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प्रीति योग तथा मानस योगा में उत्पन्ना एकादशी, भगवान विष्णु और लक्ष्मी की इस विधान से होती है पूजा, पढ़ें पौराणिक कथा

भौतिक (सांसारिक) एवं अभौतिक(आध्यात्मिक) सुखों को प्रदान करने वाला व्रत है उत्पन्ना । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मनुष्य के जीवन मे भौतिक एवं अभौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए सद्कर्मो, सदविचारों, धर्म क

Anuradha Pandey पं दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली, नई दिल्लीWed, 16 Nov 2022 10:00 AM
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भौतिक (सांसारिक) एवं अभौतिक(आध्यात्मिक) सुखों को प्रदान करने वाला व्रत है उत्पन्ना । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मनुष्य के जीवन मे भौतिक एवं अभौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए सद्कर्मो, सदविचारों, धर्म कर्म, अध्यात्म तथा व्रत आदि का विशेष महत्त्व है। जहाँ व्रत का वैज्ञानिक महत्त्व शरीर की शुद्धि के लिए है वहीं शारीरिक शुद्धि के साथ-साथ आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्त्व भी है। व्रतों में एकादशी व्रत को उत्तम व्रत माना जाता है। वर्ष में कुल 24 एकादशी व्रत होता है। प्रत्येक का अपना विशेष महत्त्व है। मार्ग शीर्ष एकादशी के दिन किये जाने वाले व्रत को उत्पन्ना एकादशी व्रत कहा जाता है।

 इस वर्ष उत्पन्ना एकादशी व्रत का मान सबके लिए 20 नवम्बर 2022 दिन रविवार को है। एकादशी तिथि 19 नवम्बर दिन शनिवार को दिन में 7 बजकर  मिनट से आरंभ होकर 20 नवम्बर दिन रविवार को दिन में 7:37  बजे तक व्याप्त रहेगी। इस दिन हस्त नक्षत्र सूर्योदय पूर्व से रात को 10 बजकर 54 मिनट तक। पूरा दिन प्रीति योग तथा मानस योगा का मान रहेगा । व्रत का पारणा द्वादशी तिथि 21 नवंबर दिन सोमवार को प्रातः काल 7:37 बजे तक किया जाएगा।
      
   उत्पन्ना एकादशी व्रत करने की पूजा विधि:- 
1:- उत्पन्ना एकादशी व्रत नियम दशमी तिथि से ही शुरू हो जाते हैं। जो लगभग 36 घंटे बाद द्वादशी तिथि में पारण के साथ खत्म होता है।
2 :- जो लोग एकादशी व्रत करते है उनको दशमी तिथि में सूर्यास्त से पहले ही सात्विक भोजन कर लेना चाहिए।
3:- व्रत करने वाले एकादशी तिथि में प्रातः काल  स्नान आदि दैनिक कार्य से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
4:- पूजा स्थल पर  श्री हरि विष्णुजी के सम्मुख घी का दीपक जलाकर ध्यान करना चाहिए ।
5:- जो भी पूजन की सामग्री उपलब्ध हो उसे क्रमशः अर्पित करते हुए प्रार्थना करना चाहिए।
6:- पूजन के बाद एकादशी व्रत का महात्म्य पढ़ना या सुनना चाहिए।
7:- एकादशी तिथि में सम्पूर्ण दिन उपवास रखते हुए श्रीहरि का ध्यान करते हुए "ॐ नारायणाय नमः" अथवा किसी भी मंत्र का जप करते रहना चाहिए।
8:-शाम को गोधुल समय भी घी का दीपक जलाकर श्री हरि विष्णु एवं माता लक्ष्मी का ध्यान पूजन करना चाहिए। 
9:- अगले दिन प्रातः काल पुनः उसी दिनचर्या के साथ श्रीहरि विष्णु एवं माता लक्ष्मी का ध्यान पूजन करना चाहिए।
10:- एकादशी व्रत के दौरान सुयोग्य ब्राह्मण से सत्य नारायण व्रत कथा का श्रवण करना तथा ब्राह्मण या गरीबों को भोजन कराना शुभ फल प्रदायक होता है।
11:- ब्राह्मण एवं गरीबों को उपहार ,दान-दक्षिणा देकर विदा करने के उपरान्त व्रत का पारण करना श्रेष्ठ फल प्रदायक होता है। 
इस प्रकार यह श्रेष्ठ व्रत पूर्ण होता है। व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन अत्यावश्यक होता है।

उत्पन्ना एकादशी की पौराणिक कथा :-
सतयुग में एक बार मुरु नामक राक्षस ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर  देवताओ के राजा इंद्र को बंधक बना लिया । तब सभी देवता गण भगवान भोलेनाथ की शरण में पहुंच गए। सदाशिव भोले नाथ ने देवताओं को श्री हरि विष्णु जी के पास जाने की सलाह दी। उसके बाद समस्त देवता गण श्री हरि विष्णु जी के पास जाकर अपनी सारी व्यथा सुनाई। ये सब सुनने के बाद श्रीहरि विष्णु जी ने सभी राक्षसों को तो परास्त कर दिया, परंतु दैत्य राजा मुरु वहां से भाग निकला। श्रीहरि विष्णु ने दैत्य मुरु को भागता देख उसे जाने दिया तथा स्वयं बद्री नाथ आश्रम की गुफा में विश्राम करने लगे। उसके कुछ दिनों के बाद दैत्य मुरु भगवान विष्णु जी को मारने के उद्देश्य से वहां पहुंच गया। तब श्री हरि विष्णु जी के शरीर से एक स्त्री की उत्पत्ति हुई। उत्पन्न हुई उस स्त्री ने मुरु दैत्य को मार डाला तथा देवताओं को भय मुक्त किया।  भगवान श्रीहरि विष्णु के अंश से उत्पन्न होने के कारण श्री विष्णु जी ने प्रसन्न होकर उस कन्या को वरदान देते हुए कहा कि संसार के मोह माया के जाल में उलझे हुए समस्त जनों को, जो मुझसे विमुख हो गए हैं, उन्हें मुझ तक लाने में आप सक्षम रहेंगी तथा आपकी पूजा- अर्चना और भक्ति करने वाले भक्त हमेशा समस्त भौतिक एवं आध्यात्मिक सुख से परिपूर्ण होकर सदगति को प्राप्त करेंगे । श्री हरि विष्णु से उत्पन्न होने के कारण इस व्रत का नाम उत्पन्ना पड़ा

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