चैत्र नवरात्र: इस मंदिर में पूजा के बाद ही नवदंपति करते हैं नए जीवन की शुरूआत
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जनपद बागपत के बड़ागांव का प्राचीन मंशा देवी मंदिर श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है। मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मां मंशा मैया पूरी करती हैं। नवरात्र में यहां दो...
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जनपद बागपत के बड़ागांव का प्राचीन मंशा देवी मंदिर श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है। मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मां मंशा मैया पूरी करती हैं। नवरात्र में यहां दो बार मेला लगता है, हालांकि कोरोना के चलते यह प्राचीन परंपरा पिछले वर्ष और इस वर्ष पूर्ण नहीं हो पाई।
रावण उर्फ बड़ागांव नाम से ही पता चल जाता है कि गांव का संबंध किसी न किसी रूप में रावण से रहा होगा। गांव के एक छोर पर स्थित प्राचीन मंशा देवी मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। प्रति वर्ष यहां दूर दराज से हजारों लाखों श्रद्धालु आकर पूजा अर्चना करते हैं। गांव के नवदंपति भी अपने नए दांपत्य जीवन की शुरुआत मां की पूजा अर्चना के बाद ही करते है।
प्राचीन मान्यता है कि मंशा देवी की मूति को हिमालय पर्वत या किसी पवित्र स्थान से लंकाधिपति रावण लाए थे। बताया जाता है कि रावण को बड़ागांव के जंगल में लघुशंका की शिकायत हुई, तो उन्होंने वहां गाय चरा रहे ग्वाले को मूति देते हुए कहा। वह निवृत्त होने के बाद मूति को ले लेंगे, तब तक वे मूति को हाथ में रखे, जमीन पर नहीं रखना।
बताया जाता है कि मूति को रावण लंका ले जाना चाहता था, लेकिन देवी की शर्त थी कि यदि कहीं पर उन्हें जमीन पर रख दिया तो फिर नहीं उठेंगी। मान्यता के अनुसार, मूति के तेज को ग्वाला सहन नहीं कर सका और मूति को वहीं पर रख दिया। इसके बाद रावण ने पूरा जोर लगाया, लेकिन मूति नहीं उठी। बताया जाता है तभी से देवी की मूति यही पर विराजमान हैं।
रावण कुंड का अस्तित्व हुआ समाप्त
रावण मूति के न उठने पर कुछ दिन यहीं रहा और देवी की पूजा अर्चना की। दैनिक नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद स्नान ध्यान आदि करने के लिए उसने एक तालाब भी बनाया था। महाभारत सर्किट योजना के तहत विकास के नाम पर यहां पर रावण कुंड नाम से बोर्ड भी लगाया था, लेकिन आज यहां न तो बोर्ड है और न ही तालाब का अस्तित्व।
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