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Sakat Chauth Vrat 2023: आज है सकट चौथ व्रत, जानें पूजन विधि, आरती, व्रत कथा और चांद निकलने का समय

Sakat Chauth Vrat 2023 Katha and Moonrise Timing India: सकट चौथ के दिन शाम को चांद को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत पारण किया जाता है। इस व्रत में व्रत कथा का भी विशेष महत्व है।

Saumya Tiwari लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीTue, 10 Jan 2023 05:42 PM
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Sakat Chauth 2023 Vrat Chand Nikalne ka Time and Puja Vidhi: आज 10 जनवरी 2023, मंगलवार को सकट चौथ का व्रत है। यह व्रत माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। आज के दिन भगवान गणेश और चंद्रमा का पूजन किया जाता है। यह व्रत संतान की प्राप्ति और संतान की उम्र लंबी चाहने के लिए माताएं रखती हैं। कहते हैं कि इस दिन गणेश भगवान की पूजा अर्चना करने से जीवन में हर तरह की विघ्न समाप्त होती है। जिन संतान की चाह होती है उन्हें संतान प्राप्ति और संतान की सलामती के लिए भी यह व्रत रखा जाता है। इस दिन तिलकूट का प्रसाद बनाया जाता है और भगवान गणेश को भग लगाया जाता है। इसलिए इसे तिलकूट चतुर्थी भी कहा जाता है।  

सकट चौथ के दिन चन्द्रोदय समय- रात 08 बजकर 41 बजे होगा। इसी समय चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाएगा और व्रत को खोला जाएगा। माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 10 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 09 मिनट से शुरू होगी और 11 जनवरी को दोपहर 02 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी। इस व्रत में कथा पढ़ी जाती है। एक कथा भगवान शंकर वाली है और एक कथा कुम्हार वाली है। 

सकट चौथ पूजन विधि- 
- प्रातःकाल स्नान करके गणेश जी की पूजा का संकल्प लें।
- इस दिन फलाहार ही करना चाहिए। 
- संध्याकाल में भगवान गणेश की कथा पढ़ें
- भगवान को तिल के लड्डू और पीले पुष्प अर्पित करें । भगवान गणेश को दूर्वा भी अर्पित करनी चाहिए।
- चन्द्रमा को अर्घ्य दें 
आरती:

सकट चौथ के दिन करें श्री गणेश की आरती

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय…
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय…
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी। कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जय…
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। 
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय… 

सकट चौथ व्रत कथा-

किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ''हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा।'' राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढि़या के लड़के की बारी आई।

बुढि़या के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढ़िया सोचने लगी, ''मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा।'' तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ''भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।''

सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढ़िया सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढ़िया का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।
 

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