Eid ul fitr 2023:अल्लाह की तरफ से बंदों को तीस रोजों का इनाम है ईद-उल-फितर
ईद अल्लाह की इबादत का दिन है। इस दिन अल्लाह का शुक्र हर एक के लिए बरसता है। यह दिन अपने लिए दुआएं बटोरने और दूसरों के लिए दुआएं बांटने का पाक दिन है। चूंकि यह दुआ का दिन है इसलिए दुआ करें कि ईद के बाद
ईद अल्लाह की इबादत का दिन है। इस दिन अल्लाह का शुक्र हर एक के लिए बरसता है। यह दिन अपने लिए दुआएं बटोरने और दूसरों के लिए दुआएं बांटने का पाक दिन है। चूंकि यह दुआ का दिन है इसलिए दुआ करें कि ईद के बाद भी अपने नेक कामों को जारी रखेंगे... रमजान के पूरे महीने भूख-प्यास सहकर पूरे तीस रोजे रखने के बाद जो ईद-उल-फितर का त्योहार आता है, ये मुसलमानों के लिए अल्लाह का खास तोहफा व इनाम है। जिन्होंने पूरे माह अल्लाह की याद में अपने वक्तों पर फर्ज नमाज अदा की, नमाज-ए-तरावीह में खड़े होकर पूरा कुरान सुना,नफिल इबादत की, रोजा रखकर किसी को अपनी जुबान से बुरा न कहा और न कान से बुरा सुना, न ही किसी की हक तल्फी (यानी किसी का हक नही मारा) की, किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया और न ही किसी को अपने हाथों से तकलीफ पहुंचाई। अपने रब की रजा की खातिर पूरे माह अपने खाने-पीने, सोने-जागने के वक्तों (समय) में तब्दीली (परिवर्तन) की।
इस दिन अल्लाह की तरफ से बंदों के लिए नवाजिश और इनामात होते हैं, जिन्होंने अपने आप को पूरे माह खाने-पीने से रोके रखा। जो खुशी और मसर्रत से भरपूर होता है। सही मायने में ईद की खुशियां इन्हीं लोगों के लिए है। जैसे कोई मजदूर दिनभर मजदूरी करता है और शाम को जब मालिक द्वारा उसको जो मजदूरी दी जाती है, उस समय मजदूर को जो कैफियत होती है, उसे वह स्वयं ही महसूस करता है। मुसलमान पूरे महीने (29 या 30 रोजे) रोजे रखने के बाद ईद की चांद रात को जब अपनी निगाहों से चांद का दीदार करता है और फिर उसकी सुबह दो रकअत नमाज वाजिब पढ़ने ईदगाह की तरफ बढ़ता है, उसकी खुशी की कल्पना करना मुमकिन ही नहीं बल्कि नामुमकिन है।
दूसरी तरफ ईद उनकी नहीं, जिन्होंने अच्छा लिबास (कपड़े) पहन लिया बल्कि ईद तो उनकी है, जो अल्लाह के अजाब और पकड़ से डर गया। ईद तो उनकी है, जिन्होंने अपने गुनाहों से तौबा की और उस पर जमे रहे। ईद तो उनकी है, जिन्होंने तकवा और परेजगारी अख्तियार की और गुनाहों को छोड़ दिया। ईद-उल-फितर का त्योहार उन अहसासों का त्योहार है, जो मानवता (इनसानियत) के लिए जरूरी है। ये त्योहार हमें ये शिक्षा भी देता है कि जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम हैं, वे ईद के दिन और उसके बाद भी अपने नाते-रिश्तेदार,भाई-बहन, गरीब, अनाथ, विधवा व परेशान हाल लोगों की मदद करते रहें। याद रखें कि हमारे माल, दौलत, रुपये-पैसों पर हमारा ही हक नहीं बल्कि जिनको इनकी जरूरत है, उनका भी हक है। आज हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जहां इनसानियत दम तोड़ती नजर आ रही है। लोगों में खुदगर्जी हावी होती जा रही है। ऐसे में ईद-उल-फितर का त्योहार हमें आपस में खुशियां बांटने का मौका देता है। ये आपसी भाई-चारे और खुशियों का त्योहार है। रमजान का पाक माह बंदों को अच्छाई का रियाज (अभ्यास) कराता है कि ईद के बाद बाकी बचे ग्यारह माह भी इसी तरह गुजार दें।
नासिर कुरैशी
(प्रवक्ता दरगाह आला हजरत,
बरेली शरीफ)
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