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Ahoi Ashtami 2023 date: कब है अहोई अष्टमी? जानें पूजन मुहूर्त, विधि व तारों व चांद के दिखने का समय और व्रत कथा

Ahoi Ashtami 2023 date: अहोई अष्टमी का व्रत संतान की सलामती के लिए माताएं रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान को लंबी आयु व खुशहाली प्राप्त होती है। जानें कब है अहोई अष्टमी व्रत-

Saumya Tiwari लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSun, 5 Nov 2023 04:57 AM
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Ahoi Ashtami 2023 Pujan Muhurat and Vidhi: हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी व्रत का बहुत महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी व्रत रखा जाता है। इस व्रत को माताएं अपने संतान की भलाई के लिए सुबह से शाम तक उपवास करती हैं। शाम को तारों को देखने के बाद व्रत पारण किया जाता है। कुछ महिलाएं इस व्रत को चंद्रमा के दर्शन के बाद खोलती हैं लेकिन इस नियम का पालन करना थोड़ा कठिन होता है क्योंकि अहोई अष्टमी के दिन चंद्रोदय देर से होता है।

दिवाली से ठीक 8 दिन पहले आता है अहोई अष्टमी व्रत: अहोई अष्टमी व्रत करवा चौथ के चार दिन और दिवाली से ठीक आठ दिन पहले पड़ता है। अहोई अष्टमी को कुछ जगहों पर अहोई आठें के नाम से भी जानते हैं क्योंकि यह व्रत अष्टमी तिथि को किया जाता है जो कि माह का आठवां दिन होता है।

करवा चौथ के समान कठिन व्रत: करवा चौक की तरह अहोई अष्टमी का व्रत भी कठिन व्रतों में से एक माना गया है। बहुत सी महिलाएं व्रत पूरे दिन बिना जल ग्रहण किए रखती हैं और तारों को देखने के बाद ही व्रत पारण करती हैं।

अहोई अष्टमी 2023 कब है: अष्टमी तिथि 05 नवंबर को सुबह 12 बजकर 59 मिनट से प्रारंभ होगी और 6 नवंबर को सुबह 03 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि में व्रत 5 नवंबर 2023, रविवार को रखा जाएगा।

अहोई अष्टमी पूजन मुहूर्त 2023: अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त शाम 05 बजकर 32 मिनट से शाम 06 बडजकर 51 मिनट तक रहेगा। पूजन की अवधि 01 घंटा 18 मिनट की है।

अहोई अष्टमी पूजा विधि: दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाई जाती है। फिर रोली, चावल और दूध से पूजन किया जाता है। इसके बाद कलश में जल भरकर माताएं अहोई अष्टमी कथा का श्रवण करती हैं। अहोई माता को पूरी और किसी मिठाई का भी भोग लगाया जाता है। इसके बाद रात में तारे को अघ्र्य देकर संतान की लंबी उम्र और सुखदायी जीवन की कामना करने के बाद अन्न ग्रहण करती हैं। इस व्रत में सास या घर की बुजुर्ग महिला को भी उपहार के तौर पर कपड़े आदि दिए जाते हैं।

अहोई अष्टमी के दिन तारों को देखने के लिए शाम का समय- 05:57 पी एम
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय - 12:01 ए एम, नवंबर 06

अहोई अष्टमी व्रत कथा- एक बार की बात है, घने जंगल के पास स्थित एक गांव में एक बहुत ही दयालु महिला रहती थी। उसके सात बेटे थे. कार्तिक महीने में दिवाली उत्सव से कुछ दिन पहले महिला ने अपने घर की मरम्मत करने और उसे सजाने का फैसला किया। अपने घर का नवीनीकरण करने के लिए, उसने कुछ मिट्टी लाने के लिए जंगल में जाने का फैसला किया। जंगल में मिट्टी खोदते समय, जिस कुदाल से वह मिट्टी खोद रही थी, उससे गलती से एक शेर के बच्चे की मौत हो गई। मासूम शावक के साथ जो हुआ उसके लिए वह दुखी, दोषी और जिम्मेदार महसूस करती थी।

इस घटना के एक साल के अंदर ही महिला के सातों बेटे गायब हो गए और गांव वालों ने उन्हें मृत मान लिया। ग्रामीणों ने अनुमान लगाया कि उसके बेटों को जंगल के किसी जंगली जानवर ने मार डाला होगा। महिला बहुत उदास थी और उसने सारे दुर्भाग्य को अपने द्वारा शावक की आकस्मिक मृत्यु से जोड़ा। एक दिन उसने गांव की एक वृद्ध महिला को अपनी व्यथा सुनाई। उसने इस घटना पर चर्चा की कि कैसे उसने गलती से शावक को मारने का पाप किया। बुढ़िया ने महिला को सलाह दी कि अपने पाप के प्रायश्चित के रूप में, उसे शावक का चेहरा बनाकर देवी अहोई माता जो कि देवी पार्वती का अवतार हैं, की पूजा करनी चाहिए। उसे देवी अहोई के लिए व्रत रखने और पूजा करने का सुझाव दिया गया क्योंकि वह सभी जीवित प्राणियों की संतानों की रक्षक मानी जाती थी।

महिला ने अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा करने का फैसला किया। जब अष्टमी का दिन आया तो महिला ने शावक का चेहरा बनाकर व्रत रखा और अहोई माता की पूजा की। उसने जो पाप किया था उसके लिए उसने ईमानदारी से पश्चाताप किया। देवी अहोई उसकी भक्ति और ईमानदारी से प्रसन्न हुईं और उसके सामने प्रकट हुईं और उसे उसके पुत्रों की लंबी उम्र का वरदान दिया। जल्द ही उसके सातों बेटे जीवित घर लौट आये। उस दिन के बाद से हर वर्ष कार्तिक कृष्ण अष्टमी के दिन माता अहोई भगवती की पूजा करने का विधान बन गया। इस दिन माताएं अपने बच्चों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं और व्रत रखती हैं।

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