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सकट चौथ व्रत 2019: व्रतियों ने चांद देखकर खोला व्रत, पूजा संपन्न

रांची में चांद दिख गया है। जिसके बाद व्रतियों ने चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया। सकट चौथ को तिलकुटा चौथ, संकटा चौथ, संकष्टि चतुर्थी, माघी चतुर्थी भी कहा जाता है। संकष्टि चतुर्थी...

लाइव हिन्दुस्तान नई दिल्लीThu, 24 Jan 2019 11:39 PM
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रांची में चांद दिख गया है। जिसके बाद व्रतियों ने चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया। सकट चौथ को तिलकुटा चौथ, संकटा चौथ, संकष्टि चतुर्थी, माघी चतुर्थी भी कहा जाता है। संकष्टि चतुर्थी का मतलब होता है संकटों का नाश करने वाली चतुर्थी। महिलाएं आज अपने बच्चों की सलामती की कामना करते हुए पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत का पारण किया जाता है। 

जानिए कैसे करें पूजा

अपने संतान की दीर्घायु और सुखद भविष्य के लिए सभी विवाहित स्त्रियां इस व्रत को रखती हैं।

इस दिन रात में चंद्र देव को अर्ध्य देने के बाद भोजन किया जाता है।

सकट चौथ पर गणेश जी के भालचंद्र स्वरूप के पूजन का विधान है। भालचन्द्र का अर्थ है जिसेक भाल अर्थात मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित हो।

इस दिन गणेश जी पर प्रसाद के रुप में तिल-गुड़ का बना लड्डु और शकरकंदी चढ़ाई जाती है।

शास्त्रों में सकट चौथ पर मिट्टी से बने गौरी, गणेश और चंद्रमा की पूजा की जाती है।

इस व्रत पर तिल को भूनकर गुड़ के साथ कूटकर तिलकुटा अर्थात तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है।

सकट चौथ की पूजा में गौरी गणेश व चंद्रमा को तिल, ईख, गंजी, भांटा, अमरूद, गुड़, घी से भोग लगाया जाता है।

इस मंत्र से करें पूजा

गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥

व्रत की कथा

मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना।

गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे. उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा.

भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया, जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी। जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें।

इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया। इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला। तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी। तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं।

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