महाशिवरात्रि: जमीन से हुई थी मोटा महादेव स्वयं भू शिवलिंग की उत्पत्ति
उप्र के जनपद बिजनौर के नजीबाबाद से मात्र छह किलोमीटर दूर हरिद्वार मार्ग पर मोटा महादेव सिद्धपीठ मंदिर स्थित है। मान्यता है कि मोटा महादेव स्वयं भू शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाए बिना कांवड़ यात्रा पूरी नहीं...
उप्र के जनपद बिजनौर के नजीबाबाद से मात्र छह किलोमीटर दूर हरिद्वार मार्ग पर मोटा महादेव सिद्धपीठ मंदिर स्थित है। मान्यता है कि मोटा महादेव स्वयं भू शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाए बिना कांवड़ यात्रा पूरी नहीं होती। मोटा महादेव मंदिर पर शिवरात्री के अवसर पर लाखों की संख्या में कांवड़िये जलाभिषेक करते हैं।
मोटा महादेव मंदिर के लिए मान्यता है कि हरिद्वार से गंगा जल लेकर आने वाले शिव भक्तों का पहला पड़ाव मोटा महादेव मंदिर होता है जहां शिव भक्त स्वयं भू शिवलिंग पर जलाभिषेक करके आगे बढ़ते हैं। पैदल चलकर मीलों की यात्रा पूरी कर शिवभक्त मोटा महादेव मंदिर पर विश्राम करते हैं।
यह है मान्यता
मोटा महादेव मंदिर में स्थापित विशाल शिवलिंग की उत्पत्ति जमीन से स्वयं हुई थी। मंदिर के पुजारी शशिनाथ बताते हैं कि लगभग 200 साल से भी अधिक हो चुके हैं। जब जमीन से स्वयं भगवान शिव का विशाल शिवलिंग उत्पन्न हुआ। उसे समय यहां मंदिर नहीं था। दूर तक फैले बियावान जंगल के बींच स्वयं भू शिवलिंग के उत्पन्न होने की सूचना आस पास के क्षेत्र में फैल गई। सहानुपर रियासत के राजा चरत सिंह ने मंदिर का निर्माण कराया। हरिद्वार से कांवड़ लेकर आने वाले शिव भक्तो का पहला पड़ाव बन गया।
सोटा खाकर मिट जाती है थकान
हरिद्वार से पैदल चलकर मोटा महादेव मंदिर में पहुंचने वाले कांवड़ियो के पावं के छाले मोटा महादेव मंदिर में जलाभिषेक करने के बाद सही होने लगते हैं। मान्यता है कि भैरव जी का सोटा खाकर शिवभक्तों की सारी थकान मिट जाती है और वे अपने गंतव्य को फिर से पूरे जोश के साथ आगे बढ़ जाते हैं।
गंगाजल चढ़ाने के लिए लग जाती हैं कतारें
स्वयं भू मोटा महादेव मंदिर पर लाखो की संख्या में शिव भक्त शिवलिंग पर गंगा जल से जलाभिषेक करने के लिए रूकते हैं। हरिद्वार से कांवड़ लेकर आने वाले शिव भक्तों का पहला पड़ाव मोटा महादेव मंदिर ही है। मंदिर पर जलाभिषेक करने के बाद ही कावंड़िये आगे बढ़ते हैं।
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