जा सकता है। अगर विपरीत राजयोग बारहवें घर में बनता है तो ऐसा व्यक्ति विदेश अवश्य जाएगा। उसके अस्पताल जाने के योग नहीं बनेंगे। वह व्यक्ति शांत रहेगा।
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