vat savitri vrat katha in hindi:यहां पढ़ें सत्यवान सावित्री से जुड़ी से वट सावित्री व्रत की कहानी
वट सावित्री व्रत ज्येष्ट माह के अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शनि भगवान का जन्म भी हुआ था। वट सावित्री व्रत में सुहागिन अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। इस साल 19 मई को वट सावित्री
वट सावित्री व्रत ज्येष्ट माह के अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शनि भगवान का जन्म भी हुआ था। वट सावित्री व्रत में सुहागिन अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। इस साल 19 मई को वट सावित्री व्रत रखना शुभ रहेगा। इस पूजा में वट वृक्ष की पूजा का खास महत्व है। इस दिन वट वृक्ष के नीचे बैठ कर पूजा करने और सावित्री सत्यवान की कथा सुननी चाहिए और वृक्ष की परिक्रमा लगाकर कच्चा सूत बांधना चाहिए। इसके अलावा सूत को गले में भी धारण करना चाहिए। मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति की उम्र लंबी होती है। आप भी पढ़ें इस दिन वट सावित्री व्रत की कथा-
vat savitri vrat katha in hindi: सत्यवान -सावित्री की कथा इस प्रकार है- राजर्षि अश्वपति की एकमात्र संतान थीं सावित्री। सावित्री ने वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से विवाह किया था। लेकिन जब नारद जी ने उन्हें बताया कि सत्यवान की आयु आधी हैं, तो भी सावित्री ने अपना फैसला नहीं बदला और सत्यवान से सब कुछ जानबूझकर शादी कर ली। सावित्री सभी राजमहल के सुख और राजवैभव त्याग कर सत्यवान के साथ उनके परिवार की सेवा करते हुए वन में रहने लगीं। जिस दिन सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था, उस दिन वह लकड़ियां काटने जंगल गए हुए थे। अचानक बेहोश होकर गिर पड़े। उसी समय यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। तीन दिन से उपवास में रह रही सावित्री को पता था कि क्या होने वाला है , इसलिए बिना विकल हुए उन्होंने यमराज से सत्यवान के प्राण न लेने की प्रार्थना की। लेकिन यमराज नहीं माने। तब सावित्री उनके पीछे-पीछे ही जाने लगीं। कई बार मना करने पर भी वह नहीं मानीं, तो सावित्री के साहस और त्याग से यमराज प्रसन्न हुए और कोई तीन वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने सत्यवान के दृष्टिहीन माता-पिता के नेत्रों की ज्योति मांगी, उनका छिना हुआ राज्य मांगा और अपने लिए 100 पुत्रों का वरदान मांगा। तथास्तु कहने के बाद यमराज समझ गए कि सावित्री के पति को साथ ले जाना अब संभव नहीं। इसलिए उन्होंने सावित्री को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़कर वहां से अंतर्धान हो गए। उस समय सावित्री अपने पति को लेकर वट वृक्ष के नीचे ही बैठी थीं। इसीलिए इस दिन महिलाएं अपने परिवार और जीवनसाथी की दीर्घायु की कामना करते हुए वट वृक्ष को भोग अर्पण करती हैं, उस पर धागा लपेट कर पूजा करती हैं।
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