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sakat chauth vrat katha hindi :सकट चौथ व्रत पर पढ़ें यह पौराणिक सकट माता की कथा, सकट माता ने जैसा देवरानी को दिया वैसा सबको दे

एक शहर में देवरानी-जेठानी रहती थी। देवरानी गरीब थी और जेठानी अमीर थी। देवरानी हमेशा गणेश जी का पूजन और व्रत करती थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर बेचता था। देवरानी घर का खर्च चलाने के लिए जेठानी

Anuradha Pandey लाइव हिंदुस्तान टीम, नई दिल्लीTue, 10 Jan 2023 08:39 PM
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Read here sakat chauth vrat ki kahani: सकट चौथ पर भगवान श्रीगणेश जी का पूजा किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा करने से सबसे ज्यादा लाभ होता है। व्रत करने वाले भगवान की कृपा हमेशा बनी रहती है। इसी दिन भगवान गणेश जी उत्पत्ति हुई थी। एक पौराणिक कथा के मुताबिक इसी दिन भगवान गणेश ने भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की परिक्रमा भी की थी। सकट चौथ का व्रत रखने से संतान के लिए फलदायी होता है तथा संतान के सारे दुख खत्म हो जाते हैं। संतान को लंबी उम्र मिलती है। तनाव, नकारात्मकता, तनाव और बीमारियों से संतान को छुटकारा मिलता है। इस दिन व्रत करने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है तथा सौभाग्य में वृद्धि होता है। संतान की लंबी आयु के लिए इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं। इस बार सकट चौथ आज 10 जनवरी को मनाई जा रही है। Read here sakat chauth vrat ki kahani एक शहर में देवरानी-जेठानी रहती थी। देवरानी गरीब थी और जेठानी अमीर थी। देवरानी हमेशा गणेश जी का पूजन और व्रत करती थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर बेचता था। देवरानी घर का खर्च चलाने के लिए जेठानी के घर काम करती थी और शाम को बचा हुआ खाना लेकर जाती थी। माघ महीने में गणेश जी का व्रत सकट चौथ देवरानी ने रखा, उसके पास पैसे नहीं थे. इसलिए उसने तिल व गुड़ लाकर तिलकुट्टा बनाया। पूजा करके तिल चौथ की कथा सुनी और जेठानी के यहां काम करने चली गई, सोचा शाम को चंद्र को अर्घ्य देकर जेठानी के यहां से लाया खाना और तिलकुट्टा खाएगी। 

शाम को जब जेठानी के घर खाना बनाया तो, उसके जेठानी का व्रत होने के कारण सभी ने खाना खाने से मना कर दिया। अब देवरानी ने जेठानी से बोला, आप मुझे खाना दे दो, जिससे मैं घर जाऊं। इस पर जेठानी ने कहा कि आज तो किसी ने भी अभी तक खाना नहीं खाया तुम्हें कैसे दे दूँ ? तुम सवेरे ही बचा हुआ खाना ले जाना। देवरानी उदास मन से घर चली आई। देवरानी के घर पर पति , बच्चे सब आस लगाए बैठे थे की आज तो त्यौहार हैं इसलिए कुछ पकवान आदि खाने को मिलेगा, लेकिन जब बच्चो को पता चला कि आज तो रोटी भी नहीं मिलेगी तो बच्चे रोने लगे।


उसका पति भी बहुत क्रोधित हो गया और कहने लगा कि दिन भर काम करने के बाद भी वह दो रोटियां नहीं ला सकती। वह बेचारी गणेश जी को याद करती हुई रोते रोते पानी पीकर सो गई। उस दिन सकट माता बुढ़िया  माता का रुप धरकर  देवरानी के सपने में आईं और कहने लगीं सो रही है या जाग रही है।
वह बोली: कुछ सो रहे हैं, कुछ जाग रहे हैं। बुढ़िया बोली: भूख लगी हैं , खाने के लिए कुछ दे
देवरानी बोली: क्या दूं , मेरे घर में तो अन्न का एक दाना भी नहीं हैं, जेठानी बचा खुचा खाना देती थी आज वो भी नहीं मिला। पूजा का बचा हुआ तिलकुटा छींके में पड़ा हैं, वही खा लो। सकट माता ने तिलकुट खाया और उसके बाद कहने लगी निमटाई लगी है ! कहां निमटे"

उसने कहा: यह खाली झोंपड़ी है आप कहीं भी जा सकती हो, जहां इच्छा हो वहाँ निमट लो
फिरसकट माता बोलीं अब कहां पोंछू अब देवरानी को बहुत गुस्सा आया कि उन्हें कब से परेशान किया जा रहा है, सो बोली कि मेरी साड़ी से पोछ लो। देवरानी जब सुबह उठी तो यह देखकर हैरान रह गई कि पूरा घर हीरों और मोतियों से जगमगा उठा है।उस दिन देवरानी जेठानी के काम करने नहीं गई।
जेठानी ने कुछ देर तो राह देखी फिर बच्चो को देवरानी को बुलाने भेज दिया। जेठानी ने सोचा कल खाना नहीं दिया था इसीलिए शायद देवरानी बुरा मान गई होगी।
बच्चे बुलाने गए 
देवरानी ने कहा कि बेटा बहुत दिन तेरी मं के यहां काम कर लिया। बच्चो ने घर जाकर मां से कहा कि चाची का पूरा घर हीरों और मोतियों से जगमगा उठा है। जेठानी दौड़कर देवरानी के पास आई और पूछा कि यह सब कैसे हो गया?
देवरानी ने उसके साथ जो हुआ वो सब कह डाला। उसने भी वैसा ही करने की सोची। उसने भी सकट चौथ के दिन तिलकुटा बनाया। रात को सकट माता उसके भी सपने में आईं और बोली भूख लगी है, "मैं क्या खाऊं",
जेठानी ने कहा कि आपके लिए छींके में रखा हैं, फल और मेवे भी रखे है जो चाहें खा लो, सकट माता बोली ,"अब निपटे कहां" जेठानी बोली मेरे इस महल में कहीं भी निपट लो, फिर उन्होंने बोला कि अब पोंछू कहां, जेठानी बोली -कहीं भी पोछ लो। सुबह जब जेठानी उठी, तो घर में बदबू, गंदगी के अलावा कुछ नहीं थी। 
हे सकट माता जैसे आपने देवरानी पर कृपा की वैसी सब पर करना। 

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