Ahoi Ashtami 2023 Vrat Katha: आज अहोई अष्टमी का व्रत कथा बिना है अधूरा, यहां पढ़ें व्रत की संपूर्ण व्रत कथा
अहोई अष्टमी व्रत कथा इन हिंदी: इस साल अहोई अष्टमी का व्रत आज रखा जाएगा। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर शाम को तारों की छांव में व्रत खोलती हैं, यहां हदे रहे हैं अहोई अष्टमी व्रत की कथा
कार्तिक मास की अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। आज महिलाएं अपनी संतान की सलामती और लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं। पूरे दिन निर्जला रहकर शाम को तारे देखकर व्रत को खोलती हैं। व्रत रखकर अहोई माता की पूजा की जाती है और उनकी कथा पढ़ी जाती है। शाम को मां अहोई की कथा पढ़ने और बच्चों को सुनाने के बाद तारे देखने के बाद व्रत खोला जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं चाकू आदि का इस्तेमाल नहीं करती हैं। हम नीचे दे रहे हैं अहोई अष्टमी व्रत की कथा-
दिन में पूजा का समय - सुबह 9:29 बजे अष्टमी तिथि आरंभ होने के बाद
व्रत पारायण - संध्याकाल में तारों के दर्शन करने के बाद
तारोदय : शाम 6.36 मिनट पर
चंद्रोदय : रात 8.34 मिनट पर
Ahoi Ashtami vrat katha: व्रत कथा: साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी. मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटीकी खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया. इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. सबसे छोटीभाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद मर जाते हैं सात पुत्रोंकी इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा. पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहु से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है? जो कुछ तेरीइच्छा हो वह मुझ से मांग ले. साहूकार की बहु ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं. यदि आप मेरी कोख खुलवा देतो मैं आपका उपकार मानूंगी. गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली।
रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं. अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनीके बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है. इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहूने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।
छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है. गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
वहां छोटी बहू स्याहु की भी सेवा करती है. स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है. स्याहु छोटीबहू को सात पुत्र और सात पुत्रवधुओं का आर्शीवाद देती है। और कहती है कि घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना। सात सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देना। उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बेटी हुई मिली। वह ख़ुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई। उसने सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देकर उद्यापन किया।
अहोई का अर्थ एक यह भी होता है 'अनहोनी को होनी बनाना.' जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था। जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकारकी बहु की कोख को खोल दिया, उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियों की अभिलाषा पूर्ण करें।
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