Hindi Newsधर्म न्यूज़Hartalika Teej 2021 Vrat Katha: Must listen or read this story during Hartalika Teej fast otherwise the fast is considered incomplete

Hartalika Teej 2021: हरतालिका तीज व्रत में अवश्य सुने या पढ़ें ये कथा, वरना अधूरा माना जाता है व्रत 

हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज व्रत (Hartalika Teej 2021) रखा जाता है। मान्यता है कि हरतालिका तीज व्रत करने से अखंड सौभाग्य के साथ सुख-शांति प्राप्त...

लाइव हिन्दुस्तान टीम नई दिल्लीThu, 9 Sep 2021 08:40 AM
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हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज व्रत (Hartalika Teej 2021) रखा जाता है। मान्यता है कि हरतालिका तीज व्रत करने से अखंड सौभाग्य के साथ सुख-शांति प्राप्त होती है। कहते हैं कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए किया था। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। इस साल यह व्रत 9 सितंबर, गुरुवार यानी आज है।

ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, हरतालिका तीज व्रत में मिट्टी से बनी शिव-पार्वती प्रतिमा का विधिवत पूजन किया जाता है। आज पूजन के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह से जुड़ी कथा को सुना जाता है। कुंवारी कन्याएं भी सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए हरतालिका तीज व्रत रख सकती हैं। कहते हैं कि एक बार व्रत रखने के बाद इस व्रत को जीवनभर रखा जाता है। बीमार होने पर दूसरी महिला या पति इस व्रत को कर सकते हैं।

हरतालिका तीज व्रत का विशेष महत्व-

शास्त्रों के अनुसार, हरतालिका तीज व्रत में भगवान शंकर और माता पार्वती से जुड़ी कथा का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि बिना व्रत कथा के यह व्रत अधूरा रहता है। इसलिए हरतालिका तीज व्रत रखने वाले को कथा जरूर सुननी या पढ़नी चाहिए।

हरतालिका तीज व्रत कथा-

शास्त्रों के अनुसार, हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए बालकाल में हिमालय पर्वत पर अन्न त्याग कर घोर तपस्या शुरू कर दी थी। इस बात पार्वती जी के माता-पिता काफी परेशान थे। तभी एक दिन नारद जी राजा हिमवान के पास पार्वती जी के लिए भगवान विष्णु की ओर से विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचे। माता पार्वती ने यह शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया।

पार्वती जी ने अपनी एक सखी से कहा कि वह सिर्फ भोलेनाथ को ही पति के रूप में स्वीकार करेंगी। सखी की सलाह पर पार्वती जी ने घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की अराधना की। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनकर विधिवत पूजा की और रातभर जागरण किया। पार्वती जी के तप से खुश होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था।

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