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शरद पूर्णिमा 2018 आज : चंद्रमा अपनी सुंदरता के साथ बरसाएगा अमृत

शरद पूर्णिमा पर बुधवार की रात चांद सबसे सुंदर और प्रत्येक दिन से अलग नजर आयेगा। सिर्फ इतना ही नहीं खास बात यह है कि रात को चांद अमृत की बूंदे भी बरसाएगा। लोग इसे परंपरागत तरीके से हर्षोल्लास के साथ...

लखनऊ, वरिष्ठ संवाददाता Wed, 24 Oct 2018 01:23 PM
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शरद पूर्णिमा पर बुधवार की रात चांद सबसे सुंदर और प्रत्येक दिन से अलग नजर आयेगा। सिर्फ इतना ही नहीं खास बात यह है कि रात को चांद अमृत की बूंदे भी बरसाएगा। लोग इसे परंपरागत तरीके से हर्षोल्लास के साथ मनायेंगे। घर-घर इसकी तैयारी कर ली गई है। वैसे तो 24 अक्टूबर को स्नान दान की पूर्णिमा, कोजागरी व्रत, सत्यनारायण व्रत और वाल्मीकि जयन्ती भी है। परंपरा है कि शरद पूर्णिमा को ही कोजागरी व्रत भी किया जाता है। राजधानी में परंपरागत पूजा पर जोर होगा। विभिन्न मंदिरों में पूजन-अर्चन, भगवान का अभिषेक, घर-घर में लक्ष्मी पूजन और महिलायें व्रत भी रखेंगी।  
 रोग-शोक से नाश करेंगी चंद्रमा से निकने वाली किरणें

मान्यता है कि इस रात चंद्रमा से निकलने वाली किरणें रोग व शोक का नाश करती हैं। लोग दूध, चावल, चीनी, मेवा व घी मश्रिति खीर को पतले कपड़े से ढक कर चांद की रोशनी में रखेंगे। दूसरे दिन सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण करेंगे और सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्ति पायेंगे। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम में विशेष रूप से इस दिन लक्ष्मी पूजन किया जायेगा। माता लक्ष्मी, कुबेर और इन्द्र देव का पूजन भी जगह-जगह होगा। मान्यता ऐसी है कि माता लक्ष्मी रात्रि में विचरण करती हैं और भक्तों पर धन-धान्य से पूर्ण करती हैं। 
 
सुबह से ही शुरू हो जायेगा योग
ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल के अनुसार इस वर्ष पूर्णिमा 23 अक्टूबर को रात्रिः 10:37 से शुरू होकर 24 अक्टूबर को रात्रिः 10:15 तक रहेगी। शरद पूर्णिमा में रोहणी नक्षत्र, चन्द्रमा मेष राशि का संयोग बना रहे है। इसदिन भगवान श्री कृष्ण ने ‘रास लीला’ की थी इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहते है। 

कैसे करें पूजन
इस दिन सुबह स्नान करके भगवान श्री कृष्ण या श्री विष्णु जी या अपने इष्ट देव का पूजन अर्चना करना चाहिए और उपवास रखना चाहिए। 
 
खीर को चांदनी रात में रखें
इस दिन रात में गाय के दूध की खीर बनाकर उसमें घी, चीनी मिलाकर अर्ध रात्रि को भगवान को भोग लगाकर खीर को चांदनी रात में रखना चाहिए। ऐसा करने से चन्द्रमा की किरणों से अमृत प्राप्त होता है और अर्ध रात्रि में चन्द्रमा को भी अर्घय देना चाहिए। 
 
सूर्य उदय से पहले प्रसाद ग्रहण करें

पंण्डित शक्तिधर त्रिपाठी के मुताबिक ऐसा कथन है कि चांदनी रात में सुई में धागा पिरोने से आंखो की रोशनी तेज होती है और प्रातःकाल सूर्य उदय से पूर्व इस खीर का प्रसाद के रूप में सेवन करना चाहिए जिससे वर्ष भर अरोग्यता होती है

खगोलशास्त्र में सामन्य पूर्णिमा की तरह माना जाता
इस दिन चंद्रमा हमारी धरती सूरज ओर चांद के बीच होता है। इस प्रक्रिया को युति(कंजक्शन) भी कहते हैं। पढ़ाई में भी इसे नहीं प्रयोग किया जाता है। पौराणिक मान्यता है। पूर्णिमा की तरह ही इसे माना जाता है। 
सुमित श्रीवास्तव, खगोलशास्त्री इंदिरागांधी प्लेनेटेरियम

