बेहद ही शुभ संयोग में पड़ रहा है वट सावित्री व्रत, ज्योतिषाचार्य से जान लें संपूर्ण पूजा- विधि
सौभाग्यवती महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य व संतान प्राप्ति के लिए वट सावित्री व्रत करती हैं तो कुमारी कन्याएं अपने भावी सुयोग्य वर की प्राप्ति व कुंडली में बने हुए मांगलिक दोष के समापन के लिए करती हैंl
सौभाग्यवती महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य व संतान प्राप्ति के लिए वट सावित्री व्रत करती हैं तो कुमारी कन्याएं अपने भावी सुयोग्य वर की प्राप्ति व कुंडली में बने हुए मांगलिक दोष के समापन के लिए करती हैंl इस वर्ष बट सावित्री व्रत 19 मई शुक्रवार को भरणी और कृतिका नक्षत्र के संयोग में मनाया जाएगाl अमावस्या तिथि सूर्योदय से लेकर रात्रि 8:32 तक रहेगी भरणी नक्षत्र प्रातः 7:08 तक भोग करेगी इसके बाद कृतिका नक्षत्र में चंद्रमा भ्रमण करेंगे l शोभन योग सूर्योदय से लेकर सायं 6:13 तक रहेगा l यह जानकारी देते हुए पंडित मार्कण्डेय दूबे ने बताया बट सावित्री व्रत उत्तर भारत में ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि में किया जाता है तो दक्षिण भारत में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को l महिलाएं व कन्याऐं अमावस्या के दिन उपवास रखकर वट वृक्ष की परिक्रमा और पूजा करती हैंl
बट सावित्री व्रत करने की पूजन विधि
बट सावित्री व्रत के दिन प्रातः स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण और सोलह शृंगार कर बांस की दो टोकरियों में एक में 7 तरह के अनाज और दूसरे में देवी सावित्री की प्रतिमा रखकर वट वृक्ष के पास जाना चाहिए l अक्षत कुमकुम व हल्दी से वट वृक्ष की पूजा कर दीपक जलाकर नैवेद्य अर्पित करने के बाद बट वृक्ष की 7 परिक्रमा करते हुए उसमें रोली लपेटते जाना चाहिए l प्रत्येक परिक्रमा में चने का भिगोया हुआ एक दाना चढ़ाने की परंपरा है l पूजन समाप्ति के बाद बट सावित्री व्रत की कथा सुननी चाहिए यह कथा अत्यंत महत्व की होती है l कथा सावित्री के अपने पति सत्यवान को यमराज से सशरीर वापस लाने के ऊपर है l यदि स्त्री में सतीत्त्व हो तो उसके पति को यमराज स्पर्श तक नहीं कर सकते हैं इस कथा का मूल उद्देश्य यही है l पूजन समाप्ति पर पति को प्रणाम किया जाता है l घर जाने के बाद पति के माता को भी प्रणाम कर आशीर्वाद लेना चाहिए l
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