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मासिक शिवरात्रि और नए साल का संयोग, इस विधि से कर लें भगवान शिव को प्रसन्न, सालभर नहीं आएगा कोई संकट

हर माह में मासिक शिवरात्रि का पावन पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म में मासिक शिवरात्रि का बहुत अधिक महत्व होता है। हर माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। मासिक...

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान टीम, नई दिल्लीSat, 1 Jan 2022 06:43 AM
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हर माह में मासिक शिवरात्रि का पावन पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म में मासिक शिवरात्रि का बहुत अधिक महत्व होता है। हर माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। मासिक शिवरात्रि पर विधि- विधान से भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा- अर्चना की जाती है। मासिक शिवरात्रि पर रात्रि में पूजा का विशेष महत्व होता है। नए साल 2022 की शुरुआत मासिक शिवरात्रि से हो रही है। आज के दिन भगवान शंकर की पूजा- अर्चना करने से सभी तरह के दुख- दर्द दूर हो जाते हैं और भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त होता है। आइए जानते हैं भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैसे करें पूजा- अर्चना-

मुहूर्त-

  • पौष, कृष्ण चतुर्दशी प्रारम्भ - 07:17 ए एम, जनवरी 01
  • पौष, कृष्ण चतुर्दशी समाप्त - 03:41 ए एम, जनवरी 02

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पूजा का शुभ मुहूर्त- 11:58 पी एम से 12:52 ए एम, जनवरी 02

पूजा विधि...

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
  • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
  • शिवलिंग का गंगा जल, दूध, आदि से अभिषेक करें।
  • भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की पूजा अर्चना भी करें।
  • भगवान गणेश की पूजा अवश्य करें। किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा- अर्चना की जाती है।
  • भोलेनाथ का अधिक से अधिक ध्यान करें।
  • ऊॅं नम: शिवाय मंत्र का जप करें।
  • भगवान भोलेनाथ को भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
  • भगवान की आरती करना न भूलें।

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भगवान शिव की ये आरती जरूर करें-

 

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

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