Hindi Newsधर्म न्यूज़Sakat Chauth Vrat 2021 Story or Katha of Sakat Chauth Vrat Date Subh Muhurat Importance and Significance

Sakat Chauth Vrat 2021: इस दिन है सकट चौथ व्रत, इन पौराणिक कथाओं को पढ़ने या सुनने से दूर हो जाते हैं सभी कष्ट

सकट चौथ का व्रत हर महीने पड़ता है। लेकिन माघ महीने में पड़ने वाली सकट चौथ का विशेष महत्व होता है। इसे संकष्टी चतुर्थी (sankashti chaturthi) या तिलकुट चौथ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माताएं अपनी...

Saumya Tiwari लाइव हिन्दुस्तान टीम, नई दिल्लीSun, 3 Jan 2021 11:09 AM
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सकट चौथ का व्रत हर महीने पड़ता है। लेकिन माघ महीने में पड़ने वाली सकट चौथ का विशेष महत्व होता है। इसे संकष्टी चतुर्थी (sankashti chaturthi) या तिलकुट चौथ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से भगवान गणेश सभी कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं। इस साल सकट चौथ 31 जनवरी, 2021 को है।

सकट चौथ शुभ मुहूर्त-

31 जनवरी 2021 को रात 08 बजकर 24 मिनट से चतुर्थी तिथि शुरू होगी और 01 फरवरी 202 1 को शाम 06 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी।

सकट चौथ व्रत कथा-

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सकट चौथ के दिन गणेश भगवान के जीवन पर आया सबसे बड़ा संकट टल गया था। इसीलिए इसका नाम सकट चौथ पड़ा। इसे पीछे ये कहानी है कि मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना।

गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी।

स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें ।

इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया । इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला । तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी। तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं।

एक अन्य कथा भी है प्रचलित-

व्रत कथा

किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ''हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा।'' राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढि़या के लड़के की बारी आई। बुढि़या के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढ़िया सोचने लगी, ''मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा।'' तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ''भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।''

सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढि़या सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढ़िया का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।

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