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Sakat Chauth Upay : आज चंद्रोदय से पहले जरूर कर लें ये छोटा सा काम, सालभर बरसेगी भगवान गणेश की कृपा

आज सकट चौथ है। हर साल माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर सकट चौथ पड़ता है। हिंदू धर्म में सकट चौथ का बहुत अधिक महत्व होता है।  इस व्रत को सकट चौथ के अलावा सकंष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीTue, 10 Jan 2023 08:44 PM
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आज सकट चौथ है। हर साल माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर सकट चौथ पड़ता है। हिंदू धर्म में सकट चौथ का बहुत अधिक महत्व होता है।  इस व्रत को सकट चौथ के अलावा सकंष्टी चतुर्थी और तिलकुट चौथ भी कहा जाता है। इस दिन माताएं दिन भर व्रत रखती हैं और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत रखने से भगवान सभी कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन संकट हरण गणेश जी का पूरे विधि विधान के साथ पूजन किया जाता है।  शाम को चन्द्रोदय के दर्शन कर पूजा में दूर्वा, शकरकंद, गुड़ और तिल के लड्डू चढ़ाए जाते हैं। दूसरे दिन सुबह सकट माता पर चढ़ाए गए पकवानों को प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है। सकट चौथ के दिन चंद्रोदय से पहले व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार व्रत कथा का पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। आज शाम चंद्रोदय से पहले व्रत कथा का पाठ अवश्य करें। आगे पढ़ें सकट चौथ व्रत कथा...

ये व्रत कथा है प्रचलित- इसके पीछे ये कहानी है कि मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना। 

गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी।

स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें।

इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया । इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला । तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी. तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं।

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