Hindi Newsधर्म न्यूज़Pradosh Katha: Pradosh is on 24th December note down the Pradosh puja method and the story of Pradosh fast

24 दिसंबर को है प्रदोष, नोट कर लें प्रदोष पूजा विधि और प्रदोष व्रत की कथा-कहानी

Pradosh Fast: मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को साल का आखिरी प्रदोष व्रत रखा जाएगा। प्रदोष की कथा का पाठ करना बेहद ही पुण्य दायक माना जाता है।

Shrishti Chaubey लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 21 Dec 2023 02:55 AM
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Pradosh Katha: धार्मिक मान्यताओं में रवि प्रदोष व्रत काफी खास माना जाता है। रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष व्रत कहते हैं। वहीं, जल्द ही दिसंबर का आखिरी प्रदोष व्रत पड़ेगा। मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को साल का आखिरी प्रदोष व्रत रखा जाएगा। आने वाले रविवार यानी 24 दिसंबर के दिन 2023 का आखिरी प्रदोष व्रत रखा जाएगा। वहीं, प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष की कथा का पाठ करना बेहद ही पुण्य दायक माना जाता है। इसलिए आइए जानते हैं प्रदोष व्रत पूजा की विधि और व्रत की कथा-कहानी। 

प्रदोष पूजन विधि 
स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण कर लें। संध्या के समय घर के मंदिर में और मुख्य द्वार पर गोधूलि बेला में दीपक जलाएं। फिर शिव मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक करें और शिव परिवार की विधिवत पूजा-अर्चना करें। प्रभु पर कच्चा दूध, गंगाजल, बेलपत्र, सफेद चंदन, अक्षत और कनेर के पुष्प चढ़ाएं। अब प्रदोष व्रत की कथा सुनें। फिर घी के दीपक से पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव की आरती करें। ओम नमः शिवाय का मंत्र-जाप करें। अंत में क्षमा प्रार्थना भी करें।

प्रदोष व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई सहारा नहीं था। इसलिए वह सुबह होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। वह खुद का और अपने पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आयी। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।

एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। वैसा ही किया गया। ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करने के साथ ही भगवान शंकर की पूजा-पाठ किया करती थी। प्रदोष व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के साथ फिर से सुखपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। मान्यता है कि जैसे ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव से दिन बदले, वैसे ही भगवान शंकर अपने भक्तों के दिन फेरते हैं।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। 

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