Hindi Newsधर्म न्यूज़Tulsi vivah: Tulsi is dear to Srihari so Tulsi marriage takes place after waking up from yoga sleep

Tulsi vivah: श्रीहरि को हैं तुलसी प्राण प्रिय, इसलिए योग निद्रा से जागने पर होता है तुलसी विवाह

देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं। इस दिन से विवाह आदि मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। इस दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम रूपी श्रीहरि से किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस विवा

Anuradha Pandey हिंदुस्तान टीम, नई दिल्लीTue, 1 Nov 2022 06:13 AM
share Share

देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं। इस दिन से विवाह आदि मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। इस दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम रूपी श्रीहरि से किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस विवाह के आयोजन से कन्यादान के बराबर फल मिलता है।

शास्त्रीय मान्यता के अनुसार आषाढ़ शुक्ल की देवशयनी एकादशी से वर्षाकाल के चार माह की अवधि भगवान विष्णु की योगनिद्रा की अवधि होती है। हमारे सभी मांगलिक कार्य श्रीहरि की साक्षी में होते हैं। इसी कारण चौमासे में मंगल उत्सव रुक जाते हैं। वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं। श्रीहरि को तुलसी प्राण प्रिय हैं, इसलिए जागरण के बाद सर्वप्रथम तुलसी के साथ उनके विवाह का आयोजन किया जाता है। इसके पश्चात मांगलिक कार्य दोबारा शुरू हो जाते हैं।

श्रीविष्णु व तुलसी के इस विवाह के पीछे एक पौराणिक कथा है। श्रीमद्भागवत के अनुसार प्राचीन काल में जलंधर नाम का एक महाशक्तिशाली असुर था। वह श्रीहरि की परमभक्त अपनी पतिव्रता पत्नी वृंदा के तपबल के कारण अजेय बना हुआ था। तब ब्रह्मा जी के सुझाव पर सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे जलंधर के आतंक से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। तब लोकमंगल के लिए श्रीहरि जलंधर का वेश बनाकर वृंदा के निकट गए। ज्यों ही वृंदा का ध्यान पूजा से भंग हुआ, युद्ध में जलंधर की मृत्यु हो गई। जब वृंदा को वास्तविकता का पता चला तो क्रोध से भरकर उन्होंने भगवान विष्णु को पाषाण हो जाने का शाप दिया और प्राण त्यागने लगी। यह देख अपने वास्तविक रूप में आकर श्रीहरि ने वृंदा को उसके पति के अन्याय व अत्याचारों से अवगत कराते हुए बताया कि किस तरह वह भी परोक्ष रूप से अपने पति के अत्याचारों की सहभागी बनी है।

पूरी बात सुनकर वृंदा को अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने श्रीहरि से क्षमा मांगते हुए कहा कि अब वह क्षणभर भी जीना नहीं चाहती। इस पर श्रीहरि ने उसे अपनी अनन्य भक्ति का वरदान देते हुए कहा, ‘हे वृंदा, तुम मुझे प्राणप्रिय हो। इसलिए तुम्हारा शाप भी मुझे शिरोधार्य है। मेरे आशीर्वाद से तुम सृष्टि की सर्वाधिक हितकारी औषधि ‘तुलसी’ के रूप में जानी जाओगी और मेरे पाषाण स्वरूप ‘शालिग्राम’ से तुम्हारा मंगल परिणय संसारवासियों के आह्लाद का निमित्त बनेगा।

देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह के इस मांगलिक अवसर पर तुलसी चौरे को गोमय एवं गेरू से लीपकर तुलसी के पौधे को लाल चुनरी-ओढ़नी ओढ़ाकर सोलह शृंगार का सामान चढ़ाते हैं। फिर गणेश पूजन के बाद तुलसी चौरा के पास गन्ने का भव्य मंडप बनाकर उसमें श्रद्धा से शालिग्राम को स्थापित कर विधि-विधानपूर्वक विवाह का आयोजन किया जाता है। मंडप, वर पूजा, कन्यादान आदि सब कुछ पारंपरिक हिंदू रीति-रिवाजों के साथ निभाया जाता है। यह सारा आयोजन यजमान सपत्नीक मिलकर करते हैं। विवाह के पश्चात प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि तुलसी विवाह का यह आयोजन करने से कन्यादान के बराबर फल मिलता है।

पूनम नेगी

अगला लेखऐप पर पढ़ें