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Dev Deepawali 2022: शिव की जीत की खुशी में देवताओं ने मनाई दिवाली

असुर तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने देवताओं को पराजित करने के लिए कठोर तप किया। उनके कठोर तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उनसे वरदान मांगने को कहा। तीनों ने अमर होने का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने

Anuradha Pandey हिंदुस्तान टीम, नई दिल्लीTue, 8 Nov 2022 07:17 AM
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असुर तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने देवताओं को पराजित करने के लिए कठोर तप किया। उनके कठोर तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उनसे वरदान मांगने को कहा। तीनों ने अमर होने का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने इसे अस्वीकारते हुए, ऐसा वरदान मांगने को कहा, जो कठिन हो, जिससे किसी और के लिए उन्हें मारना असंभव-सा हो जाए।

तीनों ने बहुत विचार किया और ब्रह्माजी से वरदान मांगा, ‘हे प्रभु! आप हमारे लिए तीन अद्भुत नगरों का निर्माण करें। वे तीनों नगर जब अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में आएं और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की शक्ति रखता हो, वही व्यक्ति अत्यंत शांत अवस्था में हमें मारे, तभी हमारी मृत्यु हो और हमें मारने के लिए उस व्यक्ति को एक ऐसे रथ और बाण की आवश्यकता हो, जो बनाना असंभव हो। उनकी इच्छा सुनकर ब्रह्माजी ने कहा,‘तथास्तु!’ब्रह्माजी ने विश्वकर्माजी को तारकाक्ष के लिए स्वर्णपुरी, कमलाक्ष के लिए रजतपुरी और विद्युन्माली के लिए लौहपुरी का निर्माण करने को कहा। ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त होने के बाद तीनों असुर सातों लोकों में आतंक मचाने लगे। उन्होंने देवताओं को पराजित कर देवलोक से बाहर निकाल दिया। इन तीनों असुरों को ही त्रिपुरासुर कहा जाता था।

त्रिपुरासुर के आतंक से त्रस्त होकर इंद्र देवताओं सहित भगवान शिव की शरण में गए। उनकी पीड़ा सुनकर शिवजी ने त्रिपुरासुर का संहार करने का निश्चय किया। भगवान शिव ब्रह्माजी द्वारा उन तीनों को दिए गए वरदान के अनुसार विशेष रथ पर सवार हुए। इस दिव्य रथ की हर एक चीज देवताओं से बनी थीं। सूर्य और चंद्रमा से पहिए बने। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चार घोड़े बनें। हिमालय धनुष बने। शेषनाग प्रत्यंचा बनें। भगवान विष्णु बाण बनें। बाण की नोंक बने अग्निदेव। भगवान शिव और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। और अभिजित नक्षत्र में तीनों नगरों के एक पंक्ति में आते ही भगवान शिव ने अपने बाण से तीनों नगरों को जलाकर भस्म कर तीनों असुरों का अंत कर दिया। तभी से भगवान शिव त्रिपुरांतक बन गए। त्रिपुरांतक का अर्थ है, तीन पुरों का अर्थात नगरों का अंत करनेवाले।

भगवान शिव ने जिस दिन त्रिपुरासुर का वध किया था, उस दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि थी। इस पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर के वध की खुशी में देवताओं ने शिव की नगरी काशी में जाकर दीप जलाए इसलिए इसका एक नाम देव दिवाली भी पड़ा।

अश्वनी कुमार

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