Parivartini Ekadashi Vrat: एकादशी व्रत करने वाले हर जातक को पूजा के बाद जरूर करने चाहिए ये दो काम
Parivartini Ekadashi Vrat Katha and Aarti: शास्त्रों में वर्णित है कि परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विस्तारपूर्वक सुनाई थी। आप भी पढ़ें यहां परिवर्तिनी एकादशी कथा-
Parivartini Ekadashi Vrat Katha: 25 और 26 सितंबर को भाद्रपद मास की परिवर्तिनी एकादशी व्रत रखा जाएगा। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपना करवट बदलते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत को करने से मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति सभी सुखों को भोगकर अंत में मोक्ष को जाता है। कहते हैं कि एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को पूजा के बाद कुछ कार्य जरूर करने चाहिए, इन कार्यों को करने से पूजा के शुभ फल की शीघ्र प्राप्ति होने की मान्यता है। जानें इन कार्यों के बारे में-
1. एकादशी व्रत कथा पढ़ना या सुनना- हर एकादशी व्रत रखने वाले मनुष्य को पूजा के बाद कथा को सुनना या पढ़ना चाहिए। कहा जाता है कि बिना व्रत कथा के पूजा अधूरी मानी जाती है और जातक को पुण्य फल की प्राप्ति भी नहीं होती है।
2. भगवान विष्णु की आरती- एकादशी व्रत रखने वाले मनुष्य को पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती जरूर उतारनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान श्रीहरि प्रसन्न होते हैं और मनुष्य पर अपनी असीम कृपा बरसाते हैं।
यहां पढ़ें परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन को कथा सुनाते हुए कहते हैं कि त्रेतायुग में बलि नाम का एक असुर था। वह अत्यंत भक्त, दानी, सत्यवादी तथा ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। वह सदा यज्ञ, तप आदि किया करता था। अपनी इसी भक्ति के प्रभाव से वह स्वर्ग में देवेंद्र के स्थान पर राज्य करने लगा। देवराज इन्द्र तथा अन्य देवता इस बात को सहन नहीं कर सके और भगवान श्रीहरि के पास जाकर प्रार्थना करने लगे। अन्त में मैंने वामन रूप धारण किया और तेजस्वी ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की।" यह सुनकर अर्जुन ने कहा - "हे लीलापति! आपने वामन रूप धारण करके उस बलि को किस प्रकार जीता, कृपा कर यह सब विस्तारपूर्वक बताइए।'
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा - "मैंने वामन रूप धारण करके राजा बलि से याचना की- हे राजन! तुम मुझे तीन पग भूमि दान दे दो, इससे तुम्हें तीन लोक के दान का फल प्राप्त होगा।
राजा बलि ने इस छोटी-सी याचना को स्वीकार कर लिया और भूमि देने को तैयार हो गया। जब उसने मुझे वचन दे दिया, तब मैंने अपना आकार बढ़ाया और भूलोक में पैर, भुवन लोक में जंघा, स्वर्ग लोक में कमर, महलोक में पेट, जनलोक में हृदय, तपलोक में कंठ और सत्यलोक में मुख रखकर अपने शीर्ष को ऊंचा उठा लिया। उस समय सूर्य, नक्षत्र, इन्द्र तथा अन्य देवता मेरी स्तुति करने लगे। तब मैंने राजा बलि से पूछा कि हे राजन! अब मैं तीसरा पग कहां रखूं। इतना सुनकर राजा बलि ने अपना शीर्ष नीचे कर लिया।
तब मैंने अपना तीसरा पग उसके शीर्ष पर रख दिया और इस प्रकार देवताओं के हित के लिए मैंने अपने उस असुर भक्त को पाताल लोक में पहुंचा दिया तब वह मुझसे विनती करने लगा। मैंने उससे कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा। भादों के शुक्ल पक्ष की परिवर्तिनी नामक एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है।' इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं।
इस दिन त्रिलोकी-नाथ श्री विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। इसमें चावल और दही सहित चांदी का दान दिया जाता है। इस दिन रात्रि को जागरण करना चाहिये। इस प्रकार उपवास करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्ग लोक को जाता है। जो मनुष्य पापों को नष्ट करने वाली इस एकादशी व्रत की कथा सुनते हैं, उन्हें अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है।
भगवान विष्णु जी की आरती...
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥
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