Shab E Barat Mubarak : गुनाहों से तौबा करने की रात है ‘शब-ए-बारात'
इस्लामी कैलेंडर के अनुसार शब-ए-बरात पर्व शाबान माह की चौदह तारीख को मनाया जाता है। जिसमें इस्लाम धर्म के मानने वाले पूरी रात इबादत, तिलावत और सख़ावत (दान-पुण्य) कर मस्जिदों और कब्रिस्तानों में सजावट...
इस्लामी कैलेंडर के अनुसार शब-ए-बरात पर्व शाबान माह की चौदह तारीख को मनाया जाता है। जिसमें इस्लाम धर्म के मानने वाले पूरी रात इबादत, तिलावत और सख़ावत (दान-पुण्य) कर मस्जिदों और कब्रिस्तानों में सजावट करते हैं। पूरी रात इबादत, तिलावत और सख़ावत का दौर रहता है। लेकिन लॉकडाउन की वजह से इस बार घरों में ही लोग दुआएं करेंगे।
हैसियत के मुताबिक खैरात का नियम :
मान्यता है कि बीते वर्ष किए गए कर्मों का लेखा-जोखा तैयार करने और आने वाले साल की तकदीर तय करने वाली इस रात को शब-ए-ब‘रात कहा जाता है। इस रात को पूरी तरह इबादत में गुजारने की परंपरा है। नमाज, तिलावत-ए-कुरआन, कब्रिस्तानों में अपने पूर्वजों तथा अपने बीच जो संसार से जा चुके हैं, की क़ब्रों की सफाई और रोशनी की जाती है। हैसियत के मुताबिक ख़ैरात करना इस रात के अहम काम हैं।
इस त्योहार पर तरह-तरह के स्वादिष्ट मिष्ठानों के अतिरिक्त हलवे पर दिलाई जाने वाली नज़रो फ़ातेहा का भी विशेष महत्व है। दो शब्दों से मिलकर मनाए जाने वाले पर्व शब-ए- बरात में शब का अर्थ रात्रि तथा बारात का मतलब बरी होना, के मौके पर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में शानदार सजावट होती है तथा जलसे का एहतेमाम किया जाता है।
इस बार मस्जिदों एवं कब्रिस्तान में लोग लाक डाऊन का पालन करते हुए भीड़ के साथ नहीं जाएंगे। घरों में ही नज़रो फातेहा करा कर मुल्क की सलामती एवं देश में रह रहे लोगों को इस महामारी से महफूज रखने की दुआएं करेंगे।
शब ए बारात क्यों मनाते हैं? इस दिन लोग कब्रिस्तान इसलिए जाते हैँ कि जो लोग मर चुके हैं, उनकी मग़फिरत मोक्ष की दुआएं करते हैं। इस्लाम को मानने वाले लोग आज की रात कब्रिस्तान जाकर दुनिया से रुखसत हो चुके पुरखों के मोक्ष के लिए दुआ मांगते हैं। हालांकि पूरे देश में इस त्यौहार को हलवे के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है, जो इस बार कोरोना महामारी के चलते फीका रहेगा।
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