Holika Dahan Katha Kahani: होलिका दहन पर जरूर करें इस कथा का पाठ
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होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। वहीं होलिका दहन पर नकारात्मक सोच का अंत होता है। होली के त्योहार पर रंगोत्सव तो आठ मार्च को होगा लेकिन होलिका दहन को लेकर ज्योतियों, पंडितों का अलग-अलग मत है। कुछ स्थानों पर सोमवार की रात में 12 बजे के बाद होलिका दहन हो गया है तो कुछ स्थानों पर होलिका दहन आज यानी मंगलवार की रात में होगा। हालांकि रंगोत्सव आठ मार्च को होगा। रंगोत्सव के बारे में बताया जाता है कि परेवा तिथि में होता है। मंगलवार की शाम 5:40 बजे के बाद परेवा लग जाएगी इसलिए रंगोत्सव आठ मार्च को ही मनाया जाएगा।
काशी की परम्परा के अनुसार होलिका दहन के बाद से ही रंग की होली प्रारम्भ हो जाती है। इसलिए काशी में 7 मार्च को एवं अन्य सभी स्थानों पर शास्त्रीय प्रमाण एवं परम्परा के अनुसार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में रंग की होली 8 मार्च को रंगोत्सव मनाया जाएगा।
क्या है होलिका दहन की कथा : होलिका दहन की कथा पर चर्चा करते हुए आचार्य ने बताया कि भगवान विष्णु के परम भक्त प्राद के पिता राक्षसराज हिरणाकश्यप था। जो अपने आप को भगवान मानता था। प्राद को रास्ते से हटाने के लिए वह उसका वध करना चाहता था। जबकि उसकी बहन को आग से नहीं जलने का वरदान था। प्राद को अपने गोद में रखकर आग की धधकती ज्वाला में वह बैठ गई। लेकिन प्रभु की कृपा के कारण होलिका जल गई और विष्णु भक्त प्राद बच गया। पूर्णिमा के रात्रि घटित घटना को लेकर उसी समय से होलिका दहन के बाद रंगों का उत्सव होली उसके दूसरे दिन मनायी जाती है।
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