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होलिका दहन और रक्षा बंधन में भद्रा का विशेष विचार, जानें इसके बारे में खास बातें

हिंदू पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं—तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण एक महत्त्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है 1. बव 2. बालव 3. कौलव 4. तैतिल 5. ग

Anuradha Pandey लाइव हिंदुस्तान टीम, नई दिल्लीTue, 31 Jan 2023 06:58 AM
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हिंदू पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं—तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण एक महत्त्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है 1. बव 2. बालव 3. कौलव 4. तैतिल 5. गर 6.वणिज 7. विष्टि (भद्रा) 8. शकुनि 9. चतुष्पद 10. नाग 11. किस्तुघन करण। इन 11 करणों में सातवां करण विष्टि ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है।

शुक्ल पक्ष अष्टमी-पूर्णिमा तिथि के पूर्वाद्ध में, चतुर्थी-एकादशी तिथि के उत्तरार्द्ध में, और कृष्ण पक्ष की तृतीया-दशमी तिथि के उत्तरार्द्ध में, सप्तमी-चतुर्दशी तिथि के पूर्वाद्ध में ‘भद्रा’ अर्थात विष्टि करण रहती है।

भद्रा काल में शुभ कार्य जैसे मुंडन, विवाह, गृह प्रवेश, तीर्थ स्थलों का भ्रमण, संपत्ति की खरीदारी, व्यापार की शुरुआत या पूंजी-निवेश आदि मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए।

लेकिन भद्रा के दौरान किसी दुश्मन को परास्त करने की योजना पर काम करना, हथियार का इस्तेमाल, सर्जरी, किसी के विरोध में कानूनी कार्यवाही करना, जानवरों से संबंधित किसी कार्य को प्रारंभ करने जैसे कार्य किए जा सकते हैं।

भद्रा जिस समय जिस लोक में होती है, उसका प्रभाव भी उसी लोक में होता है। पृथ्वी लोक में भद्रा होने पर पृथ्वी पर मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। भद्रा का वास स्वर्ग लोक और पाताल लोक में होने पर यह पृथ्वीवासियों के लिए शुभ रहती हैं।

चंद्रमा के कर्क , सिंह, कुंभ या मीन राशि में होने पर भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है। चंद्रमा जब मेष, वृष या मिथुन राशि में होता है, तब भद्रा का वास स्वर्ग लोक में होता है। चंद्रमा के धनु, कन्या, तुला या मकर राशि में होने पर भद्रा पाताल लोक में वास करती है।

यदि भद्रा के समय कोई जरूरी कार्य करना हो तो भद्रा की प्रारंभ की 5 घटी (2 घंटा) छोड़ देना चाहिए। भद्रा 5 घटी (2 घंटा) मुख में, 2 घटी (48 मिनट) कंठ में, 11 घटी (4 घंटा 24 मिनट) हृदय में और 4 घटी (1 घंटा 36 मिनट) पुच्छ में स्थित रहती है।

भद्रा के मुख में होने पर कार्य का नाश, कंठ में होने पर धन का नाश, हृदय में होने पर मृत्यु तुल्य कष्ट और पुच्छ में होने पर कार्य सिद्ध होते हैं। होलिका दहन और रक्षा बंधन में भद्रा का विशेष विचार किया जाता है।

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