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जन्माष्टमी पूजा का सही समय : रात्रि को पूुजा के लिए मिलेंगे सिर्फ 46 मिनट, नोट कर लें शुभ मुहूर्त और व्रत पारणा टाइम

हर साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भाद्र पद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता रहा है। द्वापर युग मे भगवान कृष्ण ने रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि के समय देवकी मां के गर्भ से धरती पर जन्म

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 7 Sep 2023 03:56 PM
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हर साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भाद्र पद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता रहा है। द्वापर युग मे भगवान कृष्ण ने रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि के समय देवकी मां के गर्भ से धरती पर जन्म लिया था। प्रभु कृष्ण, विष्णु जी के आठवें अवतार माने जाते हैं। कई लोगों ने 6 को जन्माष्टमी मना ली है तो कई लोग आज मना रहे हैं। मथुरा, वृंदावन में भी आज जन्माष्टमी का पावन पर्व मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं पूजा का शुभ मुहूर्त-

कृष्ण जन्माष्टमी बृहस्पतिवार, सितम्बर 7, 2023 को
निशिता पूजा का समय - 11:56 पी एम से 12:42 ए एम, सितम्बर 08
अवधि - 00 घण्टे 46 मिनट्स
पारण समय - 06:02 ए एम, सितम्बर 08 के बाद
पारण के दिन अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय से पहले समाप्त हो गये।
मध्यरात्रि का क्षण - 12:19 ए एम, सितम्बर 08
चन्द्रोदय समय - 11:43 पी एम
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 06, 2023 को 03:37 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त - सितम्बर 07, 2023 को 04:14 पी एम बजे
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ - सितम्बर 06, 2023 को 09:20 ए एम बजे
रोहिणी नक्षत्र समाप्त - सितम्बर 07, 2023 को 10:25 ए एम बजे

भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय करते हैं। इस दिन व्रत भी रखा जाता है। भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव पर भगवान श्री कृष्ण की विधि- विधान से पूजा- अर्चना करनी चाहिए। इस पावन दिन ये आरती जरूर पढ़ें...

  • आरती श्री कृष्ण भगवान-

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

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