Notification Icon
Hindi Newsधर्म न्यूज़AHoi Mata mala is worn in Ahoi Ashtami vrat know vrat vidhi and vrat katha

अहोई अष्टमी व्रत में पहनी जाती है अहोई माता की माला, इस तरह किया जाता है पूजन, पढ़ें व्रत कथा

जल से भरे लोटे पर सातिया बना लें, एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेंहू के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें, जो बायना निकाल कर रखा है उसे

Anuradha Pandey पं दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली, नई दिल्लीMon, 17 Oct 2022 06:51 AM
share Share

अहोई अष्टमी भारतीय महिलाओं के विशेष पर्व हैं। इन पर्वों को मनाते हुए भारतीय महिलाएं जहां पौराणिक रीति पूर्वक व्रत-उपवास करती हैं वहीं सांस्कृतिक उमंग द्वारा उत्सव का रूप भी प्रदान करती हैं। इस बार अहोई चंद्रोदय व्यापिनी अष्टमी 17 अक्टूबर 2022 सोमवार को है । 17 अक्टूबर को दिन में 08:06 बजे के बाद अष्टमी तिथि लग जायेगी जो अगले दिन सुबह 10:14 बजे तक रहेगी । इस पर्व में चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी का ही विशेष महत्त्व है ,अतः अष्टमी तिथि में चन्द्रोदय रात में 11:10 बजे होगा।

Ahoi Ashtami 2022: आज अहोई अष्टमी पर इतने बजे होंगे तारों के दर्शन, पढ़ें स्याहु की यह व्रत कथा
 जहां इस पर्व में परिवार के कल्याण की भावना निहित होती है वहीं सास के चरणों को तीर्थ मानकर उनसे आशीर्वाद लेने की प्राचीन परंपरा आज भी दिखाई देती है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी अहोई अथवा आठें कहलाती है। यह व्रत दीपावली से ठीक एस सप्ताह पूर्व आता है। कहा जाता है इस व्रत को संतान वाली स्त्रियां करती हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अहोई अष्टमी का व्रत छोटे बच्चों के कल्याण के लिए किया जाता है, जिसमें अहोई देवी के चित्र के साथ सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाकर पूजे जाते हैं।

अहोई अष्टमी व्रत कैसे करें:-
जिन स्त्रियों वह व्रत करना होता है वह दिनभर उपवास रखती हैं। सायंकाल भक्ति-भावना के साथ दीवार अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। आजकल बाजार से अहोई के बने रंगीन चित्र कागज भी मिलते हैं। उनको लाकर भी पूजा की जा सकती है।

संध्या के समय सूर्यास्त होने के बाद जब तारे निकलने लगते हैं तो अहोई माता की पूजा प्रारंभ होती है। पूजन से पहले जमीन को स्वच्छ करके, पूजा का चौक पूरकर, एक लोटे में जलकर उसे कलश की भांति चौकी के एक कोने पर रखें और भक्ति भाव से पूजा करें। बाल-बच्चों के कल्याण की कामना करें। साथ ही अहोई अष्टमी के व्रत कथा का श्रद्धा भाव से सुनें।

इसमें एक खास बात यह भी है कि पूजा के लिए माताएं चांदी की एक अहोई भी बनाती हैं, जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ भी कहते हैं और उसमें चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजन किया जाता है। जिस प्रकार गले में पहनने के हार में पैंडिल लगा होता है उसी प्रकार चांदी की अहोई डलवानी चाहिए और डोरे में चांदी के दाने पिरोने चाहिए। फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा करें।

जल से भरे लोटे पर सातिया बना लें, एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेंहू के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें, जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास की चरण छूकर उन्हें दे दें। इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें

अगला लेखऐप पर पढ़ें