तिल के बिना अधूरा है मकर संक्रांति का त्योहार, जानें इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
बिना तिल के मकर संक्रांति की कल्पना ही नहीं की जा सकती: हेमंत ऋतु में सूर्य का उत्तरायण होना मकर संक्रांति से आरंभ होता है। जिसे यहां के धार्मिक ग्रंथों में बहुत ही शुभ माना गया है।
भारतीय पर्व-त्योहारों में मकर संक्रांति ही एक ऐसा त्योहार है जो न सिर्फ धर्म बल्कि विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है। खगोलीय दृष्टिकोण से सूर्य का मकर राशि में संक्रमण का काल होने के कारण यह किसी न किसी रूप में और विभिन्न नामों से पूरे देश में मनाया जाता है। यही कारण है कि कृषि प्रधान इस देश में इस सबसे बड़े ऋतु पर्व में सूर्य पूजा का प्रचलन है।
बिना तिल के मकर संक्रांति की कल्पना ही नहीं की जा सकती: हेमंत ऋतु में सूर्य का उत्तरायण होना मकर संक्रांति से आरंभ होता है। जिसे यहां के धार्मिक ग्रंथों में बहुत ही शुभ माना गया है। इस नाते लोक-परंपराओं में इस पर्व में नदियों, तालाबों व संगम में स्नान-दान और तिल का दान करना पुण्य प्रदान करने वाला बताया गया है। मकर संक्रांति यानी तिल संक्रांत भी। ऐसे में बिना तिल के इस पर्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती। कहने को तिल एक तेलहन है परंतु इस पर्व के अवसर पर ही विशेष रूप से इसकी उपयोगिता याद आती है।
काले एवं उजले तिल की महत्ता धार्मिक और दैनिक जीवन में: काले तिल की जितनी महत्ता हमारे सनातन धर्म में यज्ञ, हवन, पूजा-पाठ श्राद्ध व दान जैसे कर्म कांडों में है, उतनी ही उपयोगिता हमारे जीवन और घर-गृहस्थी में भी है। तिल का तेल हमारे शरीर और बालों को ठंडक पहुंचाता है तो तिल और तिल से बने व्यंजन शीतकाल में हमारे शरीर को उष्णता देते हैं। काला तिल का उपयोग पूजा-पाठ में ही होता जबकि उजला और काला तिल खानपान में उपयोग होता है। इसी उपयोगिता के कारण ही हमारे शास्त्रों में तिल उपजाना किसानों के लिए पुण्य कार्य कहा गया है।
तिल की सूखी डंठलों की आग के चारों ओर नाच-गान की परंपरा: पंजाब, हरियाणा व दिल्ली में तो मकर संक्राति 'लोहड़ी' के रूप में मनाया जाता है। लोहड़ी पंजाबियों का सबसे प्रमुख त्योहार है। खरीफ फसल के बाद लोहड़ी त्योहार को तिल की सूखी डंठलों की आग के चारों ओर महिला-पुरुषों द्वारा नाच-गान गाकर मनाने की परंपरा है और जाड़े के मौसम में तिल के तिलकुट आदि व्यंजन खाया जाता है।
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