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सकट चौथ पर क्यों करते हैं चंद्रदेव की पूजा? ज्योतिषाचार्य से जानें सबकुछ

Sakat Chauth 2024 Pooja Method : सकट चौथ व्रत के दिन सायंकाल में गणेशजी के साथ चंद्रदेव की पूजा का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि इससे नेगेटिविटी दूर होती है और घर में खुशहाली आती है।

Arti Tripathi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 29 Jan 2024 08:01 PM
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Sakat Chauth 2024 Date and Time : पंचांग के अनुसार, इस साल 29 जनवरी 2024 को सकट चौथ का व्रत रखा जाएगा। इस दिन माताएं अपने संतान की अच्छे स्वास्थ्य और सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए सकट चौथ का निर्जला व्रत रखती हैं। धार्मिक मान्यता है कि सकट चौथ का व्रत रखकर और गणेशजी की पूजा करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती हैं। इस दिन रात में चंद्रोदय के चन्द्रमा को जल अर्घ्य देने और उनकी पूजा करने का भी बड़ा महत्व है। चंद्रदेव को जल अर्घ्य दिए बिना सकट चौथ का व्रत अधूरा माना जाता है। आइए जानते हैं सकट चौथ पर चंद्रमा को जल अर्पित करने का महत्व, विधि और मंत्र....

सकट चौथ पर चंद्रदेव की पूजा का महत्व : संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है, लेकिन विनायक चतुर्थी के दिन चंद्रदेव का दर्शन वर्जित माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि चंद्रेदव को अपनी सुंदरता पर घमंड था। वह गणेशजी के हाथी मुख को देखकर हंस रहे थे। तब गणेश जी ने उनको श्राप दिया था के वे अपनी चमक खो देंगे और भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को जो भी चंद्रमा के दर्शन करेगा , उस पर कलंक लगेगा। इस श्राप के कारण चंद्रदेव धीरे-धीरे अपनी चमक खोने लगे। फिर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने गणेश जी से क्षमा मांगा। गणेश जी ने कहा की श्राप का असर खत्म तो नहीं होगा, लेकिन चंद्रदेव की चमक शुक्ल पक्ष से 15 तक बढ़ेगी और कृष्ण पक्ष से 15 दिनों तक घटेगी। वहीं, पूर्णिमा के दिन चंद्रदेव 16 कलाओं से परिपूर्ण होंगे। मान्यताओं के अनुसार, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को जो भी व्रत रखेगा। उसे चंद्रमा की पूजा करना होगा और उन्हें जल अर्घ्य देना होगा। इसके बिना व्रत अधूरा माना जाएगा।

चंद्रदेव को जल अर्ध्य देने की विधि :

एक लोटे में जल, कच्चा दूध, शहद अक्षत और सफेद फूल डाल लें।
सकट चौथ के दिन चांद के निकलने के बाद चंद्रदेव को अर्पित करें।
इसके बाद चंद्रदेव फूल, दीप और अक्षत अर्पित करें और उनकी आरती उतारें।

जल अर्ध्य देने के दौरान इस मंत्रों का जाप करें : 

गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥
 

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