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vat savitri vrat 2020: वट सावित्री व्रत कल, जानिए वट वृक्ष पूजा की मान्यताएं और महत्व

वट सावित्री व्रत महिलाएं द्वारा अखण्ड सौभाग्य की कामना के साथ मनाती हैं। इस साल वट सवित्रि व्रत 22 मई, शुक्रवार के दिन है। भारतीय जनमानस में व्रत और त्योहार की विशेष महत्ता है। देशभर में धार्मिक...

Alakha Ram Singh एजेंसी, बस्ती (उत्तर प्रदेश)Thu, 21 May 2020 05:15 PM
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वट सावित्री व्रत महिलाएं द्वारा अखण्ड सौभाग्य की कामना के साथ मनाती हैं। इस साल वट सवित्रि व्रत 22 मई, शुक्रवार के दिन है। भारतीय जनमानस में व्रत और त्योहार की विशेष महत्ता है। देशभर में धार्मिक और वैज्ञानिक कारणों से व्रत और त्योहार मनाए जाते है। प्राचीनकाल से भारत वर्ष में प्रत्येक माह कोई न कोई व्रत त्योहार मनाया जाता है। उसी में से एक वट सावित्री व्रत अखण्ड सौभाग्य तथा पयार्वरण संरक्षण और सुरक्षा के लिए मनाया जाता है। वट सावित्री व्रत धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि से अमावस्या तक उत्तर भारत में और ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में इन्हीं तिथियों में वट सावित्री व्रत दक्षिण भारत में मनाया जाता है।

 

भारतीय समाज वट वृक्ष का आदर करता है। इसके पीछे भले ही धार्मिक मान्यताएं हों, लेकिन उद्देश्य पयार्वरण संरक्षण का ही जान पड़ता है। पयार्वरण संरक्षण के प्रति प्राचीन काल से ही पूर्वज जागरूक और सक्रिय रहे है यही कारण है कि वृक्षों को धार्मिक आस्था से जोड़ कर त्यौहार और व्रत रहने की परम्परा है। पूर्वजो द्वारा वृक्षों के पूजा के साथ ही साथ उनका संरक्षण प्राथमिकता से किया जाता था। 

 

वट सावित्री व्रत का महत्व-
जेठ की अमावस्या पर बरगद की पूजा होती आ रही है। वट वृक्ष के नीचे ही सावित्री को अपना सुहाग वापस मिला था। इस पूजा का महत्व जीवन चक्र से जुड़ चुका है। यदि धरती को बचाना है तो बरगद व पीपल के अधिक से अधिक वृक्ष लगाने होंगे। कहावत है कि पीपल में ब्रह्म देव व बरगद में भगवान भैरों का निवास रहता है। इसलिए देवताओं का वास मानकर वृक्षों की पूजा की जाती है। धर्मग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है कि पीपल के पत्तों में देवी देवता वास करते हैं। इसे ऋषि, मुनियों की दूरदृष्टि ही कहेंगे कि उन्हें आने वाले समय की परेशानियां पता थीं। शायद इसी के चलते उन्होंने इन वृक्षों को धार्मिक महत्व से जोड़ दिया, ताकि ये संरक्षित रहें।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी पीपल व बरगद के वृक्ष अन्य की अपेक्षा सर्वाधिक ऑक्सीजन देते हैं। बारिश में दोनों ही वृक्ष अपनी जड़ों से वर्षा का जल भी सर्वाधिक संरक्षित करते हैं। 

 

वट वृक्ष में होता है भगवान के कई रूपों का वास-
वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष जिसका अर्थ है बरगद का पेड़, का खास महत्व होता है। इस पेड़ में लटकी हुई शाखाओं को सावित्री देवी का रूप माना जाता है। वहीं पुराणों के अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास भी माना जाता है। इसलिए कहते हैं कि इस पेड़ की पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस वृक्ष को देव वृक्ष माना जाता है वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा जी का, तने में भगवान विष्णु का तथा डालियों एवं पत्तियों में भगवान शिव का निवास कहा जाता है। इसके साथ ही अक्षय वट वृक्ष के पत्ते पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने मार्कंडेय ऋषि को दर्शन दिए थे यह अक्षय वट वृक्ष प्रयाग में गंगा तट पर वेणीमाधव के निकट स्थित है।

सौभाग्यवती महिलाएं अपने अखण्ड सौभाग्य के लिए आस्था और विश्वास के साथ व्रत रहकर पूजा अर्चना करती है। वट वृक्ष प्राणवायु आक्सीजन प्रदान करने के प्रमुख और महत्वपूर्ण स्रोत है। वट वृक्ष को पृथ्वी का संरक्षक भी कहा जाता है। वट वृक्ष की औसत उम्र 150 से भी अधिक होती है वट वृक्ष पंक्षियो और जन्तुओ को आश्रय प्रदान करता है धार्मिक आस्था के अनुसार वट वृक्ष के जड़ मे व्रहम्मा,तने मे विष्णु और पत्तो पर शिव का वास होता है।

पयार्वरण संरक्षण के वृक्ष सबसे उपयुक्त सहायक है वृक्ष मृदा-निमार्ण,संरक्षण,जैविक उर्वरा-वृद्वि,जीवधारियो के लिए वायुमण्डल मे सही वायु मिश्रण वृद्वि के साथ ही उसे स्वच्छता प्रदान करते रहने एंव भूजल भण्डारण की वृद्व मे सहायक होने की भूमिका का निवार्ह करते है। वट वृक्ष की तो विशेष महत्ता है।

 

न चेते तो बन जाएगा रेगिस्तान
वट वृक्ष प्रकृति से ताल-मेल बिठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। मौजूदा समय में पयार्वरण को लेकर पूरा देश चिंतित है। वास्तव में देखा जाए तो पिछले 60 से भी ज्यादा सालों में देश की आजादी के बाद पेड़ तो लगे किन्तु वे पेड़ नहीं लगे जो वास्तव में पयार्वरण के लिए आवश्यक हैं। वनों के कटाव में बढ़ती जनसंख्या का भी महत्वपूर्ण योगदान है। इससे पयार्वरण प्रदूषण, प्राकृतिक और जैविक असंतुलन बढ़ा है, जिससे पृथ्वी पर प्राणी-मात्र के अस्तित्व का खतरा भी बढ़ता जा रहा है।  भारत में वृक्षो को धार्मिक आस्था से जोड़ कर त्यौहार और व्रत रहने की परम्परा है। यह व्रत भी इसी मान्यता के तहत मनाया जाता है।

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