Sakat Chauth vrat ki kahani:यहां पढ़ें सकट चौथ व्रत पर गणेश जी और बुढिया माई वाली खीर बनाने वाली कहानी, भगवान गणपति देते हैं सुख समृद्धि का आशीर्वाद
सकट चौथ का व्रत आज रखा जाएगा। इस दिन भगवान गणेश और सकट माता की पूजा की जाती है।सकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी, वक्रतुण्डी चतुर्थी, माही चौथ और तिल कुटा चौथ भी कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन अगर
सकट चौथ का व्रत आज रखा जाएगा। इस दिन भगवान गणेश और सकट माता की पूजा की जाती है।सकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी, वक्रतुण्डी चतुर्थी, माही चौथ और तिल कुटा चौथ भी कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन अगर सभी माताएं अपनी संतान के लिए व्रत रखती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना भी करती हैं। यहां पढ़ें सकट चौथ व्रत पर गणेश जी और बुढिया माई वाली कहानी Read here sakat chauth ganesh ji vrat katha
sakat chauth vrat katha hindi :सकट चौथ व्रत पर पढ़ते हैं ये चौथ माता की यह देवरानी-जेठानी वाली कहानी
एक बुढ़िया थी। वह बहुत ही गरीब और दृष्टिहीन थीं। उसके एक बेटा और बहू थे। वह बुढ़िया सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी। एक दिन गणेश जी प्रकट होकर उस बुढ़िया से बोले-
'बुढ़िया मां! तू जो चाहे सो मांग ले।'
बुढ़िया बोली- 'मुझसे तो मांगना नहीं आता। कैसे और क्या मांगू?'
तब गणेशजी बोले - 'अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग ले।'
तब बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा- 'गणेशजी कहते हैं 'तू कुछ मांग ले' बता मैं क्या मांगू?'
पुत्र ने कहा- 'मां! तू धन मांग ले।'
बहू से पूछा तो बहू ने कहा- 'नाती मांग ले।'
तब बुढ़िया ने सोचा कि ये तो अपने-अपने मतलब की बात कह रहे हैं। अत: उस बुढ़िया ने पड़ोसिनों से पूछा, तो उन्होंने कहा- 'बुढ़िया! तू तो थोड़े दिन जीएगी, क्यों तू धन मांगे और क्यों नाती मांगे। तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी जिंदगी आराम से कट जाए।'
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इस पर बुढ़िया बोली- 'यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता, दें और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें।'
यह सुनकर तब गणेशजी बोले- 'बुढ़िया मां! तुमने तो हमें ठग लिया। फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा।' और यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ मांगा वह सबकुछ मिल गया। हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सबकुछ दिया, वैसे ही सबको देना।
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एक बार भगवान गणेश बाल रूप में चुटकी भर चावल और चम्मच में दूध लेकर पृथ्वी लोक में निकले। वे सबको अपनी खीर बनाने को कहते जा रहे थे, लेकिन सबने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। इसी दौरान एक गरीब बुढ़िया उनकी खीर बनाने के लिए तैयार हो गई और उसने चूल्हे पर एक भिगोना रख लिया। इस पर गणेश जी ने घर का सबसे बड़ा बर्तन चूल्हे पर चढ़ाने को कहा। बुढ़िया ने बाल लीला समझते हुए घर का बड़ा भगोना उस पर चढ़ा दिया।
गणेशजी के दिए चावल और दूध बढ़ गए और पूरा भगोना उससे भर गया। इसी बीच गणेश जी वहां से चले गए और बोले अम्मा जब खीर बन जाए तो बुला लेना। पीछे से बुढ़िया के बेटे की बहू ने भी चुपके से एक कटोरा खीर खाने के बाद एक कटोरा खीर छिपा दी। अब जब खीर तैयार हो गई तो बुढिया माई ने आवाज लगाई-आजा रे गणेस्या खीर खा ले। बोली, “आजा रे गणेस्या खीर खा ले.” तभी गणेश जी वहां पहुंच गए और बोले कि मैंने तो खीर पहले ही खा ली। तब बुढ़िया ने पूछा कि कब खाई तो वे बोले कि जब तेरी बहू ने खाई तभी मेरा पेट भर गया। बुढ़िया ने इस पर माफी मांगी। इसके बाद जब बुढ़िया ने बाकी बची खीर के उपयोग के बारे में पूछा तो गणेश जी ने उसे नगर में बांटने को कहा। और जो बचें उइसे अपने घर में जमीन के नीचे दबा दें। अगले दिन जब बुढ़िया उठी तो उसे अपनी झोपड़ी महल में बदली हुई और खीर के बर्तन सोने- जवाहरातों से भरे मिले। गणेश जी की कृपा जानकर बुढ़िया काफी प्रसन्न हो गई।
हे गणेश जी महाराज! आपने जैसा फल बुढ़िया को दिया, वैसा सबको देना।
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