मंदिर के अंदर खुली आंखों से करें भगवान के दर्शन, पैड़ी पर बैठकर करें स्मरण
प्राचीन परंपरा के अनुसार जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेड़ी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है? पंडित राजीव...
प्राचीन परंपरा के अनुसार जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेड़ी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है? पंडित राजीव शर्मा के अनुसार मान्यता है कि यह परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई। वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठकर हमें एक श्लोक बोलना चाहिए, यह श्लोक इस प्रकार है
अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।
श्लोक का अर्थ है:
अनायासेन मरणम्...... अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े-पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त न हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।
बिना देन्येन जीवनम्....... अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो। ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।
देहांते तव सानिध्यम ...... अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।
देहि में परमेशवरम्..... हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।
यह प्रार्थना करें गाड़ी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन आदि नहीं मांगना है। यह तो भगवान आपकी पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं। इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। यह प्रार्थना है, याचना नहीं है।
याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी,पुत्र, पुत्री सांसारिक सुख आदि बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना यानी भीख है। हम प्रार्थना करते हैं, प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है विशिष्ट, श्रेष्ठ अर्थात निवेदन।
खुली आंखों से करें भगवान के दर्शन
जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को निहारना चाहिए। उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग मंदिर में आंखें बंद करके खड़े रहते हैं जबकि वहां तो जाते ही भगवान के दर्शनों के लिए हैं। इसलिए भगवान के स्वरूप, श्रीचरणों, श्रंगार का पूर्ण आनंद लें।
मंदिर के अंदर भगवान के पूर्ण दर्शन के बाद जब बाहर पैड़ी पर बैठें तो आंखें बंद कर भगवान के उस स्वरूप को याद करें जिस रूप के मंदिर के अंदर दर्शन किए हैं। मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अगर भगवान का वह स्वरूप याद न आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान के दर्शन करें और वापस आगर मंदिर की पैड़ी पर बैठकर उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।
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