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गुप्त नवरात्रि: वाणी को निपुण करती हैं मातंगी देवी, इनका नहीं होता व्रत

गुप्त नवरात्रि की नौवीं महाविद्या मातंगी है। मातंगी देवी प्रकृति की देवी हैं। कला संगीत की देवी हैं। तंत्र की देवी हैं। वचन की देवी हैं। यह एकमात्र ऐसी देवी हैं जिनके लिए व्रत नहीं रखा जाता है। यह...

सूर्यकांत द्विवेदी, मेरठFri, 20 July 2018 01:57 PM
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गुप्त नवरात्रि की नौवीं महाविद्या मातंगी है। मातंगी देवी प्रकृति की देवी हैं। कला संगीत की देवी हैं। तंत्र की देवी हैं। वचन की देवी हैं। यह एकमात्र ऐसी देवी हैं जिनके लिए व्रत नहीं रखा जाता है। यह केवल मन और वचन से ही तृप्त हो जाती हैं। भगवान शंकर और पार्वती के भोज्य की शक्ति के रूप में मातंगी देवी का ध्यान किया जाता है। मातंगी देवी को किसी भी प्रकार के इंद्रजाल और जादू को काटने की शक्ति प्रदत्त है। देवी मातंगी का स्वरूप मंगलकारी है। वह विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री हैं। पशु, पक्षी, जंगल, आदि प्राकृतिक तत्वों में उनका वास होता है। वह दस महाविद्याओं में नौवें स्थान पर हैं। मातंगी देवी श्री लक्ष्मी का ही स्वरूप हैं। नवरात्रि में जहां नवां स्थान मां सिद्धिदात्री को प्राप्त है, वहां गुप्त नवरात्रि की नौवां स्थान देवी मातंगी को प्राप्त है। स्वरूप दोनों ही श्रीलक्ष्मी के हैं।

मतंग मुनि की पुत्री हैं मातंगी
एक बार भगवान विष्णु और उनकी पत्नी लक्ष्मी जी,भगवान शिव तथा पार्वती से मिलने हेतु उनके निवास स्थान कैलाश शिखर पर गए। भगवान विष्णु अपने साथ कुछ खाने की सामग्री ले गए और शिव जी को भेट किए। भगवान शिव तथा पार्वती ने किया लेकिन कुछ अंश धरती पर गिरे। उन गिरे हुए भोजन के भागों से एक श्याम वर्ण वाली दासी ने जन्म लिया, जो मातंगी नाम से विख्यात हुई। यह भी कहा जाता है कि मुनि मातंग की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नाम मातंगी पड़ा। उनकी सर्वप्रथम आराधना भगवान विष्णु ने की। वह विष्णु की आद्य शक्ति भी मानी गई हैं।

मातंगी देवी का स्वरूप
देवी मातंगी गहरे नीले रंग या श्याम वर्ण की हैं। अर्ध चन्द्र धारण करती हैं। तीन नशीले नेत्र । रत्नमय सिंहासन पर आसीन हैं। उनको कमल का आसन भी प्रिय है। वह गुंजा के बीजों की माला धारण करती हैं। चतुर्भुजी हैं। लाल रंग के आभूषण भी उनको प्रिय हैं। दायें हाथों में वीणा तथा मानव खोपड़ी धारण कर रखी हैं तथा बायें हाथों में खड़ग धारण करती हैं। यह उनकी अभय मुद्रा है। तोते हर समय उनके साथ रहते हैं जो वाणी और वाचन के प्रतीक हैं।

जो बोला वही सिद्ध
मातंगी देवी की आराधना करने वाला वाक् पटु होता है। सत्य, मृदु और लोकहितकारी वाणी उनको पसंद हैं। अपशब्द पसंद नहीं। वाकपटुता से कार्य लेने वालों के लिए मातंगी देवी की आराधना मंगलकारी है। देवी कहती भी हैं कि सत्य बोलो-प्रिय बोलो। इसी में शक्ति है।
 
देवी मातंगी
पूजित नाम : मातंगी।
प्रसिद्ध नाम: सुमुखी, लघुश्यामा या श्यामला, राज-मातंगी, कर्ण-मातंगी, चंड-मातंगी, वश्य-मातंगी, मातंगेश्वरी,
तिथि : वैशाख शुक्ल तृतीया।
कुल : श्री कुल।
कोण : वायव्य कोण।
भाव : सौम्य स्वभाव।
लक्षण : सम्मोहन एवं वशीकरण, तंत्र विद्या पारंगत, संगीत तथा ललित कला निपुण।
शरीर सौष्ठव -काला या गहरा नीला।

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