इस साल का पहला पूर्ण चंद्रग्रहण खत्म, 14 फीसदी बड़ा और 30 फीसदी अधिक चमकीला दिखा चांद
साल 2019 का पहला चंद्रग्रहण सोमवार को खत्म हो गया। हालांकि, यह देश में नहीं दिखाई देगा, लेकिन भारतीय समयानुसार चंद्रग्रहण सुबह 10: 11 बजे से शुरू होकर 11:12 बजे यानि एक घंटा एक मिनट तक रहा। सुपर ब्लड...
साल 2019 का पहला चंद्रग्रहण सोमवार को खत्म हो गया। हालांकि, यह देश में नहीं दिखाई देगा, लेकिन भारतीय समयानुसार चंद्रग्रहण सुबह 10: 11 बजे से शुरू होकर 11:12 बजे यानि एक घंटा एक मिनट तक रहा। सुपर ब्लड मून की यह खगोलीय घटना अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका समेत अन्य देशों में साफ दिखाई दिया।
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध संस्थान (एरीज) के वरिष्ठ खगोल वैज्ञानिक डॉ. बृजेश कुमार ने बताया कि यह साल का पहला चंद्रग्रहण है। उन्होंने बताया कि चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के एक लाइन में आने से चांद पर पृथ्वी की प्रच्छाया पड़ती है। इसे ही चंद्रग्रहण कहा जाता है। खगोल वैज्ञानिक इस परिस्थिति का शोध के लिए उपयोग करते हैं। इस बार चंद्रग्रहण 14 फीसदी बड़ा और 30 फीसदी अधिक चमकीला दिखाई दिया। भारत में यह नजारा नहीं दिखाई देगा। अफ्रीका, यूरोप, उत्तरी-दक्षिणी अमेरिका, मध्य प्रशांत के अलावा न्यूयॉर्क, लंदन, शिकागो, पेरिस, वॉशिंगटन आदि स्थानों पर इस खगोलीय घटना को देखा गया। इस क्षेत्र के वैज्ञानिक और शोधार्थी इसे लेकर खासे उत्साहित दिखे।
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2015 में जापान में मिली अहम जानकारी
2015 को पड़े चंद्रग्रहण के दौरान जापान के खगोल वैज्ञानिकों ने अहम जानकारी हासिल की थी। चार अप्रैल को लगे ग्रहण के दौरान जापान के आठ मीटर सुबारू ऑप्टिकल टेलीस्कोप से अहम आकड़े मिले थे। इसके बाद संयुक्त विशलेषण में ध्रुवीय प्रेक्षणों की तरंगदैर्ध्य और समय भिन्नता को आधार बनाते हुए वैज्ञानिक निष्कर्ष पर पहुंचे थे। उन्होंने पता किया था कि पोलराइजेशन का मुख्य कारण अक्षांशीय वायुमंडलीय असमानता के साथ-साथ दोहरा फैलाव भी है।
चंद्रग्रहण पर शोध का महत्व
वैज्ञानिकों के अनुसार चंद्रग्रहण पृथ्वी के वायुमंडल में ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को समझने में मददगार होता है। इस दौरान वैज्ञानिक इस बात पर भी नजर रखेंगे कि तेजी से ठंडी होने वाली चन्द्रमा की सतह के क्या परिणाम होंगे। इसके अलावा अन्य ग्रहों के वातावरण के अध्ययन में काफी हद तक आसानी होती है।
ज्योतिष के अनुसार प्रभाव नहीं
पूर्णामासी को लगने जा रहे ग्रहण का ज्योतिषीय महत्व न के बराबर है। ज्योतिषाचार्य कैलाश सुयाल के अनुसार भारतीय उप महाद्वीप में इसके दर्शन नहीं होने से ज्योतिष की दृष्टि से इसके प्रभाव नहीं हो सकते हैं।
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