Khatu Shyam Mandir: होली पर नहीं होंगे खाटू श्याम जी के दर्शन, विशेष पूजा के लिए मंदिर के कपाट रहेंगे बंद
Khatu Shyam : खाटू श्याम जी को भगवान श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार के रूप में जाना जाता है। राजस्थान के सीकर जिले में स्थित श्याम बाबा के भव्य मंदिर में दर्शन के लिए हर दिन लाखों भक्त पहुंचते हैं।
Khatu Shyam Mandir Sikar : खाटू श्याम जी को भगवान श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार के रूप में जाना जाता है। राजस्थान के सीकर जिले में स्थित श्याम बाबा के भव्य मंदिर में दर्शन के लिए हर दिन लाखों भक्त पहुंचते हैं। मान्यता है कि श्याम बाबा सभी की मनोकामनाएं पूरी करते हैं और फर्श से अर्श तक पहुंचा सकते हैं। होली पर्व के दौरान खाटू श्याम मंदिर के कपाट भक्तों के दर्शनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं। दर्शनों के लिए कपाट बंद होने से पहले खाटूश्याम मंदिर में मेला लगता था, जो फाल्गुन द्वादशी तक चलता है।
24 मार्च रात 10 बजे से 27 मार्च 5:30 बजे तक बाबा श्याम के गर्भ गृह के कपाट बंद रहेंगे। बाबा श्याम के मंदिर के कपाट 27 मार्च को 5:30 बजे मंगला आरती के समय खोले जाएंगे।
होली पर्व पर दो दिन बाबा के विशेष पूजा अर्चना होगी। इसमें बाबा का श्रृंगार और तिलक खास हैं। बाबा की विशेष पूजा में 12 से 15 घंटे का समय लगता है। इसके अलावा श्याम के विशेष श्रृंगार में भी करीबन 5 से 6 घंटे का समय लगता है। खाटू श्याम को हारे का सहारा कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो जीवन में हार गए होते हैं, उनकी मन्नतें बाबा पूरी करते हैं।
पढ़ें खाटू श्याम जी की कहानी-
वनवास के दौरान जब पांडव अपनी जान बचाते हुए भटक रहे थे, तब भीम का सामना हिडिम्बा से हुआ। हिडिम्बा ने भीम से एक पुत्र को जन्म दिया जिसे घटोखा कहा जाता था। घटोखा से बर्बरीक पुत्र हुआ। इन दोनों को अपनी वीरता और शक्तियों के लिए जाना जाता था। जब कौरव और पांडवों के बीच युद्ध होना था, तब बर्बरीक ने युद्ध देखने का निर्णय लिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने जब उनसे पूछा वो युद्ध में किसकी तरह हैं, तो उन्होंने कहा था कि वो पक्ष हारेगा वो उसकी ओर से लड़ेंगे।
भगवान श्रीकृष्ण युद्ध का परिणाम जानते थे और उन्हें डर था कि कहीं पांडवों के लिए उल्टा न पड़ जाए। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को रोकने के लिए दान की मांग की। दान में उन्होंने उनसे शीश मांग लिया। दान में बर्बरीक ने उनको शीश दे दिया, लेकिन आखिर तक उन्होंने युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की।
श्रीकृष्ण ने इच्छा स्वीकार करते हुए उनका सिर युद्ध वाली जगह पर एक पहाड़ी पर रख दिया। युद्ध के बाद पांडव लड़ने लगे कि युद्ध की जीत का श्रेय किसे जाता है। तब बर्बरीक ने कहा कि उन्हें जीत भगवान श्रीकृष्ण की वजह से मिली है। भगवान श्रीकृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न हुए और कलियुग में श्याम के नाम से पूजे जाने का वरदान दे दिया।
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