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बिहार के इस मंदिर में मां का है पिंड स्वरूप, पट बंद होते ही पुजारी भी चले जाते घर, मान्यता है मां विचरण करने आती हैं

बिहटा। राजधानी पटना से करीब 35 किमी और बिहटा रेलवे स्टेशन से 5 किमी की दूरी पर स्थित है प्रख्यात वन देवी मंदिर। यह मंदिर अमहरा, राघोपुर और कंचनपुर गांव की त्रिकोणीय सीमा पर है। पटना-औरंगाबाद मुख्य मार

Anuradha Pandey विशेष संवाददाता, पटनाMon, 3 Oct 2022 01:23 AM
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बिहटा। राजधानी पटना से करीब 35 किमी और बिहटा रेलवे स्टेशन से 5 किमी की दूरी पर स्थित है प्रख्यात वन देवी मंदिर। यह मंदिर अमहरा, राघोपुर और कंचनपुर गांव की त्रिकोणीय सीमा पर है। पटना-औरंगाबाद मुख्य मार्ग में अमहरा गांव से मंदिर तक जाने के लिए एक मुख्य गेट बना है। यहां नवरात्र के साथ रविवार और मंगलवार को दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगती है।

मंदिर के आसपास दुकानें सजी रहती हैं। सैकड़ों वर्ष पूर्व यह मंदिर वन देवी के साथ-साथ कनखा माई मंदिर के नाम से भी मशहूर था। पुरानी परंपरा के अनुसार पट बंद होने के बाद मंदिर के आसपास कोई नहीं रहता था। पुजारी जी भी पट बंद कर अपने गृह स्थान पर लौट जाते थे। कहा जाता है कि उस दौरान माता विचरण करती हैं। घना जंगल होने के कारण वहां विषैले जंतु भी विचरण करते थे लेकिन ये किसी भक्त को नुकसान नहीं पहुंचाते थे। मान्यता है कि मां शुद्ध वैष्णवी का स्वरूप हैं। यहां बलि देने की प्रथा नहीं है। यहां मां को नारियल, फल, चुनरी और अड़हुल का पुष्प अर्पित करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं।

विंध्यांचल अष्टभुजी से आई हैं माता अष्टभुजी (विंध्याचल) से माता यहां आई हैं। कहा जाता है कि इलाके के मिश्रीपुर, राघोपुर निवासी देवी भक्त विद्यानंद मिश्र तपस्या कर माता को मना कर लाए थे। पहले यहां मंदिर नहीं सिर्फ पिंड था। पिंड पर ही एक झोपड़ी थी। लोग उसी का दर्शन-पूजन करने आते थे। 1958 में संत भगवान दास त्यागी गांव अमहारा में यज्ञ कराने आए थे। उन्होंने ही झोपड़ी को मंदिर का स्वरूप दिया। इसके बाद 12 फरवरी 1997 से स्थानीय भक्तों ने मंदिर बनाने का बीड़ा उठाया, जो आज विशाल मंदिर है।

बिहटा स्थित मां वन देवी का किया गया भव्य श्रृंगार। 

मंदिर के पुजारी हरिओम बाबा ने बताया कि प्रत्येक रविवार और मंगलवार को ज्यादा भीड़ जुटती है। नवरात्र में दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि नारियल फल, एक मुट्ठी चावल, कसैली, अड़हुल फूल से पूजा करने पर माता की विशेष कृपा होती है। उन्होंने बताया कि इस मंदिर में मां कनखा देवी, भैरव बाबा के साथ मां वनदेवी मिट्टी से बने पिंड स्वरूप में विद्यमान हैं।

वर्ष में दो बार होती है विशेष पूजा और भंडारा का आयोजन

बिहटा के ही नहीं बल्कि दूरदराज के श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं एवं आस्था लेकर यहां पर आते हैं। मां वनदेवी की कृपा से जिनकी मुरादें पूरी होती हैं, वे यहां पर घंटा टांगते हैं। हर माह की त्रयोदशी को जागरण का आयोजन किया जाता है। वहीं वर्ष में दो बार यहां पर विशेष पूजा और भव्य भंडारा का आयोजन होता है। अभी नवरात्र में पाठ कर रहे भक्तों के लिए विश्रामालय की व्यस्था की गई है। अभी नवरात्रि के समय में लोग मां के मंदिर के समीप रात्रि में भी रहते हैं।

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