Hindi Newsधर्म न्यूज़Utpanna ekadashi vrat 2022 importance significance katha kahani story

उत्पन्ना एकादशी के दिन हुई थी एकादशी माता की उत्पत्ति, व्रत करने से बरसती है विष्णु जी की कृपा

Utpanna Ekadashi 2022: मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी व्रत मनाने की अनूठी परम्परा है। इसी दिन एकादशी माता की उत्पति हुई थी। इसीलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSun, 20 Nov 2022 08:33 AM
share Share

Utpanna Ekadashi 2022: मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी व्रत मनाने की अनूठी परम्परा है। इसी दिन एकादशी माता की उत्पति हुई थी। इसीलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। जो श्रद्धालु एकादशी का व्रत शुरू करना चाहते हैं, उन्हें उत्पन्ना एकादशी से ही इसकी शुरुआत करनी चाहिए। इस व्रत से अश्वमेध यज्ञ का पुण्य मिलता है। इस साल 20 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी है। इस दिन प्रात: जल्दी स्नान करके ब्रह्म मुहूर्त में भगवान कृष्ण का पूजन किया जाता है। इसके बाद विष्णु जी एवं एकादशी माता की आराधना करते हैं। दीपदान और अन्नदान किया जाता है। इस दिन कई लोग निर्जला उपवास करते हैं। कथा सुनने-पढ़ने का बहुत महत्त्व है। उत्पन्ना एकादशी के दिन विष्णु भगवान ने राक्षस मुरसुरा को मारा था।

स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एकादशी माता के जन्म की कथा सुनाई थी। सतयुग में एक राक्षस था- मुर। उसके पराक्रम के आगे इंद्र देव, वायु देव, अग्नि देव कोई भी टिक नहीं पाये थे। इस कारण उन सभी को मृत्युलोक जाना पड़ा। हताश-निराश होकर इंद्र देव कैलाश गए भगवान भोलेनाथ को अपना दुख बताया। शिवजी ने उन्हें विष्णुजी के पास जाने की सलाह दी। सभी देवता क्षीरसागर पहुंचे, जहां विष्णुजी निद्रा में थे। कुछ समय बाद विष्णुजी के नेत्र खुले, तब देवताओं ने उनकी स्तुति की। विष्णुजी ने उनसे क्षीरसागर आने का कारण पूछा। तब इंद्र देव ने उन्हें विस्तार से बताया कि मुर नामक राक्षस ने सभी देवताओं को मृत्युलोक में जाने के लिए विवश कर दिया है। सारा वृत्तांत सुन विष्णु जी ने कहा, ‘ऐसा बलशाली कौन है, जिसके सामने देवता टिक नहीं पाए।’ तब इंद्र ने बताया कि इस राक्षस का नाम मुर है। यह ब्रह्म का वंशज है। उसकी नगरी का नाम चंद्रावती है। उसने अपने बल से सभी देवताओं को हरा दिया और उनका कार्य स्वयं करने लगा। यह सुनने के बाद विष्णुजी ने इंद्र को आश्वासन दिया कि वो उन्हें इस विपत्ति से जरूर निकालेंगे।

विष्णुजी मुर दैत्य से युद्ध करने उसकी नगरी चंद्रावती गए। दोनों के बीच कई वर्षों तक युद्ध चला। युद्ध के मध्य में भगवान विष्णु को निद्रा आने लगी और वे बद्रिकाश्रम चले गए। मुर भी उनके पीछे गुफा में घुसा और शयन करते भगवान को देख मारने को चला। जैसे ही उसने अस्त्र-शस्त्र उठाया, भगवान के अंदर से एक सुंदर कन्या निकली और मुर से युद्ध किया। दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ, जिसमें मुर मूर्च्छित हो गया। बाद में उसका मस्तक धड़ से अलग कर दिया गया। उसके मरते ही दानव भाग गए और देवता इंद्र लोक चले गए। जब विष्णु जी की नींद टूटी तो उन्हें अचम्भा सा लगा कि यह सब कैसे हुआ! तब कन्या ने उन्हें युद्ध के विषय में विस्तार से बताया, जिसे सुनकर भगवान प्रसन्न हुए और उन्होंने कन्या को वरदान मांगने को कहा। तब कन्या ने कहा, ‘मुझे ऐसा वर दें कि अगर कोई मनुष्य मेरा व्रत उपवास करे, तो उसके सारे पापों का नाश हो जाए और उसे विष्णु लोक मिले।’ तब भगवान विष्णु ने कन्या का नाम एकादशी रखा और उसे मनचाहा वरदान दिया। उन्होंने यह भी कहा, ‘इस दिन तुम्हारे और मेरे भक्त समान होंगे। यह व्रत मुझे सबसे प्रिय होगा।’

अगला लेखऐप पर पढ़ें