शरद पूर्णिमा2018  : मान्यताओं से बंधा पर्व

1. सूई में धारा पिरोने से आंखों की रोशनी बढ़ती है
चांदनी रात में सुई में धागा पिरोने से आंखों की रोशनी बढ़ती है और प्रात:काल सूर्य उदय से पूर्व इस खीर का प्रसाद के रूप में सेवन करना चाहिए जिससे वर्ष भर अरोग्यता होती है।

2. माता लक्ष्मी करती हैं रात्रि में विचरण
शरद पूर्णिमा को कोजागरी व्रत भी किया जाता है और माता लक्ष्मी, कुबेर और इन्द्र देव का पूजन और श्री सूक्त, लक्ष्मी स्तोत्र और लक्ष्मी मंत्रों का जाप करते है ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी रात्रि में विचरण करती है और भक्तों पर धन-धान्य से पूर्ण करती है।

3. भगवान श्री कृष्ण ने इस दिन की थी रासलीला
इसदिन भगवान श्री कृष्ण ने ‘रास लीला’ की थी। इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहते है। इस दिन प्रात: स्नान करके भगवान श्री कृष्ण या श्री विष्णु जी या अपने इष्ट देव का पूजन अर्चना करना चाहिए और उपवास रखना चाहिए। 

4. कोजागरी व्रत भी रखती हैं महिलायें
शरद पूर्णिमा को कोजागरी व्रत भी किया जाता है पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम में विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन किया जाता है । माता लक्ष्मी, कुबेर और इन्द्र देव का पूजन और श्री सूक्त, लक्ष्मी स्तोत्र और लक्ष्मी मंत्रों का जाप करते है ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी रात्रि में विचरण करती है और भक्तों पर धन-धान्य से पूर्ण करती है। 
 
ज्योतिषचार्यों की नजर में महत्व

आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते है। इस दिन चन्द्रमा अपनी पूरी 16 कलाओं से युक्त होता है और इस दिन चन्द्रमा की चांदनी अमृत से युक्त होती है। भगवान श्री कृष्ण ने ‘रास लीला’ की थी। इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहते है। 
एस़ एस़ नागपाल, ज्योतिषाचार्य  

लक्ष्मी जी को प्रिय कमल पुष्प, हरतकी, कौड़ी, छोटा सूपडी, धान का लावा, धान, सिंदूर चढ़ाना चाहिए तथा सिद्ध लक्ष्मी, अष्ट लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। महालक्ष्मी की कृपा से माता के अनन्त फल प्राप्त होती है। 
अभय शुक्ला, ज्योतिषाचार्य
 
धरती पर चंद्रमा का विशेष महत्व
यदि किसी की जन्मकुंडली में चंद्रमा पीड़ित है तो शिव उपासना के साथ मोती धारण करने से चांदी का छल्ला पहनने से, चांदी व स्वेत वस्त्र व चावल दान करने से चंद्रमा के कुप्रभावों को नियंत्रित किया जा सकता है।
जितेन्द्र शास्त्री, ज्योतिषाचार्य

स्वास्थ्य के लिये लाभकारी होती चंद्रमा की किरणें

इस मौसम बाहर के खान-पान से परहेज करना चाहिये। वात और पित्त के शमन के लिये शरदपूर्णिमा पर खीर खाने की प्रथा है। पेट की शुद्धि करते हैं जिससे आने वाली ऋतु में गरिष्ठ व पोषक भोजन का पूरा लाभ मिल सके। 
डॉ. कृतिका जोशी
आयुर्वेदाचार्य, आयुर्वेद कॉलेज

ऋतु परिवर्तन की शुरुआत होती है अतः वात पित्त व कफ दोषों को सही स्थिति में लाने के लिये मधुर रस यानी खीर का सेवन किया जाता है। खीर मीठी होती है और शीत ऋतु में होने वाले पित्त को कम करती है। 
डॉ. संजीव रस्तोगी
आयुर्वेदाचार्य, आयुर्वेद कॉलेज

इस पर्व का महत्व मौसम के परिवर्तन के हिसाब से काफी अधिक है। ठंडक की शुरुआत होती है और यह पर्व आपके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता पर प्रभाव डालता है। आगे चलकर आपका डाइजेशन भी सही करता है। जिससे आप गरिष्ठ भोजन कर स्वस्थ्य रह सकते हैं। 
डॉ. एसके पाण्डेय
आयुर्वेद विशेषज्ञ लोहिया अस्पताल

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