Sharad Purnima : पूर्णिमा तिथि रात्रि तक, कर लें ये खास उपाय, चमकेगा भाग्य का सितारा, ज्योतिषाचार्य से जानें शरद पूर्णिमा की संपूर्ण जानकारी
प्रत्येक वर्ष आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ व्रत कोजागरी पूर्णिमा व्रत किया जाता है। इस वर्ष पूर्णिमा तिथि सूर्योदय के साथ ही आरंभ हो रही है।
प्रत्येक वर्ष आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ व्रत कोजागरी पूर्णिमा व्रत किया जाता है। उत्थान ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिर्विद पं. दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली ने बताया कि इस वर्ष यह व्रत पर्व 9 अक्टूबर 2022 दिन रविवार को बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाएगा। इस वर्ष पूर्णिमा तिथि सूर्योदय के साथ ही आरंभ होकर रात में 2:24 तक व्याप्त रहेगा। अतः संपूर्ण दिन पूर्णिमा तिथि प्राप्त हो रहा है। इस दिन रात्रि के मध्यान काल में माता लक्ष्मी का विशेष पूजन अर्चन किया जाता है ।
आश्विन मास की पूर्णिमा को कोजागरी व्रत रखा जाता है।इसे कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है कि इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है।
उत्थान ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिर्विद पं. दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली ने बताया कि इस दिन ग्रहों का बहुत ही सुंदर संजोग भी बन रहा है । एक तरफ जहां चंद्रमा और बृहस्पति मीन राशि में गजकेसरी योग का निर्माण कर रहे हैं ।
बुध और सूर्य मिल कर बुधादित्य नामक राजयोग का निर्माण कर रहे है तथा बुध और शुक्र मिलकर लक्ष्मी नारायण नामक राजयोग का निर्माण कर रहे हैं तो वही बुध भद्र नामक पंच महापुरुष योग। बृहस्पति हंस नामक पंच महापुरुष योग ।शनिदेव श्राद्ध नामक पंच महापुरुष योग का निर्माण करने जा रहे हैं अतः यह पूर्णिमा तिथि श्रेष्ठ फल प्रदायक होकर व्रत पूजन का संपूर्ण फल प्रदान करने वाला होगा।
पौराणिक कथा पर ध्यान दिया जाए तो कोजागरी पूर्णिमा अर्थात शरद पूर्णिमा के दिन ही माता लक्ष्मी का अवतरण हुआ था। मान्यता है कि दीपावली के पूर्व शरद पूर्णिमा की रात में माता महालक्ष्मी अपने कर कमलों से वर एवं अभय प्रदान करने के लिए निशीथ काल अर्थात मध्य रात्रि में संसार में भ्रमण करते हुए मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है और जागकर कौन पूजा पाठ यज्ञ हवन करते हुए सत्कर्म में लिप्त है । इसलिए इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा कहा जाता है। अतः इस दिन परिवार के सभी सदस्यों को एकजुट होकर घर की साफ-सफाई जरूर करनी चाहिए क्योकिं मां लक्ष्मी साफ और स्वच्छ घर में ही प्रवेश करती हैं। इसके साथ ही कोजागरी पूर्णिमा का पूजन रात्रि काल में चंद्रोदय के बाद करने का शास्त्रोक्त विधान है।
कोजागरी पूर्णिमा के संदर्भ में नारद पुराण में बहुत ही विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है जिसके अनुसार :
* आश्विन मास की पूर्णिमा को प्रातः स्नान कर उपवास रखते हुए जितेंद्रीय भाव से रहना चाहिए ।
* इस दिन तांबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी प्रतिमा को स्थापित कर के भिन्न- भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें अर्थात षोडशोपचार पूजन करें । परंतु यदि सोने की प्रतिमा नहीं है तो पीतल, चांदी, तांबे आदि के प्रतीकात्मक रूप से मूर्ति का पूजन करना चाहिए।
* इसके पश्चात सायंकाल में चंद्रोदय होने के बाद घी के 11 या अधिक मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए।
* दूध एवं मिश्री से बनी हुई खीर को बर्तन में रखकर चन्द्रमा की चांदनी रात में रख दें।
* एक प्रहर बीत जाने के बाद चांद की रोशनी में रखी हुई खीर का देवी लक्ष्मी को भोग लगावे। तत्पश्चात श्रद्धा भाव के साथ ब्राह्मणों को प्रसाद स्वरूप खिलाकर आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए।
*इस दिन रात के समय जागरण करते हुए माता लक्ष्मी जी का स्मरण एवं पूजा करना चाहिए।
*अगले दिन माता लक्ष्मी की पूजन आदि करके प्रसाद ग्रहण करते हुए व्रत का पारणा करना चाहिए।
इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह व्रत माता लक्ष्मी जी को संतुष्ट करने वाला है । इससे प्रसन्न होकर माता लक्ष्मी इस लोक में समृद्धि देती हैं तथा शरीर का अंत होने पर परलोक में सद्गति प्रदान करती हैं ऐसा नारद पुराण में वर्णित है।
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