Hindi Newsधर्म न्यूज़Sakat Chauth Vrat Katha in Hindi: Read here Sakat Chauth Vrat ki kahani Ganesh ji in hindi

सकट चौथ व्रत की कहानी हिंदी में: इन दो कथाओं के बिना अधूरा है व्रत, गणेश जी और सकट माता देती हैं संतान की लंबी आयु का आशीर्वाद

Sakat Chauth Vrat ki Katha hindi: आज सकट चौथ यानी गणेश जी का व्रत है, आज के दिन महिलाएं अपनी संतान के लिए व्रत रखती हैं और पूरे दिन निर्जल रहकर व्रत करती है। रात को चांद के आने पर व्रत खोलती हैं।

Anuradha Pandey लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 29 Jan 2024 08:03 PM
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Sakat Chauth Vrat ki kahani Ganesh ji in hindi: सकट चौथ यानी गणेश जी का व्रत, इस दिन महिलाएं अपनी संतान के लिए व्रत रखती हैं और पूरे दिन निर्जल रहकर व्रत करती है। रात को चांद के आने पर व्रत खोलती हैं। इस दिन गणेश जी और चौथ माता की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि सकट चौथ का व्रत करने से संतान को लंबी आयु मिलती है और उनके संकट टल जाते हैं। यहां हम आपको बता रहे हैं सकट चौथ के व्रत में पढ़ी जाने वाली कहानियों के बारे में इस व्रत में खास तौर पर एक देवरानी-जेठानी वाली सकट माता की कहानी पढ़ी जाती है, तो दूसरी तरफ गणेश जी और बुढिया माई वाली कहानी पढ़ी जाती है। यहां पढ़ें संपूर्ण व्रत कथा- 

Read here sakat chauth vrat ki kahani एक शहर में देवरानी-जेठानी रहती थी। देवरानी गरीब थी और जेठानी अमीर थी। देवरानी हमेशा गणेश जी का पूजन और व्रत करती थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर बेचता था। देवरानी घर का खर्च चलाने के लिए जेठानी के घर काम करती थी और शाम को बचा हुआ खाना लेकर जाती थी। माघ महीने में गणेश जी का व्रत सकट चौथ देवरानी ने रखा, उसके पास पैसे नहीं थे. इसलिए उसने तिल व गुड़ लाकर तिलकुट्टा बनाया। पूजा करके तिल चौथ की कथा सुनी और जेठानी के यहां काम करने चली गई, सोचा शाम को चंद्र को अर्घ्य देकर जेठानी के यहां से लाया खाना और तिलकुट्टा खाएगी। 

शाम को जब जेठानी के घर खाना बनाया तो, उसके जेठानी का व्रत होने के कारण सभी ने खाना खाने से मना कर दिया। अब देवरानी ने जेठानी से बोला, आप मुझे खाना दे दो, जिससे मैं घर जाऊं। इस पर जेठानी ने कहा कि आज तो किसी ने भी अभी तक खाना नहीं खाया तुम्हें कैसे दे दूँ ? तुम सवेरे ही बचा हुआ खाना ले जाना। देवरानी उदास मन से घर चली आई। देवरानी के घर पर पति , बच्चे सब आस लगाए बैठे थे की आज तो त्यौहार हैं इसलिए कुछ पकवान आदि खाने को मिलेगा, लेकिन जब बच्चो को पता चला कि आज तो रोटी भी नहीं मिलेगी तो बच्चे रोने लगे।


उसका पति भी बहुत क्रोधित हो गया और कहने लगा कि दिन भर काम करने के बाद भी वह दो रोटियां नहीं ला सकती। वह बेचारी गणेश जी को याद करती हुई रोते रोते पानी पीकर सो गई। उस दिन सकट माता बुढ़िया  माता का रुप धरकर  देवरानी के सपने में आईं और कहने लगीं सो रही है या जाग रही है।
वह बोली: कुछ सो रहे हैं, कुछ जाग रहे हैं। बुढ़िया बोली: भूख लगी हैं , खाने के लिए कुछ दे
देवरानी बोली: क्या दूं , मेरे घर में तो अन्न का एक दाना भी नहीं हैं, जेठानी बचा खुचा खाना देती थी आज वो भी नहीं मिला। पूजा का बचा हुआ तिलकुटा छींके में पड़ा हैं, वही खा लो। सकट माता ने तिलकुट खाया और उसके बाद कहने लगी निमटाई लगी है ! कहां निमटे"

