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Shree Krishna Janmashtami 2022 : उज्जैन से है श्री कृष्ण भगवान का नाता, जानें क्या है खासियत
उज्जैन में श्री कृष्ण भगवान ने सांदीपनि आश्रम में शिक्षा ग्रहण की,यही सीखी थी 64 कला, यही हुई थी सुदामा से दोस्ती, उज्जैन में है 200 साल प्राचीन द्वारकाधीश, यहाँ है दोस्ती का मंदिर तो भक्त मीरा के सा
Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 19 Aug 2022 05:08 PM
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उज्जैन में श्री कृष्ण भगवान ने सांदीपनि आश्रम में शिक्षा ग्रहण की,यही सीखी थी 64 कला, यही हुई थी सुदामा से दोस्ती, उज्जैन में है 200 साल प्राचीन द्वारकाधीश, यहाँ है दोस्ती का मंदिर तो भक्त मीरा के साथ भी विराजित है, आश्रम में खड़े है नंदी>
सांदीपनि आश्रम जहां कृष्ण ने पाई थी शिक्षा
- देश भर में भगवान श्री कृष्ण की जन्माष्टमी मनाई जा रही हे लेकिन किया कोई जनता है की भगवान श्री कृष्ण का नात महाकाल की नगरी उज्जैन से भी रहा है भगवान कृष्ण 11 साल की उम्र में 5,500 वर्ष पूर्व द्वापर युग में उज्जैन में स्थित महर्षि सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा लेने के लिए आए थे।इसी आश्रम में रहकर चौंसठ कलाएं सीखी तथा वेदों और पुराणों का अध्ययन किया था।आश्रम का वह मुख्य स्थान जहां कभी गुरु सांदीपनि बैठा करते थे आज वहां मंदिर के रूप में एक कमरा बना हुआ है। उस कमरे के भीतर गुरु-शिष्य परंपरा को अलग-अलग तरह से मूर्ति रूप में दर्शाया गया है। इन्हीं मूर्तियों में से एक गुरु सांदीपनि की प्रतिमा और प्रतिकात्मक रूप से उनकी चरण पादुकाएं रखी गई हैं और जहां बैठ कर बलराम, श्रीकृष्ण और सुदामा विद्या ग्रहण किया करते थे आज उसी स्थान पर उनकी प्रतिमाओं को भी पढ़ने और लिखने की मुद्रा में दर्शाया गया है।आश्रम के पास ही में स्थित एक ‘अंकपट’ को लेकरमान्यता है कि श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम यहीं बैठकर अंक लिखने का अभ्यास किया था। और इसी कारण इस संपूर्ण क्षेत्र को प्राचीनकाल से ही अंकपात क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण जब इस आश्रम में आये थे तो कार्तिक मास की बैकुंठ चतुर्दशी के दिन अवंतिका के राजा महाकाल स्वयं उनसे मिलने के लिए गुरु सांदीपनि के आश्रम में पधारे थे।इसलिए इस आश्रम में नंदी खड़े नज़र आते हैं।
नारायणा धाम जहां है कृष्ण सुदामा मंदिर
- उज्जैन से करीब 40 किलोमीटर दूर महिदपुर रोड पर नारायणा में भगवान कृष्ण और सुदामा की हुई थी दोस्ती नारायण धाम में बना है भगवान कृष्ण सुदामा मंदिर है यह दुनिया का एकमात्र मंदिर है जिसमें श्री कृष्ण अपने मित्र सुदामा के साथ में यहां विराजत है मान्यता है कि गुरु माता ने श्रीकृष्ण व सुदामा को लकड़ियां लाने के लिए जब जंगल में भेजा था तो आश्रम लौटते समय तेज बारिश शुरू हो गई और श्रीकृष्ण-सुदामा ने एक स्थान पर रुक कर यहां विश्राम किया था नारायण धाम वही स्थान है जहां श्रीकृष्ण व सुदामा बारिश से बचने के लिए रुके थे। इस मंदिर में दोनों ओर स्थित हरे-भरे पेड़ों के बारे में लोग कहते हैं कि ये पेड़ उन्हीं लकड़ियों के गट्ठर से फले-फूले हैं जो श्रीकृष्ण व सुदामा ने एकत्रित की थी यही वो स्थान है जहां सुदामा ने सृष्टि को दरिद्रता से बचाया था
द्वारकाधीश बड़ा गोपाल मंदिर
- उज्जैन के पुराने शहर में है द्वारकाधीश मंदिर बताया जाता है की यहाँ मंदिर 200 वर्ष प्राचीन है यह प्रसिद्ध मंदिर नगर का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। मंदिर का निर्माण संवत 1901 में कराया था, जिसमें मूर्ति की स्थापना संवत 1909 में की गई थी। सन 1844 में मंदिर का निर्माण और 1852 में मूर्ति की स्थापना हुई। दौलतराव सिंधिया की पत्नी बायजा बाई द्वारा करवाया गया था। मंदिर के गर्भगृह में लगा रत्न जड़ित द्वार दौलतराव सिंधिया ने गजनी से प्राप्त किया था, जो सोमनाथ की लूट में वहाँ पहुँच गया था। मंदिर का शिखर सफ़ेद संगमरमर तथा शेष मंदिर सुन्दर काले पत्थरों से निर्मित है। मंदिर का प्रांगण और परिक्रमा पथ भव्य और विशाल है। 'बैकुंठ चौदस' के दिन महाकाल की सवारी हरिहर मिलन हेतु मध्य रात्रि में यहाँ आती है तथा भस्म आरती के समय गोपाल कृष्ण की सवारी महाकालेश्वर जाती है यहाँ 'जन्माष्टमी' के अलावा 'हरिहर का पर्व' बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हरिहर के समय भगवान महाकाल की सवारी रात बारह बजे आती है, तब यहाँ हरिहर मिलन विष्णु और शिव का मिलन होता है। यहाँ भगवान सृष्टि का भार सोपकर वैकुण्ठ धाम चले जाते है
भक्त मीरा के साथ विराजित
- देश भर में तो आपने भगवान कृष्ण के साथ अक्सर राधा बलराम देखे होंगे लेकिन उज्जैन में एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान श्री कृष्ण के साथ भक्त मीरा विराजित है ये मंदिर उज्जैन के मक्सी रोड स्थित भगवान कृष्ण और मीरा का भी मीरा माधव मंदिर है हालांकि यह मंदिर प्राचीन नहीं है लेकिन मध्यप्रदेश के एकमात्र मंदिर है जहां भक्त मीरा के साथ भगवान विराजमान है इस मंदिर श्री कृष्ण के साथ मीरा की भी पूजा होती है जन्माष्टमी पर श्रद्धालु यहां पहुंचते है पुजारी एक अनुसार इस मंदिर का निर्माण सन 1971 में हुआ था
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