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Ahoi Ashtami 2022: आज अहोई अष्टमी व्रत का इस वजह से बढ़ रहा महत्व, जानें शुभ मुहूर्त, नियम, पूजन विधि व व्रत कथा

Ahoi Ashtami 2022 Vrat: हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन अहोई माता की पूजा करने से संतान दीर्घायु होती है व उसके जीवन में खुशहाली आने की मान्यता है।

Saumya Tiwari लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 17 Oct 2022 03:32 AM
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Ahoi Ashtami 2022 Vrat: कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी व्रत रखा जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु व मंगलकारी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस साल अहोई अष्टमी 17 अक्टूबर, सोमवार को है। ज्योतिष गणना के अनुसार, ग्रह नक्षत्रों की स्थिति व विजय व अभिजीत मुहूर्त के कारण इस व्रत का महत्व और बढ़ रहा है।

अहोई अष्टमी शुभ मुहूर्त 2022-

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि 17 अक्टूबर को सुबह 09 बजकर 29 मिनट से प्रारंभ हो चुकी है, जो कि 18 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। अहोई अष्टमी के दिन दोपहर 11 बजकर 43 मिनट से दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा।

अहोई अष्टमी पर बन रहे ये शुभ मुहूर्त-

ब्रह्म मुहूर्त- 04:43 ए एम से 05:33 ए एम    
अभिजित मुहूर्त- 11:43 ए एम से 12:29 पी एम
विजय मुहूर्त- 02:01 पी एम से 02:46 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 05:38 पी एम से 06:02 पी एम
अमृत काल- 02:31 ए एम, अक्टूबर 18 से 04:19 ए एम।

अहोई अष्टमी व्रत नियम-

1. अहोई अष्टमी के दिन भगवान गणेश की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
2. अहोई अष्टमी व्रत तारों को देखकर खोला जाता है। इसके बाद अहोई माता की पूजा की जाती है।
3. इस दिन कथा सुनते समय हाथ में 7 अनाज लेना शुभ माना जाता है। पूजा के बाद यह अनाज किसी गाय को खिलाना चाहिए।
4.अहोई अष्टमी की पूजा करते समय साथ में बच्चों को भी बैठाना चाहिए। माता को भोग लगाने के बाद प्रसाद बच्चों को अवश्य खिलाएं।

अहोई अष्टमी पूजन विधि-

दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाई जाती है। फिर रोली, चावल और दूध से पूजन किया जाता है। इसके बाद कलश में जल भरकर माताएं अहोई अष्टमी कथा का श्रवण करती हैं। अहोई माता को पूरी औऱ किसी मिठाई का भी भोग लगाया जाता है। इसके बाद रात में तारे को अर्घ्य देकर संतान की लंबी उम्र और सुखदायी जीवन की कामना करने के बाद अन्न ग्रहण करती हैं। इस व्रत में सास या घर की बुजुर्ग महिला को भी उपहार के तौर पर कपड़े आदि दिए जाते हैं।

यहां पढ़ें अहोई अष्टमी व्रत की कथा:

साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।

स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद मर जाते हैं सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहु से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है? जो कुछ तेरीइच्छा हो वह मुझ से मांग ले। साहूकार की बहु ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं। यदि आप मेरी कोख खुलवा देतो मैं आपका उपकार मानूंगी। गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली।

रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहूने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।

छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।

वहां छोटी बहू स्याहु की भी सेवा करती है। स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है. स्याहु छोटीबहू को सात पुत्र और सात पुत्रवधुओं का आर्शीवाद देती है। और कहती है कि घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना। सात सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देना। उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बेटी हुई मिली। वह ख़ुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई। उसने सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देकर उद्यापन किया।

अहोई का अर्थ एक यह भी होता है 'अनहोनी को होनी बनाना।' जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था। जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकारकी बहु की कोख को खोल दिया, उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियों की अभिलाषा पूर्ण करें।

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