उसने कहा: यह खाली झोंपड़ी है आप कहीं भी जा सकती हो, जहां इच्छा हो वहाँ निमट लो
फिरसकट माता बोलीं अब कहां पोंछू अब देवरानी को बहुत गुस्सा आया कि उन्हें कब से परेशान किया जा रहा है, सो बोली कि मेरी साड़ी से पोछ लो। देवरानी जब सुबह उठी तो यह देखकर हैरान रह गई कि पूरा घर हीरों और मोतियों से जगमगा उठा है।उस दिन देवरानी जेठानी के काम करने नहीं गई।
जेठानी ने कुछ देर तो राह देखी फिर बच्चो को देवरानी को बुलाने भेज दिया। जेठानी ने सोचा कल खाना नहीं दिया था इसीलिए शायद देवरानी बुरा मान गई होगी।
बच्चे बुलाने गए 
देवरानी ने कहा कि बेटा बहुत दिन तेरी मं के यहां काम कर लिया। बच्चो ने घर जाकर मां से कहा कि चाची का पूरा घर हीरों और मोतियों से जगमगा उठा है। जेठानी दौड़कर देवरानी के पास आई और पूछा कि यह सब कैसे हो गया?
देवरानी ने उसके साथ जो हुआ वो सब कह डाला। उसने भी वैसा ही करने की सोची। उसने भी सकट चौथ के दिन तिलकुटा बनाया। रात को सकट माता उसके भी सपने में आईं और बोली भूख लगी है, "मैं क्या खाऊं",
जेठानी ने कहा कि आपके लिए छींके में रखा हैं, फल और मेवे भी रखे है जो चाहें खा लो, सकट माता बोली ,"अब निपटे कहां" जेठानी बोली मेरे इस महल में कहीं भी निपट लो, फिर उन्होंने बोला कि अब पोंछू कहां, जेठानी बोली -कहीं भी पोछ लो। सुबह जब जेठानी उठी, तो घर में बदबू, गंदगी के अलावा कुछ नहीं थी। 
हे सकट माता जैसे आपने देवरानी पर कृपा की वैसी सब पर करना। 

एक बुढ़िया थी। वह बहुत ही गरीब और दृष्टिहीन थीं। उसके एक बेटा और बहू थे। वह बुढ़िया सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी। एक दिन गणेश जी प्रकट होकर उस बुढ़िया से बोले-
 'बुढ़िया मां! तू जो चाहे सो मांग ले।'
 
बुढ़िया बोली- 'मुझसे तो मांगना नहीं आता। कैसे और क्या मांगू?' 
 
तब गणेशजी बोले - 'अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग ले।' 
 
तब बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा- 'गणेशजी कहते हैं 'तू कुछ मांग ले' बता मैं क्या मांगू?' 
 
पुत्र ने कहा- 'मां! तू धन मांग ले।' 
 
बहू से पूछा तो बहू ने कहा- 'नाती मांग ले।' 
 
तब बुढ़िया ने सोचा कि ये तो अपने-अपने मतलब की बात कह रहे हैं। अत: उस बुढ़िया ने पड़ोसिनों से पूछा, तो उन्होंने कहा- 'बुढ़िया! तू तो थोड़े दिन जीएगी, क्यों तू धन मांगे और क्यों नाती मांगे। तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी जिंदगी आराम से कट जाए।'

इस पर बुढ़िया बोली- 'यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता, दें और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें।' 
 
यह सुनकर तब गणेशजी बोले- 'बुढ़िया मां! तुमने तो हमें ठग लिया। फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा।' और यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ मांगा वह सबकुछ मिल गया। हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सबकुछ दिया, वैसे ही सबको देना।

 

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