Dev Uthani Ekadashi 2019 : तुलसी विवाह में भूलकर भी न करें ये 5 गलतियां, जानें क्या है पूजन की सही विधि
हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी कि देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) को तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) का आयोजन किया जाता है। कई जगह इसके अगले दिन यानी कि द्वादशी...
हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी कि देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) को तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) का आयोजन किया जाता है। कई जगह इसके अगले दिन यानी कि द्वादशी को भी तुलसी विवाह किया जाता है। जो लोग एकादशी को तुलसी विवाह कराते हैं, वे इस बार 8 नवंबर 2019 को इसका आयोजन करेंगे। वहीं, द्वादशी तिथि को मानने वाले 9 नवंबर 2019 को तुलसी विवाह करेंगे। तुलसी विवाह कराते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिससे कि आपको इसका पूरा फल मिल सके। आइए, जानते हैं-
क्या है तुलसी विवाह का महत्व
हिन्दू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु समेत सभी देवगण चार महीने की योग निद्रा से बाहर आते हैं, यही वजह है कि इस एकादशी को ‘देवउठनी एकादशी’ कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न करवाने से वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याओं का अंत हो जाता है। साथ ही जिन लोगों के विवाह नहीं हो रहे हैं उनका रिश्तात पक्का हो जाता है। इतना ही नहीं मान्यता है कि जिन लोगों के घर में बेटियां नहीं है उन्हें तुलसी विवाह कराने से कन्यादान जैसा पुण्य मिलता है।
तुलसी विवाह पूजन की विधि-
- परिवार के सभी सदस्य और विवाह में शामिल होने वाले सभी अतिथि नहा-धोकर व अच्छे कपड़े पहनकर तैयार हो जाएं।
- जो लोग तुलसी विवाह में कन्याएदान कर रहे हैं उन्हें व्रत रखना जरूरी है।
- शुभ मुहूर्त के दौरान तुलसी के पौधे को आंगन में पटले पर रखें। आप चाहे तो छत या मंदिर स्थान पर भी तुलसी विवाह किया जा सकता है।
- अब एक अन्य चौकी पर शालिग्राम रखें। साथ ही चौकी पर अष्ट दल कमल बनाएं।
- अब उसके ऊपर कलश स्थापित करें। इसके लिए कलश में जल भरकर उसके ऊपर स्वास्तिक बनाएं और आम के पांच पत्ते वृत्ताकार रखें। अब एक लाल कपड़े में नारियल लपेटकर आम के पत्तों के ऊपर रखें।
- तुलसी के गमले पर गेरू लगाएं। साथ ही गमले के पास जमीन पर गेरू से रंगोली भी बनाएं।
- अब तुलसी के गमले को शालिग्राम की चौकी के दाईं ओर स्थापित करें।
- अब तुलसी के आगे घी का दीपक जलाएं।
- इसके बाद गंगाजल में फूल डुबोकर "ऊं तुलसाय नम:" मंत्र का जाप करते हुए गंगाजल का छिड़काव तुलसी पर करें।
- फिर गंगाजल का छिड़काव शालिग्राम पर करें।
- अब तुलसी को रोली और शालिग्राम को चंदन का टीका लगाएं।
- तुलसी के गमले की मिट्टी में ही गन्ने से मंडप बनाएं और उसके ऊपर सुहाग की प्रतीक लाल चुनरी ओढ़ाएं।
- इसके साथ ही गमले को साड़ी को लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाकर उनका श्रृंगार करें।
- अब शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर पीला वस्त्र पहनाएं।
- तुलसी और शालिग्राम की हल्दी करें। इसके लिए दूध में हल्दी भिगोकर लगाएं।
- गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप लगाएं।
- पूजन करते हुए इस मौसम आने वाले फल जैसे बेर, आवंला, सेब आदि चढ़ाएं।
- शालिग्राम को चौकी समेत हाथ में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा कराएं। घर के किसी पुरुष सदस्यो को ही शालिग्राम की चौकी हाथ में लेकर परिक्रमा करनी चाहिए।
- इसके बाद तुलसी को शालिग्राम के बाईं ओर स्थापित करें।
- आरती उतारने के बाद विवाह संपन्न होने की घोषणा करें और वहां मौजूद सभी लोगों में प्रसाद वितरण करें।
- तुलसी और शालिग्राम को खीर और पूड़ी का भोग लगाया जाता है।
- तुलसी विवाह के दौरान मंगल गीत भी गाएं।
तुलसी विवाह में न करें ये गलतियां
-कई लोग प्लास्टर ऑफ पेरिस से तुलसी विवाह मंडप बना लेते हैं लेकिन ऐसा करने से बचना चाहिए। आप गोबर, मिट्टी से मंडप बनाकर उसपर हल्दी का लेप लगा सकते हैं।
-पूजन का सामान रखने के लिए प्लास्टिक के सामान का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। प्लास्टिक को धार्मिक दृष्टि से शुभ नहीं माना जाता।
-खीर को शुभ माना जाता है। खीर को प्रसाद के रूप में बांटने से पहले तुलसी और शालिग्राम को भोग लगाना नहीं भूलना चाहिए।
-एकादशी के दिन चावल न खाने की मान्यता है, जबकि दूध में भिगोई हुई खीर भोग लगाने के बाद खाई जा सकती है। इस दिन चावल खाने और बनाने से परहेज करना चाहिए।
-तुलसी विवाह में प्रसाद या भोज बनाते समय लहसुन, प्याज का परहेज करना चाहिए।
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