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Sharad Purnima 2018: जानें शरद पूर्णिमा से जुड़ी मान्यताएं, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Sharad Purnima 2018: 24 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है। इस तिथि से शरद ऋतु का आरम्भ होता है। इस दिन चन्द्रमा संपूर्ण और सोलह कलाओं से युक्त होता है। इस दिन को 'कोजागर पूर्णिमा' (Kojagara Purnima)...

लाइव हिन्दुस्तान टीम नई दिल्लीMon, 22 Oct 2018 12:12 PM
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Sharad Purnima 2018: 24 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है। इस तिथि से शरद ऋतु का आरम्भ होता है। इस दिन चन्द्रमा संपूर्ण और सोलह कलाओं से युक्त होता है। इस दिन को 'कोजागर पूर्णिमा' (Kojagara Purnima) और 'रास पूर्णिमा' (Raas Purnima) के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को 'कौमुदी व्रत' (Kamudi Vrat) भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। शरद पूर्णिमा की प्रमुख कथाएं और मान्यताएं कुछ इस प्रकार हैं।

चंद्र देव करते हैं शीतलता की वर्षा
चंद्र देव अपनी 27 पत्नियों- रोहिणी, कृतिका आदि नक्षत्र के साथ अपनी पूरी कलाओं से पूर्ण होकर इस रात सभी लोकों पर शीतलता की वर्षा करते हैं। इस दिन इंद्र और महालक्ष्मी का पूजन करते हुए कोजागर व्रत करने की परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है।

अद्भुत कृष्णलीला
इस रात्रि को अद्भुत कृष्णलीला होती है। भगवान गोपियों की कई जन्मों की तपस्या को पूर्णकरते हैं। गोपियां भगवान की लीला का अंश बनकर धन्य होती हैं। भगवान धीरे-धीरे नाच रहे हैं। गोपियां गा रही हैं। कृष्ण को बना कर लिखे गीतों में कृष्ण के सौत के प्रति प्रेम पर उन्हें नटनागर कहा जा रहा है। नटनागर सबकुछ जान रहे हैं और मुस्करा रहे हैं। बांसुरी के संगीत में अद्भुत मोहक धुन है। गोपियां कृष्ण भक्ति में तल्लीन हैं। योगेश्वर श्रीकृष्ण सभी के साथ अलग-अलग, लेकिन एक ही रूप में हैं। तभी तो इसे रास पूर्णिमा कहते हैं।

जानिए क्यों कहा जाता है इसे कौमुदी महोत्सव
भगवान शिव तो इसी रासलीला के मोह में भगवान श्रीकृष्ण का यह वचन भी भूल गए कि जो इस रास में शामिल होगा, उसे स्त्री का ही रूप स्वीकारना होगा। पर रासलीला का उनका मोह समाप्त नहीं हुआ, वरन् कृष्ण को देखने की प्रबल इच्छा में बदल गया। वृन्दावन में गोपेश्वर महादेव के मंदिर में इसीलिए तो शिवजी दिन में शिव रूप में रहते हैं और फिर साज-श्रृंगार के साथ गोपी का रूप धारण करते हैं। यूं इसे कौमुदी महोत्सव भी कहा जाता है। वृन्दावन में इस दिन भव्य उत्सव मनता है। शरद पूर्णिमा के दिन मानों चंद्रमा की शीतलता मन में भी घर कर जाती है। इस दिन में गजब की ईश्वरीय शांति है। संकटों से घिरा मन प्रसन्नता से भरा-पूरा होता है। इस दिन सात्विक रहें। पूर्ण ब्रह्मचर्य भी जरूरी है।

रात को घर की छत पर खीर रखने का चलन
शरद पूर्णिमा में रात को गाय के दूध से बनी खीर या केवल दूध छत पर रखने का प्रचलन है। ऐसी मान्यता है कि चंद्र देव द्वारा बरसाई जा रहीं अमृत की बूंदें, चांदनी, खीर या दूध को अमृत से भर देती हैं। इस खीर में गाय का घी भी मिलाया जाता है। इस दिन चंद्रमा की पूजा करने का विधान भी है, जिसमें उन्हें पूजा के अंत में अर्घ्य भी दिया जाता है। भोग भी भगवान को इसी रात्रिमें लगाया जाता है। हेमंत ऋतु इसी दिन से ही शुरू होती है। ऐसा भी माना जाता है कि देवी लक्ष्मी के भाई चंद्रमा इस रात विधि-विधान से पूजा-पाठ करने वालों को शीघ्रता से फल देते हैं।

भगवान शंकर एवं मां पार्वती का कैलाश पर्वत पर रमण
माना भी जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान शंकर एवं मां पार्वती कैलाश पर्वत पर रमण करते हैं। कैलाश पर्वत पर भी चंद्रमा अमृत बरसाता है।

शरद पूर्णिमा व्रत विधि

- पूर्णिमा के दिन सुबह इष्ट देव का पूजन करना चाहिए।
- इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए।
- ब्राह्मणों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए।
- लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है। इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।
- रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए।

- मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है।

- शरद पूर्णिमा के मौके पर श्रद्धालु गंगा व अन्य पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाएंगे। स्नान-ध्यान के बाद गंगा घाटों पर ही दान-पुण्य किया जाएगा।  
 

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